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प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी ने 24 फरवरी को कुम्भ मेले के दौरान, बेहतर काम के लिए पांच सफाई कर्मचारियों के पैर धोए। लेकिन क्या वाकई ये सम्मान था। या राजनीति मजबूरी? जानते हैं इस पर सफाई कर्मचारियों की राय। राजनीति में सब मुमकिन है और ये पब्लिक भी सब जानती है।
सफाई कर्मचारी सुरेश ने बताया कि हम देखने तो नहीं गये, कि किसके पैर धुले या नहीं धुले, लेकिन हमारी समझ में, तो ये दिखावा ही है। क्योंकि आ रहे हैं चुनाव इसलिए है सब। बाकी सब अपने-अपने किस्मत की बात होती है।
सफाई कर्मचारी बाँदा का कहना है कि सम्मान से कुछ नहीं होता। सम्मान से तो पेट नहीं भर जाना है। रोजी रोजगार से पेट भरना है।
सफाई कर्मचारी रघुनाथ ने बताया कि पैर धोने से समाज जान जायेगी, कि जमादार के पैर धोए। अभी प्रधानमंत्री है, मुख्यमंत्री है झाड़ू लगा देंगें तो झाड़ू लगाने से क्या होता है? अपने घर के सामने सब लोग झाड़ू लगते हैं। झाड़ू लगाने से जमादार बन गये वो। ये सब दिखावा है। यहाँ एक दिन तहसीलदार, डिप्टी में झाड़ू लगाया सामने चौराहा में, तो क्या डिप्टी साहब बदल गये? या चेयरमैन बदल गया जाति बदल गयी। नहीं बदली कोई जाति।
विनोद सफाईकर्मी का कहना है कि प्रधानमंत्री द्वारा हमारे पैर धुलने से समाज की छुआछूत की भावना बदल तो जाएगी नहीं। पैर धुलने से समाज कि व्यवस्था थोड़ी बदल जाएगी। जो वर्ण व्यवस्था चल गयी है, वो अभी चल ही रही है। अब ये उनका दिखावा हो या प्रलोभन हो कुछ तो है ही। या राजनीति, लेकिन हम तो यही चाहते हैं, कि हमारा भी उद्धार हो।
सफाईकर्मी रामकिशोर ने बताया कि वोट आ रहे हैं। उसी के बारे में सब हो रहा है और क्या सोचना है?
सफाईकर्मी किशोरी लाल का कहना है कि उस बार इसी तरह फुसलाकर और अबकी बार भी।
सफाईकर्मी राजाराम ने बताया कि भजन आपको साफ बताएगी, कि
‘जब मन की कोठरिया साफ नहीं, ऊपर से नहाये का होई,
कपट कतर जब चल ही रही, अब माला घुमाये का होई
काया की गाड़ी ज्ञान का इंजन, चालक कहाए का होई,
जब एक्सीडेंट तुम कर ही दियो अब हारन बजाये का होई’।