बुंदेलखंड में मजदूर और किसानों की आत्महत्या करने का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। हर रोज किसी ना किसी कारण की वजह से लोग आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसा ही एक केस महोबा जिला के कबरई कस्बा में 18 जुलाई को निकल कर आया है। जिसमे एक गरीब मजदूर किसान ने आर्थिक तंगी के कारण अपने ही घर में फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली है। इस पूरी घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और शव को कब्जे में लेकर पंचनामा भर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। पर अभी तक कोई भी प्रशासन पीड़ित परिवार से मिलने नही पहुचा है। पीड़ित परिवार के घर मे खाने के लाले पड़े हैं।
कौन कौन है मृतक के परिवार में
अवधेश मृतक के भाई ने बताया कि मृतक के उसके परिवार में 4 जवान लड़कियां है, 2 छोटे छोटे लड़के हैं। उसको अपने लड़कियों की शादी की चिंता बनी रहती थी। जिससे वह परेशान रहता था। इस लॉक डाउन को वजह से कोई रोजगार नही मिल रहा था। जिससे दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से मिल पाती थी। सुबह जब हम लोग जागे तो हमारा भाई फाँसी के फंदे पर लटका हुआ मिला।
क्या है खेती के हाल
रोटी हुई शोभा बताती है कि हमारे पास करीब 5 बीघा जमीन है। पर हर साल सूखा पड़ने के कारण कुछ नही हुआ। रोज को मजदूरी के सहारे हमारा परिवार चलता था।
मृतक की पत्नी ने सुनाई अपनी कहानी
मृतक की पत्नी ने बताया कि सुबह हम उठकर खाना बना देते थे। और वो खाना लेकर काम मे चले जाते थे। अगर काम लग जाता तो ठीक है नही तो वापस मायूस होकर आ जाते थे। और आकार हमसे हर रोज कहते थे। जब हम पेट भरने के लिए नही कमा सकते तो बच्चियों की शादी कैसे करेंगे। सब लोग टोकते है कि आपकी लड़की जवान हो गयी है कब शादी करोगे। जब हमारे पास कुछ नही है तो कहा जाये।
मृतक की पत्नी ने बताया कि घर मे जवान बेटियों के अब कैसे पीले हाथ होंगे। परिवार चलाने के लिए कोई सहारा नही है। लड़के छोटे छोटे है। इस लॉक डाउन में हम कही मजदूरी भी करने नही जा सकते है। वही थे जो मजदूरी करके बच्चों का पेट भरते थे।
इसके पहले भी हुआ था हादसा
करीब 15 साल पहले इसी घर मे अज्ञात कारणों के चलते आग लग गयी थी। जिसमे सब सामान जल गया और एक छोटा बच्चा भी जल गया था। बहुत मशक्कत के बाद आग को काबू में पाया था। उसके बाद हम सब लोग एक एक रुपये को तरसने लगे।
क्या है पुलिस का कहना
कबरई पुलिस ने कहा कि ये सच है कि उसकी दयनीय स्थिति है। पर जो हमारी जांच में आया है की उसको लड़कियों की शादी की बहुत ही टेंशन रहती थी। जिसकी वजह से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है। हम मौके पर गए थे। शव को पंचनामा भरकर पोस्टमार्टम कराया है। रिपोर्ट में भी फांसी लगने से ही मौत हुई है।
दोस्तो यह तो हम एक किसान की आत्महत्या की बात कर रहे है, पर बुंदेलखंड में किसानों का आत्महत्या कर लेना कोई बड़ी बात नही है। यह एक आम बात हो गई है। जब भी चुनाव होता है या चुनाव की तैयारियां होती है तो किसानों की समस्या और उनके मुद्दे लंबे कागजो में छपाये जाते है। किसानों की समस्या से लड़ने के लिए भी कई यूनियन संगठन भी बने है। पर किसानों की समस्या जैसी की तैसी बनी है। इस लॉकडाउन की वजह से किसान हर तरह से जूझ रहा है। किसान आज भी आत्महत्या करके अपनी जान गवां रहे है। सवाल ये उठा रहे थे कि आखिर कब तक किसान आत्महत्या करेगा। नेताओ के लिए वह सिर्फ के एक साधारण किसान होगा। या कभी उनकी समस्या भी एक बड़ी समस्या बनेगी।
भारत को एक कृषि प्रधान देश माना जाता है, फिर भी किसानों की दशा यहां बदहाल है। दिन प्रतिदिन किसानों की आत्महत्या की घटना बढ़ती जा रही है।आकड़ों की मानें तो विगत दस सालों में स्थिति और भी भयावह हो गई है। नेश्नल क्राइम ब्यूरो के अनुसार 2004 में सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की, ये संख्या करीब 18,241 है।
बीते दस सालों का आंकड़ा यदि देखा जाए तो पता चल जाएगा कि भारत में अन्नदाताओं की क्या स्थिति है। आइए आपको बताते हैं क्या हैं ये आकड़े
2004 से लेकर 2014 तक हर साल लगभग पंद्रह से अट्ठारह हजार किसानों ने मौत को गले लगाया है।
2004- 18,241
2005- 17,131
2006- 17,060
2007- 16,632
2008- 16,796
2009- 17,368
2010- 15,964
2011- 14,027
2012- 13,754
2013- 11,772
2014- 12,360
किसानों की आत्महत्या का सिलसिला लगातार जारी है, किसान अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं।
कर्जमाफी की मांगे लेकर ये आंदोलन तो कर रहे हैं । अब देखना ये है कि देश के अन्नदाताओं की मांग पर सरकार क्या कदम उठाती है।
क्या किसान अपने इस संघर्ष में कामयाब होंगे या आत्महत्या का ये सिलसिला अभी भी जारी रहेगा।