14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से अनुच्छेद 351 के रूप में जो क़ानून बना उसमें हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहीं राजभाषा का दर्जा दिया।
#HindiDiwas2023: 14 सितंबर, हर साल ‘हिंदी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। हिंदी लोगों के प्रेम की भाषा को प्रतिबिंबित करती है। हृदय से निकले हिंदी के शब्दों का सामने वाले पर गहरा असर होता है। जो हिंदी भाषा के साथ पला-बड़ा, उसके लिए हिंदी गर्माहट है, सुकूं है और ठहरने का एक स्थान है जहां कोई रूककर सांस ले सकता है। किसी के साथ अगर एक उम्र बिता दी गई हो तो वह यूँ ही अपना-सा हो जाता है। हिंदी अपनेपन का एहसास है, जो करीब लाने का काम करती है, उसे जिसे कुछ बयां करना हो। बयां करने के यूं तो कई ज़रिये हो सकते हैं लेकिन अगर प्रेम की भाषा का ज़रिया हो तो उसे ही क्यों न थाम लिया जाए और हिंदी कुछ उस तरह ही है।
राष्ट्रभाषा नहीं राजभाषा
यह बात जननी ज़रूरी है कि हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि राजभाषा है। बीबीसी हिंदी की 2022 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, बाबा साहब आम्बेडकर की अध्यक्षता वाली समिति में भाषा संबंधी क़ानून बनाने का ज़िम्मा नितांत अलग-अलग भाषाई पृष्ठभूमियों से आए दो विद्वानों को शामिल किया गया था।
एक थे बंबई की सरकार में गृह मंत्री रह चुके कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जबकि दूसरे तमिलभाषी नरसिम्हा गोपालस्वामी आयंगर इन्डियन सिविल सर्विस में अफ़सर होने के अलावा 1937 से 1943 के दरम्यान जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री भी थे।
इनकी अगुआई में भारत की राष्ट्रभाषा को तय किए जाने के मुद्दे पर हिन्दी के पक्ष और विपक्ष में तीन साल तक गहन वाद-विवाद चला।
अंततः मुंशी-आयंगर फ़ॉर्मूला कहे जाने वाले एक समझौते पर मुहर लगी और 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से अनुच्छेद 351 के रूप में जो क़ानून बना उसमें हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहीं राजभाषा का दर्जा दिया गया तभी से 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाये जाने की शुरुआत भी हुई।
अनुच्छेद 343 अपनी शुरुआत में कहता है – “संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी”, उसके आगे और बाद के आठ अनुच्छेदों में बताया गया था हालांकि हिन्दी भारत की राजभाषा होगी, सभी आधिकारिक कार्यों का निष्पादन अंग्रेज़ी में किया जाता रहेगा।
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