खबर लहरिया Blog मध्य प्रदेश: जिला अस्पताल में जमीन पर लेटने को मजबूर है डिलीवरी के बाद महिलाएं

मध्य प्रदेश: जिला अस्पताल में जमीन पर लेटने को मजबूर है डिलीवरी के बाद महिलाएं

राजवती जोकि 45 साल की हैं.. उनका कहना है कि, “उनकी बहू की डिलीवरी हुई है और इनको भी बेड नहीं मिला है। जब बेड की मांग की तो बस यही कहा जाता है कि बेड यहां पर नहीं है। आपको लेटना हो तो जमीन पर ही लेटो नहीं तो छुट्टी कर अपने घर चली जाइये।

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                                                 अस्पताल में बेड की कमी होने की वजह से डिलीवरी के बाद महिलाओं को ज़मीन पर लेटना पड़ रहा है ( फोटो साभार – अलीमा)

बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है पर जब देश के भविष्य को जन्म देने वाली ही दर्द में हो तो, उनके दर्द को कौन महसूस करेगा? उनकी स्थिति पर विचार कौन करेगा, उनके स्वास्थ के बारे में कौन सोचेगा? भारत जहां बड़ी-बड़ी बातें होती है महिलाओं की उन्नति, सुरक्षा और उनके स्वास्थ को लेकर। लेकिन देश में आज भी महिलाओं की दयनीय स्थिति बयां करने वाली बहुत सी घटनाएं हैं जिन पर सरकार ध्यान नहीं देती है।

महिलाएं जो दर्द सहन कर बच्चे को जन्म देती है उनकी अस्पतालों में क्या स्थिति है। इसकी सच्चाई मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के `जिला चिकित्सालय` में देखी जा सकती हैं, जहां महिलाएं डिलीवरी के बाद एक बेड के लिए तरस रहीं हैं। इस अस्पताल में बेड की कमी है जिसकी वजह से डिलीवरी के बाद महिलाओं को मजबूरन जमीन पर लेटना पड़ता है। साल 2019 में इस अस्पताल में नई बिल्डिंग का उद्घाटन हुआ था।

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लोगों का आरोप

यहां पर रहने वाले लोगों का आरोप है कि पूरे जिले से काफी दूर-दूर से महिलाएं डिलीवरी के लिए जिला चिकित्सालय में आती है। डिलीवरी के बाद उन महिलाओं को जमीन पर लेटने के लिए कहा जाता है। जिससे उनको दिक्कत होती है। महिलाओं का कहना है कि जमीन पर लेटने में बहुत सर्दी लगती है। यदि बेड मांगो तो कहते हैं कि बेड उपलब्ध नहीं है।

सुमन अहिरवार उम्र 29 जो ग्राम धरारी से है। जिला चिकित्सालय में दो दिन पहले डिलीवरी के लिए आई थी। कहती हैं, उनके पेट में बहुत दर्द हो रहा था। उनकी डिलीवरी होनी थी दो दिन से वह जिला चिकित्सालय में बैठी हैं। भर्ती भी हुई लेकिन उनको बेड नहीं मिला। दो दिन के बाद जब उनकी डिलीवरी हुई उन्होंने सोचा कि डिलीवरी के बाद उन्हें बेड मिलेगा लेकिन डिलीवरी होने के बाद उनको जमीन में ही लेटना पड़ा।

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बेड की संख्या कम

नन्ही सी बेटी को लेकर जमीन पर लेटी सुमन का कहना है कि “जमीन पर लेटने में बहुत सर्दी लग रही है। मेरी बेटी जो अभी हुई है उसको भी मुझे जमीन पर लेटना पड़ रहा है। यहां की जो डॉक्टर हैं उनसे बेड माँगा तो वह कहते हैं कि यहां पर मरीज ज्यादा है बेड नहीं है।”

घर से ही बिस्तर लाने को मजबूर

राजवती जोकि 45 साल की है उनका कहना है कि, “उनकी बहू की डिलीवरी हुई है और इनको भी बेड नहीं मिला है। जब बेड की मांग की तो बस यही कहा जाता है कि बेड यहां पर नहीं है। आपको लेटना हो तो जमीन पर ही लेटो नहीं तो छुट्टी कर अपने घर चली जाइये। अब मेरी बहू को दिक्कत ना होती तो मैं छुट्टी कर घर ही चली जाती। यहां पर क्यों बैठी रहती। छोटे से बच्चों को लेकर मरीज को जमीन पर लिटाना पड़ता है। अपने घर से चटाई या दरी लेकर आना पड़ता है तभी मरीज लेट पता है। दूर गांव से आते हैं, कहां से इतना कुछ लेकर आए। निजी अस्पतालों में बेड है पर यहां पर बेड नहीं है। इस तरह की समस्या कई दिनों से आ रही है।”

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उपलब्ध बेड की हालत है खराब

संतोष शिवहरे (40) जो ग्राम कैंडी के रहने वाले हैं। इनका कहना है कि “मेरी माता जी की तबीयत कई दिनों से खराब है। मैं जिला अस्पताल उनको इलाज के लिए लाया था तो डॉक्टर ने उन्हें भर्ती करने को कहा। मैंने बेड की मांग की तो बेड तो मिला लेकिन जब मेरी मां बेड में लेटी थी तो उसमें कॉकरोच थे। मेरी मां उसे बेड पर नहीं लेटी क्योंकि कॉकरोच कान में घुस सकते हैं। महिलाओं को कॉकरोच से डर भी बहुत लगता है तो मैं मजबूरी में जमीन पर चटाई बिछा के अपनी मां को लेटा दिया। अगर कॉकरोच कान में घुस जाए तो और तरह की बीमारी हो जाएगी। यहां के बेड साफ-सुथरे नहीं है लेकिन जो इमरजेंसी में आता है, उनको यह लोग बेड देते हैं। जिसमें साफ सफाई नहीं रहती तो लोग मजबूरी में आकर जमीन पर लेटते हैं।

डिलीवरी के बाद भी राहत नहीं, उठने बैठने में दिक्क्त

लोगों का कहना है कि जब नई बिल्डिंग बनी थी तब आराम से बेड मिल जाते थे लेकिन इस समय 4 महीने से काफी दिक्कत हो रही है। बेड ही नहीं मिलते क्योंकि मरीज ज्यादा आ जाते हैं। एक मरीज की अगर डिलीवरी होती है जब तक उसकी छुट्टी नहीं हो जाती। चाहे 4 दिन हो या चाहे 5 दिन हो तब तक जमीन पर लेटना पड़ता है। बेड की कमी है इसीलिए महिलाओं को अपने नवजात शिशु को लेकर जमीन पर लेटना पड़ता है जिस जमीन ठंडी भी रहती है। और किसी को टांके आते हैं तो उनको उठने बैठने में भी जमीन पर लेटने से दिक्कत आती है।

अधिकारी का बयान

जब इस बारे में जिला चिकित्सालय के `सिविल सर्जन` डॉक्टर जी एल अहिरवार जो जिला चिकित्सालय में सिविल सर्जन के पद पदस्थ हैं। उन्होंने अपनी सफाई में कहा कि कभी-कभी ऐसा होता है कि “अस्पताल में मरीज बहुत ज्यादा आ जाते हैं। खास करके डिलीवरी वाले तो इनको बेड मिल पाना मुश्किल हो जाता है अभी हॉल में हमारे हर हॉल में 50 से 60 बेड मौजूद है। जिसमें हर मरीज लेटा है। रही बात कॉकरोच की तो मैं इसको दिखाता हूं कि उन बेडों की सफाई क्यों नहीं हो रही है। ऐसा हो सकता है कि वह बेड बहुत पुराने है। मैं नए बेड मंगवाने का और भी प्रयास कर रहा हूं। नई बिल्डिंग जो अभी बन रही है वैसे ही नए बेड भी आ जाएंगे तो लोगों को इस समस्या से जूझना नहीं पड़ेगा। जहां पर भी बेड की गंदगी की बात है तो मैं उसकी जांच पड़ताल करवाता हूँ।”

सरकार चाहे कितना बखान कर ले की सरकारी अस्पतालों में अब किसी चीज की कमी नहीं है पर आज भी देश के कुछ हिस्से है जहां तक ये सुविधाएँ नहीं पहुंच पायी हैं पर हाँ, वहां की जनता का वोट जरूर सरकार तक पहुँच गया है।

इस खबर की रिपोर्टिंग अलीमा द्वारा की गई है। 

 

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