अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर सुनिए लॉकडाउन में घर वापस आये मजदूरों की दास्तां :दिहाड़ी मज़दूर पर पलायन लोकडाउन के ऐलान के बाद सड़को पर रेंगता , घर वापस दिखाई देता मज़दूर को देखकर आपके मन में मज़दूरों के प्रति सहानुभूति और सरकार के ऊपर गुस्सा आई होगी। आपको लगा होगा कि ये मज़दूर जो परिस्थितियों को झेलकर हज़ारों किलोमीटर की दूर तय करके अपने बच्चों और पत्नी की साथ घर पहुंचा वह बहुत गुस्से में होगा। इन मज़दूरों से भी पूंछ लीजिए साहब की वह दुबारा पलायन करेंगे? सुन लीजिए उन्हीं की जुबानी जनाब ये मज़दूर हैं, इनकी मजबूरी है प्रदेश जाना। अगर जाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या?चाहे आप इनको ढींढ कहें या मजबूर। हमने इस पर बांदा चित्रकूट और महोबा से इस स्टोरी का कबरेज किया। हमें लगा शायद मज़दूर अब परदेश नहीं जाएंगे जितनी दुख और परेशान झेलकर आए हैं तो सरकार से गुस्सा होंगे कि सरकार ने मज़दूर और अमीरों के साथ उनको घर तक पहुंचाने में भेदभव किया। जब हमने उनसे बातचीत की तो पता चला कि वह परदेश नहीं जाएंगे तो उनके बच्चे भूखों मर जाएंगे। परदेश तब तक जाएंगे जब तक उनमें जान है। सरकार को जो भेदभाव करना है करे उझसे उनका कोई लेना देना नहीं। उनको अगर चिंता है तो सिर्फ रोटी कपड़ा की।इतना सब कुछ सहने के बाद भी लोग सिर्फ पेट और परिवार के लिए बाहर कमाने जायेगे उन्हें भी पता है अगर न गए तो खाना कहा से पाएंगे | इनको घर वापस आने में इतनी दिक्कतों का सामना करना पड़ा तब भी इनके हौसले कमज़ोर नहीं हुए