बांदा जिले के नरैनी तहसील अंतर्गत गौरशिवपुर गांव के पास स्थित यह ऐतिहासिक किला, केन नदी की बीच धारा में स्थित चट्टानों पर बनी ऊंचाई पर स्थित है।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित रनगढ़ किला, भारत का एकमात्र जलीय किला है। यह केन नदी की जलधारा के बीचोंबीच बनाया हुआ है। यह ऐतिहासिक किला पर्यटन विभाग के नज़रअंदाज करने के कारण अब तक पर्यटकों के बीच अपनी पहचान नहीं बना पाया था। इसका जिक्र भी बहुत कम किया जाता था लेकिन अब पर्यटन विभाग द्वारा इस किले को विकसित करने की दिशा में कदम उठाए गए हैं। इसकी वजह से यह किला एक नई पहचान प्राप्त करेगा और पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण स्थल बनेगा।
केन नदी के बीच जलधारा में बना
बांदा जिले के नरैनी तहसील अंतर्गत गौरशिवपुर गांव के पास स्थित यह ऐतिहासिक किला, केन नदी की बीच धारा में स्थित चट्टानों पर बनी ऊंचाई पर स्थित है। पनगरा गांव के निवासी प्रद्युमन के अनुसार, उनके पूर्वजों ने बताया कि इस किले के निर्माण से संबंधित कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिले हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि 18वीं सदी में कालिंजर के नरेश ने रिसौरा रियासत (सम्पति) की रक्षा के लिए इस किले का निर्माण करवाया था। बाद में यह किला पन्ना नरेश, महाराजा छत्रसाल के आधिपत्य में आ गया था। इस किले का क्षेत्रफल लगभग चार एकड़ है, और इसके रख-रखाव की कमी के कारण यह अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस किले तक पहुंचने के लिए कोई पक्का मार्ग नहीं है।
अष्टधातु की मूर्ति की कहानी
रिसौरा गांव के राजाराम यादव बताते हैं कि किले में पहले चोरों और उच्चकों ने चांदी की कई चीजें चुराई थीं, जिनमें खिड़कियां, दरवाजे और अन्य वस्तुएं शामिल थीं। बाद में भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन किला आया। इसके रखरखाव के लिए एक कर्मचारी नियुक्त किया गया। किले के महत्त्व के बारे में बताते हुए उन्होंने यह भी कहा कि लगभग 5 साल पहले यहां एक अष्टधातु की बड़ी तोप मिली थी, जिसे मध्य प्रदेश के छतरपुर प्रशासन द्वारा खजुराहो में स्थानांतरित किया गया था। आज भी यह तोप खजुराहो में रखी हुई है।
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खनन के कारण किले को हुआ नुकसान
पंडा देव के रहने वाले राजकुमार कुशवाहा का कहना है कि यह किला दो राज्यों के सीमा पर स्थित है और ऐतिहासिक धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए सरकार की ओर से कई कदम उठाए गए हैं। हालांकि, केन नदी में अवैध खनन के कारण किले की चट्टानों को काफी नुकसान पहुंचा है। कुछ साल पहले स्थानीय प्रशासन ने अवैध खनन पर कड़ी कार्रवाई की थी, जिससे किले के आसपास की स्थिति में सुधार हुआ था। अब, किले के रखरखाव और इसके पर्यटन स्थल के रूप में विकास को लेकर सरकार ने बजट भी मंजूर किया है।
किले की विशेषताएँ और विकास
राधा कृष्ण शर्मा, गढ़ा गंगा पुरवा के निवासी हैं। वह कहते हैं कि यह किला काफी ऊंचाई पर स्थित है। यहां की दीवारें बहुत ही सुंदर और मजबूत हैं। वे कहते हैं कि किले के बारे में यह खास बात है कि चाहे कितनी भी बाढ़ आ जाए, यह किला कभी भी डूबता नहीं है। यह किले की एक विशेषता है जो इसे और भी अद्वितीय बनाती है।
पर्यटन विभाग द्वारा किले के विकास की दिशा में कदम
दिसंबर 2024 में अमर उजाला के पेज पर प्रकाशित खबर के अनुसार, पर्यटन विभाग ने इस ऐतिहासिक किले को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। केन नदी में स्थित इस जल दुर्ग को अब सजाया और संवारा जा रहा है। पर्यटन विभाग को शासन द्वारा 5.81 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया गया है, जिससे किले के पास पहुंच मार्ग और रिवर फ्रंट विकसित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, पार्क में औषधीय पौधे भी लगाए जाएंगे, जिससे किले की सुंदरता और बढ़ेगी।
यह किला मकर संक्रांति के समय एक बड़े मेले का आयोजन करता है, जहां दूर-दूर से लोग आते हैं। किले को विकसित करने के बाद यहां और भी अधिक पर्यटक आ सकते हैं। यह स्थल कालिंजर किले के जैसा ही एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकता है। पर्यटकों के लिए मार्ग बन जाने और रिवर फ्रंट के विकास से यह किला अब और भी आकर्षक बन जाएगा।
रनगढ़ किला, जो अब तक अनजाना था। जल्द ही पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण स्थल बनेगा और बुंदेलखंड क्षेत्र का नाम रोशन करेगा।
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