भट्ठा मालिक द्वारा किसी के लिए भी पानी, बिजली, दवा व शौचालय की व्यवस्था नहीं कराई गई थी। भट्ठे में बस छोटी-छोटी टंकी रखी हुई थी जिसमें 2 या 3 दिन में पानी छोड़ा जाता था जोकि एक दिन में ही खत्म हो जाता। उतने पानी में ही मज़दूरों को नहाना आदि चीज़ें करनी पड़ती थी।
बांदा जिले से कई परिवार ईंट पथाई का काम करने के लिए रायबरेली गए थे। वहां गए मज़दूरों का आरोप है कि वहां न तो उन्हें सही से रोज़गार दिया जा रहा था, न ही वेतन और न ही रहने-खाने की उचित व्यवस्था थी। वहीं वहां के ठेकेदार राघवेंद्र सिंह द्वारा उन्हें प्रताड़ित किया जाता था। ऐसे में वहां के ही एक मज़दूर की मदद से असंगठित बंधुआ मजदूर मुक्ती मोर्चा के अध्यक्ष को मामले के बारे में सामूहिक शिकायत पत्र लिखा गया जिसके बाद प्रशासन की मदद से मज़दूरों को 23 मई 2023 को मुक्त कराकर उनके घरों को भेजा गया।
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असंगठित बंधुआ मजदूर मुक्ती मोर्चा ने की मदद
असंगठित बंधुआ मजदूर मुक्ती मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष दल सिंगार ने खबर लहरिया को बताया कि उन्हें शिकायत मिली थी कि बांदा जनपद के नरैनी और अतर्रा तहसील के पांच मज़दूर परिवारों को रायबरेली के चहोतर में बंधक बनाकर ईंट पाथने का काम लिया जा रहा है। उन्हें तय मानकों के अनुसार सुविधाएं नहीं दी जा रही है। इसके बाद उन्होंने रायबरेली और बांदा के जिला प्रशासन से बात की और मज़दूरों को मुक्त कराने की मांग की।
सूचना मिलने के बाद जिला प्रशासन सक्रियता दिखाते हुए मज़दूरों को मुक्त कराया और उन्हें घर भेजा।
इन पांच परिवारों को पहुंचाया घर
खबर लहरिया को मिली जानकारी के अनुसार, ये पांच परिवार भट्ठे में काम करने के लिए गए थे। बल्लान व गांव के मजरा डंगरा पुरवा निवासी मैना (55) व पति इंद्रपाल (60), राजकुमारी (38) व पति ओमप्रकाश (43), शीलू (18), रोशनी (14), शिवानी (5) पुत्री ओम प्रकाश , हिम्मत (37), इन सभी लोगों को भट्ठे से मुक्त कराया गया था।
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मज़दूरों की परेशानी
रामरहित नाम के व्यक्ति ने बताया कि उन्होंने तेरा (बा) गांव के मजरा सदला पुरवा निवासी ठेकेदार रामप्रकाश के साथ ठेकेदारी में 50 प्रतिशत की पार्टनरशिप की थी। इसके बाद उन्होंने अपनी तरफ से 5 परिवारों को मज़दूरी के लिए रायबरेली राघवेंद्र सिंह के भट्ठे में जनवरी में इस साल मज़दूरी के लिए भेजा था। वह खुद भी वही काम कर रहे थे।
वह बताते हैं कि भट्ठा मालिक द्वारा किसी के लिए भी पानी, बिजली, दवा व शौचालय की व्यवस्था नहीं कराई गई थी। भट्ठे में बस छोटी-छोटी टंकी रखी हुई थी जिसमें 2 या 3 दिन में पानी छोड़ा जाता था जोकि एक दिन में ही खत्म हो जाता। उतने पानी में ही मज़दूरों को नहाना आदि चीज़ें करनी पड़ती थी।
इसके आलावा उनका यह भी आरोप गए कि उन्हें कभी बिलकुल काम नहीं दिया था तो कभी दोगुना काम दिया जाता था। 26 दिन काम करने पर भी मज़दूरों को 1000 से 500 रूपये ही दिए जाते थे। इस तरह से उनका मानसिक व शारीरिक शोषण किया जा रहा था।
अतः ईंट भट्ठों में मज़दूरों के साथ हो रहे इस तरह के शोषण के मामले सामने आते रहते हैं जिनमें कई मामलों में मज़दूर मुक्त हो जाते हैं और कई में न तो कोई सूचना देने वाला मिलता है और न ही कोई मददगार।
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गई है।
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