खबर लहरिया Blog Kulhad: चाय देने के लिए इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के कुल्हड़ का सफर

Kulhad: चाय देने के लिए इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के कुल्हड़ का सफर

जब भी चाय कि बात होती है तो अक्सर लोगों को मिट्टी के कुल्हड़ की याद आती है। सबको लगता है कि काश! हर रोज मिट्टी के कुल्हड़ में चाय पीने को मिले। आपने देखा होगा कि जिस चौराहे पर भी कुल्हड़ वाली चाय मिल रही होती है वहां लोग सबसे ज्यादा चाय पीना पसंद करते हैं।

कुल्हड़ की तस्वीर (फोटो साभार: सुमन)

रिपोर्ट – सुमन, लेखन – गीता 

चाय भला किसे पसंद नहीं है और हां चाय अगर कुल्हड़ में मिल जाए तो मजा ही आ जाता है। पर एक कुल्हड़ से कई लोगों कि जिंदगी भी रोशन हो जाती है। जी हां…. आप सही सुन रहे हैं क्योंकि इसको बनाने वाली फैक्ट्री की रफ्तार अब तेजी से बढ़ गई है। एक समय था जब लोग मिट्टी के बर्तनों पर पूरी तरह से निर्भर हुआ करते थे। मिट्टी के बर्तनों का चलन धीरे-धीरे खत्म सा हो गया लेकिन आधुनिकता के दौर में बड़े-बड़े होटलों में कुल्हड़ वाली चाय जब से आई है तब से मिट्टी के कुल्हड़ की बिक्री बढ़ गई है। कुल्हड़ बनाने की बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां अलग-अलग समुदाय के लोगों ने खोली हैं जिससे वह खुद बेरोजगारी से छुटकारा पा पाए हैं और दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं। ऐसी ही एक ग्रे क्राफ्ट नाम कि फैक्ट्री पटना जिले के फुलवारी प्रखंड अंतर्गत आने वाले ईशोपुर के पालन एरिया में खुली है।

 

अक्सर सुनने को मिलती है बेरोजगारी की कहानी

दोस्तों अक्सर हम सभी लोग सुनते है कि बेरोजगारों की फौज बढ़ती जा रही है। हर किसी को सरकारी नौकरी चाहिए। लोग पलायन कर रहे है लेकिन पटना जिले के फुलवारी प्रखंड अंतर्गत आने वाले ईशोपुर गांव के लगभग 30 वर्षीय एक युवक ने सरकारी नौकरी की इच्छा को छोड़ कुल्हड़ बनाने की निजी फैक्ट्री खोलकर अच्छी आमदनी कमाने के साथ ही दूसरे के पेट भरने का काम भी किया है। वह बेरोजगार था लेकिन उसने बेरोजगारी को अभिशाप नहीं बनने दिया। उसे वरदान के रूप में लोगों के सामने साबित कर दिखाया है। इस नए आइडिया के साथ उसने खुद का कुल्हड़ बनाने का कारोबार शुरू किया जिसकी मांग अब शहर के साथ -साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस समय तेजी से बढ़ रही है।

कुल्हड़ की चाय बदल देती है मुंह का स्वाद

जब भी चाय कि बात होती है तो अक्सर लोगों को मिट्टी के कुल्हड़ की याद आती है। सबको लगता है कि काश! हर रोज मिट्टी के कुल्हड़ में चाय पीने को मिले। आपने देखा होगा कि जिस चौराहे पर भी कुल्हड़ वाली चाय मिल रही होती है वहां लोग सबसे ज्यादा चाय पीना पसंद करते हैं। चाहे लोगों को उस चाय के लिए कितना भी इंतजार क्यों न करना पड़े लेकिन चाय तो मिट्टी के कुल्हड़ में पीने का ही शौक रखते हैं। आज हम कुल्हड़ पर बात कर रहे हैं कि आखिरकार ये मिट्टी के कुल्हड़ बनते कैसे हैं।

मिट्टी से कुल्हड़ बनाने के तरीका

कुल्हड़ बनाने वाली फैक्ट्री में काम करने वाले सुशील कुमार बताते हैं कि कुल्हड़ बनाने के लिए पहले मिट्टी को मिक्सर पर डालते हैं और पानी डालते हैं। चार से पांच बार मिक्सर को चला कर मिट्टी बनाते हैं फिर पास में ही एक छन्नी लगी होती है जिसमें मिट्टी छान करके नाली के द्वारा बहाई जाती है जिससे मिट्टी में जो कचड़ा होता है वह छन्नी पर ही रह जाता है। मिट्टी नाली के द्वारा आगे मैदान बहाई जाती है जहां पर उसे सुखाने का कार्य किया जाता है। जब मिट्टी साफ सुथरा होकर दूसरी मशीन में जाने के लिए तैयार होती है।

तकनीकी ने किया विस्तार

सुशील कुमार कहते हैं कि, नई – नई तकनीकि आने के बाद से हमारा जीवन काफी आसान हो गया है। कल तक जो काम हम अपने हाथों से करते थे वो अब मशीनों से होने लगा है। दोस्तो आपने अक्सर देखा और सुना भी होगा कि मिट्टी के बर्तन कुम्हार हाथ से तैयार किया करते थे आज हम आपको कुल्हड़ फैक्ट्री के अंदर एक ऐसी मशीन दिखाएंगे जो मिट्टी का कुल्लड़ बना कर काफी जल्दी तैयार कर देती हैं जिनका इस्तेमाल खासकर चाय और लस्सी देने मे किया जाता है।

अलग-अलग तरह की हैं मशीनें

आप देख पा रहे हैं कि वहां बहुत सारी मशीनें लगी हैं जो मोटर और बिजली से चलती हैं। फैक्ट्री में काम करने वाले वर्कर इमरान द्वारा मोटर चालू किया जाता है। एक बार में 20 सांचे रख दिए जाते हैं ताकि इन्हें आसानी से बना सकें क्योंकि मोटर चालू होते ही तेजी से कुल्हड़ बनना शुरू हो जाता है इसलिए काम में बहुत ध्यान देना पड़ता है।

कुल्हड़ बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली मशीन की तस्वीर (फोटो साभार: सुमन)

 

6 महीने से इस फैक्ट्री में करते हैं काम

काम करने वाले शनि ने बताया कि वह यहां पिछले 6 महीने से काम कर रहे हैं और अब उनका हाथ काम में पूरी तरह बैठ गया है। पहले उनके साथ 6 लोग और काम करते थे लेकिन कुछ की तबीयत खराब होने के कारण वह नहीं आ पा रहे हैं। अभी उनके साथ दो व्यक्ति और काम कर रहे हैं। वह बताते हैं कि रोजाना लगभग 2500 कुल्हड़ बनाने का लक्ष्य रहता है।

जरीना खातून कहती हैं कि वह फुलवारी की रहने वाली हैं और रोज सुबह 9 बजे आती हैं और शाम 6 बजे तक काम करती हैं। जरीना ने बताया कि जब से यह फैक्ट्री शुरू हुई है तभी से यहां काम कर रही हैं। पहले उनके साथ तीन महिलाएं और काम करती थीं लेकिन अब उनकी तबीयत खराब है। इसलिए नहीं आ रही हैं।

कुल्हड़ की सफाई करती हैं जरीना

जरीना का काम होता है कुल्हड़ों को घिस कर साफ सुथरा पीने लायक बनाना। अगर यह काम अच्छे से नहीं होगा तो जब लोग उसमें चाय पिएंगे तो मुंह में चोट लगने का डर होता है। घिसने के बाद कुल्हड़ों को पास में पड़ी प्लाई पर सुखाने के लिए फैलाया जाता है फिर सूखने के बाद कुल्हड़ को एक-एक करके लाइन से रखा जाता है। आगे का काम दूसरे व्यक्ति करते हैं। वह कोशिश करती हैं कि जितने कुल्हड़ आज तैयार हों उन्हें कल तक सुखा ले। सुखाने में 3 से 4 घंटे लगते हैं और यह बहुत जरूरी होता है क्योंकि पानी पूरी तरह सूखना चाहिए।

रोजगार पाकर खुश हैं मजदूर

मोतिहारी के रहने वाले रवि कहते हैं कि वह भट्ठी के अंदर से कुल्हड़ निकाल रहे हैं। इनमें से कुछ सही हैं और कुछ खराब भी होते हैं। यहां सैलरी अच्छी मिलती है इसलिए वह बाहर जाने की बजाय यहीं रहकर काम करना पसंद करते हैं। उनके साथ दो और लोग काम करते हैं। कुल्हड़ पकाने के लिए भट्ठी में पहले नीचे गोइठा बिछाया जाता है फिर आग लगाई जाती है। इसके बाद कुल्हड़ की लाइन लगाई जाती है और फिर उस पर भूसा बिछाया जाता है। कुल्हड़ को नीचे से ऊपर तक अच्छी तरह लगाया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 24 घंटे का समय लगता हैं। भट्ठी में हर घंटे करीब 4000 कुल्हड़ पककर तैयार होते हैं फिर उन्हें बाहर निकाला जाता है और मार्केट भेजने के लिए तैयार हो जाते हैं।

कुल्हड़ चाय फैक्ट्री की शुरुआत

ग्रे क्राफ्ट फैक्ट्री के मालिक कहते हैं कि इसकी शुरुआत 21 अक्टूबर 2024 में की गई थी। गैस की भट्टी पर पकाने से लोगों को हानि होती है। पहले तो उससे निकलने वाला धुआं लोगों को हानि पहुंचता है जिससे लोग बीमार होते हैं। साथ ही काम करने वालों को खतरा होता है। इसीलिए वह देशी ईंधन जो खेतों पैदा होने वाले चावल का भूसा निकलता है। उसे खरीदकर कुल्हड़ पकाते हैं। भूसा की महक से कुल्हड़ की मिट्टी में एक सुनहरी खुशबू और कलर अच्छा आता है ताकि जब भी लोग चाय पीए तो मिट्टी उसकी पहचान सकते हैं कि यह गैस के द्वारा नहीं नॉर्मल आंच में घर पर जैसे कुम्हार बर्तन पकाते हैं वैसे पकाया गया है। कुल्हड़ के लिए बहुत आर्डर आ रहे हैं लेकिन मजदूर कम हैं। वह कोशिश कर रहे हैं कि काम और बढ़ जाए जिससे खुद की आमदनी के साथ साथ और लोगों को काम दिया जा सके।

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