गोबर के उपले के कई अलग नाम हैं। कहीं इसे ‘गोइठा’ तो कहीं ‘कंडी’ भी कहा जाता है। गाय या भैंस के गोबर को हाथ से आकार देकर और फिर धूप में सुखाकर तैयार किया जाता है। गीले गोबर को आम तौर पर ग्रामीण महिलाएं हाथ से आकार देती हैं और यह प्रक्रिया ‘उपले पाथना’ कहलाती है।
ये भी देखें – प्रयागराज : बारिश से गोबर के उपले बचाने का अनोखा तरीका
सूखने के बाद महिलाएं इसे बिटौरा या भिटहुर का आकर देतीं हैं। फिर कुछ महीनों बाद यानी बारिश आने से पहले अपने घरों में रख लेते है। इसके बाद इस गोबर के उपले का इस्तेमाल पूरे साल ईंधन के रूप में किया जाता है।
वैसे तो उपलों को खाली जमीन पर बनाया जाता है लेकिन बिहार में महिलाएं दीवार,सड़क या उनकी किसी भी खाली जमीन पर उपला बना देती हैं और सूखने के बाद उसे हटा लेती हैं।
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’