मीराबाई ने कहा, “मुझे तीन दिन हो गए हैं लेकिन अभी तक मेरा अल्ट्रासाउंड नहीं हुआ है। मेरी डिलीवरी होने वाली है, आखिरी महीना चल रहा है। डॉक्टर ने लिखा था कि अल्ट्रासाउंड करवा लो, लेकिन अब तक नहीं हुआ। अगर आज नहीं हुआ, तो हमें प्राइवेट में जाकर करवाना पड़ेगा।”
रिपोर्ट – अलीमा, लेखन – सुचित्रा
मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले का जिला अस्पताल जितना बड़ा है, उतनी ही इसकी व्यवस्थाएं नहीं हैं। आप देख सकते हैं कि जिला अस्पताल छतरपुर जिले का सबसे बड़ा अस्पताल है, जहां दूर-दूर से लोग इलाज कराने आते हैं। यहां चाहे वह महिलाओं की डिलीवरी हो या कोई अन्य इलाज यहां सभी अपना बेहतर इलाज की उम्मीद में आते हैं।
डिलीवरी वाली महिलाओं के लिए सुविधाओं की कमी
इतना बड़ा अस्पताल होते हुए भी यहां पर डिलीवरी वाली महिलाओं के लिए आवश्यक व्यवस्थाएं नहीं हैं। आप देख सकते हैं कि अस्पताल के गेट के बाहर कितनी भीड़ है और बैठने के लिए भी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। सरकार लाखों रुपए खर्च करके अस्पताल बनवाती है, लेकिन व्यवस्थाओं को ठीक तरीके से नहीं कर पाती। इस अस्पताल में जिले भर से लोग इलाज कराने आते हैं। अगर कहीं से रेफर किया भी जाता है, तो इलाज यहीं होता है। लेकिन जब व्यवस्थाएं ही सही नहीं हों, तो इलाज कैसे होगा? यह सरकार की व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।
नवजात शिशु को टिका कराने के लिए महिलाओं को करना पड़ता है इंतजार
यह तस्वीर जिला अस्पताल के अंदर की है, जहां महिलाओं को डिलीवरी के बाद टीकाकरण के लिए एक मंजिल नीचे उतरना पड़ता है। इसके बाद ही टीकाकरण होता है। महिलाओं से बातचीत करने पर रोशन जी ने बताया कि उनकी भाभी की डिलीवरी हुई है और बच्चे को टीका नहीं लगा है। इस कारण वह बच्चे को टीका लगवाने के लिए नीचे आई हैं। यहां पर लाइन लगी हुई है, लेकिन अभी तक टीका नहीं लगा है क्योंकि जो मैडम टीका लगाने आती हैं, वह अभी तक नहीं आईं। हम डॉक्टर सर से बात करना चाहते थे ताकि शायद वही बच्चे को टीका लगा दें, क्योंकि आजकल अगर बच्चों को समय पर टीका नहीं लगता, तो उन्हें पीलिया जैसी बीमारियां हो सकती हैं।
डिलीवरी के बाद महिलाओं को बेड तक नसीब नहीं
यह तस्वीर जिला अस्पताल के अंदर की है, जहां महिलाओं की डिलीवरी होती है। नीचे दी गई तस्वीर में आप देख सकते हैं कि महिला के परिजन बाहर इंतजार कर रहे हैं। तस्वीर में दिखाई दे रहा सफ़ेद गेट डिलीवरी रूम का है। डिलीवरी के बाद महिलाओं को बाहर भेज दिया जाता है और उन्हें बेड भी नहीं मिलता। उन्हें नीचे लेटने के लिए कह दिया जाता है। ये महिलाएं यहां पर लाइन लगाए रहती हैं ताकि जब कोई मरीज आए, तो उनकी जगह मिल सके। जगह भी खुद से गीली हो जाती है। दिखने में इस अस्पताल की इमारत चार-पांच मंजिल तक है। अस्पताल में इतनी भीड़ के बावजूद कोई व्यवस्था नज़र नहीं आती।
इसी तस्वीर में बगल वाले रूम में अल्ट्रासाउंड होता है। इसके लिए जिनके पास कूपन है वही अल्ट्रासाउंड करवा पाते हैं। मीराबाई बताती हैं कि वह तीन दिन से सुबह 7:00 बजे आ जाती हैं लेकिन उन्हें कूपन नहीं मिलता। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक दिन में सिर्फ 25 अल्ट्रासाउंड होते हैं। यहां मरीजों की संख्या 25 से ज्यादा होती है। मीराबाई ने कहा, “मुझे तीन दिन हो गए हैं लेकिन अभी तक मेरा अल्ट्रासाउंड नहीं हुआ है। मेरी डिलीवरी होने वाली है, आखिरी महीना चल रहा है। डॉक्टर ने लिखा था कि अल्ट्रासाउंड करवा लो, लेकिन अब तक नहीं हुआ। अगर आज नहीं हुआ, तो हमें प्राइवेट में जाकर करवाना पड़ेगा।”
सरकार की ऐसी व्यवस्था के चलते ही लोगों का सरकार की सुविधा पर से विश्ववास उठ गया है। इतने संघर्ष के बाद भी उनका इलाज और चेकअप समय पर नहीं हो पाता। लोग इसलिए प्राइवेट अस्पताल को ज्यादा महत्व देते हैं उन्हें पता है कि सरकारी अस्पताल की व्यवस्था और हालत कैसी है और वहां जाकर उन्हें कितने चक्कर कटाने पड़ेंगें।
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