लोगों का ऐसा मानना है कि यहां पर मस्तानी रानी नृत्य किया करती थीं और ऊपर से राजा-महाराजा छत्रसाल बैठ कर उस कला का आनंद लिया करते थे। भले ही यह महल आज खंडहर के रूप में दिखता हो, पर इसकी दीवारों में आज भी संस्कृति और ऐतिहासिक गूंज सुनाई देती है।
रिपोर्ट – अलीमा, लेखन – गीता
मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है एक भव्य और ऐतिहासिक किला है जो धुबेला किले के नाम से जाना जाता है। यह सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि बुंदेलखंड की गौरवगाथा का प्रतीक भी है। यह महाराजा छत्रसाल पुरातत्व संग्रहालय के रूप में भी जाना जाता है, जहां पर एतिहास, संस्कृति और कला का अदभुत संगम देखने को मिलता है।
दोस्तों आप को बता दें कि जैसे ही आप इस किले के मुख्य द्वार से अंदर आते हैं, सामने ही आप को दिखाई देगा प्रसिद्ध मस्तानी महल। लोगों का ऐसा मानना है कि यहां पर मस्तानी रानी नृत्य किया करती थीं और ऊपर से राजा-महाराजा छत्रसाल बैठ कर उस कला का आनंद लिया करते थे। भले ही यह महल आज खंडहर के रूप में दिखता हो, पर इसकी दीवारों में आज भी संस्कृति और ऐतिहासिक गूंज सुनाई देती है। पर्यटक यहां दूर- दूर से घूमने और यहां की शांति और सुंदरता का आनंद लेते और बैठते हैं। सेल्फी और दोस्तों के साथ तस्वीरें खींचते हैं और पुरानी इमारतों को महसूस करते हैं।
कमलापति मकबरा
कमलापति मकबरा जिसे हृदय शाह महल भी कहा जाता है। यह महल बेहद खूबसूरत और आकर्षक है। बताया जाता है कि इस महल में रानी कमलावपति रानी रहा करती थीं और इस महल के पास ही बने तालाब में स्नान किया करती थीं। लोगों का मानना है कि यह तालाब आज भी पर्यटकों को अपनी ठंडी हवा और सुंदर नज़ारों से लुभाता है जिससे लोग घूमने के लिए खींचे चले आते हैं।
किले में साफ सफाई करने वाले सफाई कर्मचारी रमेश कहते हैं कि इस धुबेला संग्रहालय के अंदर कई ऐसी पुरानी ऐतिहासिक धरोहर रखी गई हैं जिसमें राजा-रानी के वस्त्र, औजार, युद्ध में प्रयोग होने वाली तोपें और तरह-तरह की सुंदर चित्र-कलाएं हैं। लोगों का कहना है कि जब भी यहां घूमने आते हैं तो यहां आकर ऐसा महसूस होता है कि मानो हम इतिहास के उस पुराने युग में पहुंच गए हों जहां से बुंदेलखंड के वीरगाथाओं की शुरूआत हुई थी। यह संग्रहालय हर दिन सुबह 9:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक खुला रहता है और टिकट के लिए भी अलग-अलग श्रेणी की व्यवस्था की गई है।
महाराजा छत्रसाल पुरातत्व संग्रहालय का इतिहास
छतरपुर के रहने वाले दुकानदार हल्कू कुशवाहा कहते हैं कि इतिहासकारों की मानें तो निर्देश महल जिसे मोती महल के नाम से भी जाना जाता है इसका निर्माण 1667 ईस्वी में गोंड राजा हृदय शाह द्वारा किया गया था जिसकी नींव 1651 में रखी गई थी। यह महल बुंदेली वास्तुकला निर्माण का जीता-जागता उदाहरण है। इस महल की खिड़कियों से बाहर का नजारा बहुत ही साफ दिखाई देता है।
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड के वह महान योद्धा थे जिन्होंने मुगल सम्राट औरंगज़ेब को हराकर अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया था। उन्होंने न केवल एक साम्राज्य बनाया था बल्कि अपनी वीरता और सांस्कृतिक समझदारी से इस क्षेत्र को ऐतिहासिक महत्व भी दिलाया था।
छतरपुर एक ऐसा जिला है जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से भी बहुत ही रोमांचक और खूबसूरत है। यहां बने राजाओं के महल, किले और संग्रहालय न केवल इतिहास को संजो कर रखते हैं बल्कि पर्यटकों को भी एक अद्भुत अनुभव प्रदान करते हैं। यही कारण कि आज मध्य प्रदेश को पर्यटन नगर के नाम से भी जाना जाता है।
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