गाँव में रह रहे ज़्यादातर लोगों के पास बांस के कारोबार के अलावा और कोई दूसरा काम नहीं है। लेकिन जब से लॉकडाउन लगा है तब से इनका धंधा चौपट हो गया है।
पिछले साल आई कोरोना महामारी की चपेट में हर व्यवसाय, हर व्यक्ति आया है। जो गरीब मज़दूरी या कोई अन्य छोटा-मोटा व्यापार करके अपने परिवार का पेट पालते थे, वो लॉकडाउन लगने के कारण आज एक-एक रोटी के मोहताज हो गए हैं। कुछ ऐसा ही हुआ है उत्तर प्रदेश के ललितपुर ज़िले के ब्लॉक महरौनी के एक गाँव में। गाँव टपरियन मुक्ति धाम में वशंकर समुदाय के लोग यह लोग बांस से डलिया, टोकरी आदि बर्तन बनाकर आसपास के गावों में बेचते थे लेकिन लॉकडाउन लगने के कारण अब हांथ से बनाए गए सामन की बिक्री होना बंद हो गई है। जिसके चलते यह लोग कई प्रकार की आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
मीलों जाते हैं बर्तन बेचने, लेकिन नहीं होती बिक्री-
इसी गाँव की रहने वाली लक्ष्मी का कहना है कि गाँव में रह रहे ज़्यादातर लोगों के पास बांस के कारोबार के अलावा और कोई दूसरा काम नहीं है। लेकिन जब से लॉकडाउन लगा है तब से इनका धंधा चौपट हो गया है। इन ग्रामीणों के पास न ही कोई दूसरा रोज़गार का जरिया है और न ही खेती बाड़ी के लिए ज़मीनें हैं। ऐसे में इन लोगों के लिए रोज़ का घर-खर्च निकाल पाना दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा है। लक्ष्मी ने हमें बताया कि कोरोना काल में भी ग्रामीण बांस से बने बर्तन बेचने 10-10 किलोमीटर दूर के गावों में पैदल जाते हैं लेकिन गाँव के लोग भी कोरोना महामारी के कारण किसी बाहर से आ रहे व्यक्ति से कुछ भी खरीदने में कतराते हैं। कई बार तो बिक्री करने के लिए इन लोगों को घंटों एक गाँव से दूसरे गाँव टहलना पड़ता है, पर हांथ निराशा ही लगती है।
पहले अप्रैल-मई के महीने में ज़ोरो-शोर से होती थी बर्तनों की बिक्री-
गाँव की सगुनिया ने हमें बताया कि उनके परिवार में मौजूद 6 लोगों का पेट पालने का ज़िम्मा उनके ही ऊपर है। इसलिए वो हर शाम गाँव के बाहर लगने वाले बाज़ार में जाकर बांस के बने बर्तन बेचती हैं। सुगनिया का कहना है कि लॉकडाउन लगने से पहले उनको इस काम से इतना मुनाफ़ा तो हो जाता था कि वो अपने परिवार को दो वक्त की रोटी आराम से खिला पाती थीं, लेकिन अब न ही उनके बर्तन बिक रहे हैं और न ही उनके परिवार का रोज़ाना की होने वाली छोटी सी आमदनी से गुज़ारा हो पा रहा है। उन्होंने बताया कि हर साल अप्रैल और मई के महीने में बांस से बने सामान का काम सबसे ज़्यादा चलता था और वो लोग इतना कमा लेते थे की साल भर आराम से रह पाते थे। परन्तु पिछले 2 सालों से कोरोना महामारी भी अप्रैल और मई के महीने में तेज़ी पकड़ लेती है जिसके कारण सामान न बिकने के साथ-साथ इनकी दिन-रात की मेहनत पर भी पानी फिर जा रहा है।
रामस्वरूप का कहना है कि गाँव में बच्चा से लेकर बुज़ुर्ग व्यक्ति तक बांस के अलग-अलग प्रकार के बर्तन बनाने में माहिर है। पर ज़्यादातर लोग बांस की डलिया बनाकर बेचते थे, जिससे उनकी अच्छी कमाई हो जाती थी। परन्तु अब ग्रामीणों का सामान बिकना बंद हो गया है। कई लोग चाहते हैं कि वो किसी साधन से शहर की ओर चले जाएँ और बर्तन बेच लें परन्तु साधन का किराया भी इतना महंगा है कि लोग अब बाहर जाने से भी कतरा रहे हैं। रामस्वरूप ने बताया कि नवरात्रि और हिन्दू धर्म के नए साल शुरू होने के अवसर पर लोग उमड़-उमड़ कर बांस के बर्तन खरीदने आते थे। लेकिन कोरोना संक्रमण ने इन लोगों का सारा व्यापार ध्वस्त कर दिया है।
कुछ ग्रामीण करते थे बैंड-बाजे का काम, पर वो भी हुआ बंद-
गाँव में कई लोग बांस के बर्तन बनाने के साथ-साथ शादियों में बैंड-बाजा बजाने का भी काम करते थे। लेकिन लॉकडाउन लगने के साथ ही सरकार ने शादियों में भी कम से कम लोगों के होने के आदेश दे दिए हैं, जिसके कारण यह लोग बैंड-बाजे के काम से भी कोई कमाई नहीं कर पा रहे हैं। गाँव की देवी ने बताया कि बर्तनों के साथ-साथ बैंड-बाजे भी अब घर के किसी कोने में रखे हुए हैं। अब न ही शादियां इतनी धूमधाम से होती हैं और अगर होती भी हैं तो बैंड वालों को बुलाया नहीं जाता है।
गाँव के लोगों का कहना है कि सरकार और प्रशासन को गरीबों के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए ताकि वो लोग भुखमरी का शिकार न हो जाएँ। यह लोग चाहते हैं कि सरकार उन्हें कोई स्थायी रोज़गार दिलवा दे जिससे यह लोग इस परेशानी के दौर से बाहर निकल आएं। टपरियन मुक्ति धाम गाँव के साथ-साथ देश के ज़्यादातर गावों में रह रहे लोग इस समय बेरोज़गारी का शिकार हो चुके हैं। जिन क्षेत्रों में सरकार ज़रूरतमंदों को मुफ्त राशन वितरण कर भी रही है, उससे परिवार में मौजूद लोगों का गुज़ारा नहीं हो पा रहा। ऐसे में ज़रूरी होगा कि सरकार इन ग्रामीणों को रोज़गार के नए अवसर प्रदान करे, साथ ही हर योजना का लाभ भी दिलाए।
इस खबर को खबर लहरिया के लिए राजकुमारी द्वारा रिपोर्ट किया गया है।
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