खबर लहरिया Blog कुचबंधिया समुदाय के प्रति प्रशासन कर रहा कानून का दुरूपयोग

कुचबंधिया समुदाय के प्रति प्रशासन कर रहा कानून का दुरूपयोग

पुलिस कुचबंधिया समाज के परिवारों को धाराओं का डर बताकर ₹5000-25 हज़ार या इससे बड़ी रकम ऐंठने का काम करती है।

मैं मध्यप्रदेश में बसने वाले कुचबंधिया समुदाय का एक हिस्सा हूँ । यह समुदाय मूल रूप से विभिन्न आदिम जातियों की तरह जनजातीय परम्पराओं व संस्कृति से बंधा हुआ है ।

भारत के विभिन्न क्षेत्रो में ऐसे मानव-समूह निवास करते है जो आज भी सभ्यता तथा संस्कृति से अंजान हैं। जो सभ्य समाजों से दूर जंगल, पहाड़ो या पठारी क्षेत्रों मे रहते हैं। इन्हीं समूहों को जनजाति, आदिम समाज, वन्य जाति, आदिवासी आदि नामों से जाना जाता है।

मेरे समुदाय की जीवन शैली भी बाकी जनजातीय समुदायों से पूर्णतः मिलती है। हम कुछ समय पहले तक परिवार के पालन पोषण के लिये जंगल आधारित विभिन्न साधनों पर आश्रित थे, जैसे- शहद, जड़ी-बूटी, शिकार, व जंगल के विशेष प्रकार के वृक्ष की छाल व जड़ से बनाये जाने वाली रस्सी। कूची बनाकर और बेचकर अपने परिवारों का पालन-पोषण किया करते थे। लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा लाये गये वन संरक्षण 1980 वन्ध वन्यजीव संरक्षण 1972 अधिनियम के प्रतिबंधों की वजह से हमसे हमारा यह पारम्परिक व्यवसाय छिन गया । 

बहुत-सी जनजातियों के सामाजिक जीवन, जन्म-मरण, शादी-विवाह, पूजा-पाठ की तरह  ही कुचबंधिया समाज भी जंगल से प्राप्त होने वाले महुआ का उपयोग कर देशी तरीके से बनाई गई महुए की शराब का पारम्परिक तौर पर उपयोग करता है। महुए की शराब हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके बिना ​​हमारा सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन अधूरा है । हमारे पारम्परिक व्यवसाय छिन जाने के कारण और दूसरे आय के स्त्रोत न होने की वजह से हमने पारम्परिक तौर पर उपयोग की जाने वाली महुए की कच्ची (देशी) शराब को अपनी जीविका का साधन बनाया है ।

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महुआ बीनते हुए स्थानीय लोग

हम जनजाति स्वभाव व आचरण के हिसाब से महुए की शराब बनाकर अपने-अपने रोज़ के सेवन व स्थायी रोजगार के साधन ना होने की वजह से कुछ मात्रा में इसकी बिक्री कर अपने परिवार का अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं । 

हमारे समुदाय द्वारा बनाई जाने वाली कच्ची महुए की शराब की मात्रा सिर्फ हमारे दैनिक जीवन के उपयोग के अनुसार ही होती है । लेकिन आबकारी अधिनियम कहता है कि शासकीय अनुमति के बिना किसी भी मादक द्रव्य को बनाना, अपने कब्ज़े में रखना या उसका उपयोग करना कानूनन अपराध है। इस वजह से स्थानीय पुलिस व आबकारी विभाग द्वारा कुचबंधिया समाज के विरूद्ध अवैध कच्ची शराब के केस बनाये जाते हैं । यही नहीं, जब पुलिस हमारे घरों में दस्तक देती है तो हमारे परिवारों से शराब की अधिक मात्रा में झूठी ज़ब्ती दिखाई जाती है । 

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ज़्यादातर मामलों में यह होता है कि पुलिस कुचबंधिया समाज के परिवारों को धाराओं का डर बताकर ₹5000-25 हज़ार या इससे बड़ी रकम ऐंठने का काम करती है। पैसे देने से इंकार करने पर पुलिस शराब ठेके के कर्मचारियों को गवाह बना कर झूठे मामले दर्ज़ कर देती है। हमें बेवजह परेशान किया जाता है और कई बार इन्हीं कारणों की वजह से हमें पूरी तरह से झूठे मामलों में फंसाया जाता है ।

पुलिस द्वारा कई बार हमारे सामाज के युवकों, पुरुषों, महिलाओं पर गंभीर मामले- जैसे आबकारी अधिनियम के तहत धारा 34(ख), 49-ए की कार्यवाही कर उनका शोषण किया जाता है और इसका खामियाज़ा उन्हें शासन द्वारा आदतन अपराधी होने का कलंक या ठप्पा लगाकर झेलना पड़ता है ।

यह सही है कि कुचबंधिया समाज के अधिकतर परिवारों में उनकी परम्पराओं, संस्कृति, जीवन-शैली में शराब का  इस्तेमाल होने की वजह से घरों में महुआ (कच्ची) शराब पायी जाती है । हालांकि इस शराब की मात्रा ज़्यादातर इतनी ही होती है कि हमारे विरूद्ध वर्तमान आबकारी अधिनियम 1915 अध्याय 7 के अपराध और शास्तियों (दंड) के अंतर्गत धारा 34(क), जो किसी भी मादक द्रव्य विधि विरुद्ध विनिर्माण एवं कब्जे में रखने परिवहन का निषेध करती है, लगाई जा साके। इसमें मादक द्रव्य की मात्रा 50 बल्क ली. से कम होने का प्रावधान है। साथ ही उसका प्रयोग किया जाना न्यायसंगत या कानून के अनुसार होता है। 

इसके विपरीत पुलिस द्वारा संबंधित घरों में सामान्य मात्रा में शराब पाये जाने के बावजूद उक्त आबकारी अधिनियम की कठोर धारा 34(ख) जो 50 लीटर या अधिक मात्रा में पाये जाने के लिये प्रावधानित है, जो कि एक व्यवसायिक मात्रा है, हम पर लगाई जाती है ।

इसके साथ ही उक्त अधिनियम के अध्याय 7 “जीवन विरुद्ध अपराध के लिये” की  धारा 49-ए का गलत इस्तेमाल किया जाता है या प्रयोग किये जाने की धमकी देकर पैसे वसूले जाते हैं। 

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आज हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा पुलिसि की बर्बरता, कानून के दुरुपयोग से पीड़ित है, परेशान है । हाल ही में पारित किये गये संशोधन, जिसमें धारा 49-ए के तहत आरोपी को 20 से 25 लाख तक का जुर्माना, साथ ही मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया है। भविष्य में इस प्रकार के प्रावधानों का उपयोग कर झूठे मामलों में फंसाये जाने की पूरी संभावना बन गई है क्योंकि शासन व सत्ता से जुड़े हुए लोग कुचबंधिया समुदाय को अपराधियों की नज़र से देखते हैं इस वजह से हमारे विरूद्ध झूठे मामले बनाना आसान प्रतीत होता है ।

पुलिस द्वारा शोषण किये जाने का एक उदाहरण यह भी है कि कुचबंधिया समुदाय से जुड़े किसी व्यक्ति को अगर झूठे मुकदमे से प्रताड़ित किया जाता है और वह पीड़ित हिम्मत जुटाकर संबंधित पुलिस कर्मी या अधिकारी के विरुद्ध कोई शिकायत करता है तो संबंधित पुलिस कर्मी या अधिकारी पीड़ित से शिकायत वापिस लेने के लिये दबाव बनाते हैं या धमकाते हैं, नहीं तो भविष्य में देख लेने व कड़ी कार्यवाही करने की धमकी दी जाती है। 

अभी पिछले दिनों की ही बाात है कि मेरा छोटा भाई सुनील जो मज़दूरी करने के लिए हमारे गांव से बाहर आया था, उसके घर स्थानीय पुलिस के साथ ठेके कर्मचारियों ने रेड कर दी। पुलिस के सामने ही ठेके कर्मचारियों ने मेरे छोटे भाई का कमरा जिसका दरवाज़ा बंद था उसे तोड़ दिया और घर के अंदर के सामान को भी तितर-बितर कर दिया। एक टी.वी. सेट रखा था जिसे उन्होंने गिराकर तोड़ दिया। इसकी शिकायत जब उसने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में की तो हेल्पलाइन द्वारा शिकायत की वजह से जब संबंघित पुलिस कर्मी के खिलाफ कार्यवाही होने लगी तो दबिश कर्मियों के साथ गया पुलिस अधिकारी मेरे छोटे भाई पर ऑनलाइन शिकायत वापिस लेने के लिए दबाव बनाने लगा । दबाव में आकर मेरा भाई ऑनलाइन शिकायत वापिस लेने पर मजबूर हो गया ।

आज कुचबंधिया समुदाय स्थायी रोज़गार के अभाव में शासन-प्रशासन की अनदेखी के चलते मजबूरी में अपना व अपने परिवारों का पालन-पोषण कर रहा है। किसी भी सरकार को हमारी कोई चिन्ता नहीं है। आज के समय में कुचबंधिया समुदाय के लोग धीरे-धीरे अन्य कामों की ओर बढ़ रहे है। हालांकि सम्पूर्ण मध्य प्रदेश का कुचबंधिया समाज व्यवसायिक तौर पर पूरी तरह इसमें शामिल नहीं है। हम धीरे-धीरे वैकल्पिक रोज़गार के कार्यों की ओर अग्रसर हैं ।

कुचबंधिया समाज के विरूद्ध पुलिस का यह व्यवहार, शासन-प्रशासन की बेरुखी व सामाजिक और आर्थिक हितों की अनदेखी की वजह से हमारे समुदाय के अंदर बहुत चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है, जो हो सकता है कि आने वाले भविष्य में सत्ता व शासन के विरूद्ध विस्फोट के रूप में सामने आ सकता है ।

अतः शासन व सत्ता को कुचबंधिया समाज के आर्थिक व सामाजिक हितों के लिए न्यायसंगत व आवश्यक कदम उठाने चाहिए ।

 

( यह लेख रवि कुमार द्वारा लिखा  व खबर लहरिया द्वारा संपादित किया गया है। रवि  बी.ए., बी.एड. के छात्र हैं व जबलपुर के निवासी हैं । वर्तमान में वह एल.एल.बी. की पढ़ाई  कर रहें हैं ।)

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