बुंदेलखंड अपने कल्चर की वजह से काफ़ी फ़ला-फूला माने जाने वाला क्षेत्र हैं। हां, ये बात सच है कि किसी भी राज्य को वहां का कल्चर यानी संस्कृति निखारने का काम करती है। वह उसकी जीवन रेखा और जीवन के सफर को प्रदर्शित करती है। कल्चर लोगों को खुद से जोड़कर उसे वहां के निवासी का नाम देती है। इसके बाद ही कोई बुंदेलखंडी, महोबावासी आदि कहलाते हैं। हर कल्चर के बारे में बात करना तो मुश्किल है इसलिए आज हम बुंदेलखंड के अलग-अलग जिलों में लगने वाले मेलों के बारे में बात करेंगे।
– बाँदा का कालिंजर मेला
बाँदा जिले में कालिंजर किला मौजूद है। हर साल कार्तिक पुर्णिमा यानी नवंबर के महीने में 5 दिनों तक यह मशहूर कालिंजर मेला लगता है। दो सालों के बाद एक बार फिर से इस साल कालिंजर मेला लगा है। इस मेले में काफ़ी भीड़ दिखाई दी। मेले में लोग टैटू बनाते दिखे। मेले में बहुत बड़ा बाज़ार भी लगता है। काफी मात्रा में महिलाएं भी इस मेले में घूमने आती हैं और सामान खरीदने के साथ काफी मज़े भी करती हैं। मेले के घूमने के लिए कई जगहें होती हैं। किले में बड़े-बड़े तालाब और मंदिर हैं जहां लोग तालाब में नहाने के बाद दर्शन के लिए जाते हैं।
मेले की शुरुआत चंदेल नरेश परमादीदेव ने 1165 ईस्वी में की थी। इसका उल्लेख ऐतिहासिक अभिलेखों में भी मिलता है। परमादीदेव साहित्यिक एवं धार्मिक चीज़ों में रुचि रखने वाले शासक थें। बताया जाता है कि चंदेल शासक में मंत्री रहे वत्सराज द्वारा रचित रूपक षष्ठकम के छह नाटकों के मंचन में कार्तिक पूर्णिमा महोत्सव भी शामिल था। इसके बाद से ही कार्तिक पूर्णिमा पर दुर्ग में मेला आयोजित होता चला आ रहा है। यह कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तक पांच दिन होता है।
कालिंजर मेले की वीडियो यहां देखें – कालिंजर मेला: दो साल इन्तजार के बाद लगा मेला, उमड़ने लगी भीड़
– चित्रकूट का गधा मेला
भगवान राम की तपोभूमि कहे जाने वाले चित्रकूट में हर साल दीपावली के बाद ‘गधा मेला’ (Donkey Fair) का आयोजन होता है। मध्य प्रदेश के सतना जिला के अंतर्गत चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के किनारे यह मेला लगाया जाता है। इस ऐतिहासिक अंतर्राजीय मेले में कई राज्यों से गधे और खच्चरों को लेकर पशु व्यापारी यहाँ पहुंचते हैं। इन पशुओं की खरीद-बिक्री में करोड़ों का कारोबार होता है।
जानकारी के अनुसार, यह मेला मुगलों के ज़माने से चला आ रहा है और हर साल लगाया जाता है। इस मेले के बारे में जानकार बताते हैं कि मुगल शासक औरंगजेब ने यह मेला शुरू कराया था। कहा जाता है कि एक बार औरंगजेब के सैन्य बल में घोड़ों की कमी हो गई थी, जिसे पूरा करने के लिए गधे और खच्चरों को सेना में शामिल करना था। ऐसे में अफगानिस्तान से अच्छी नस्ल के खच्चर मंगवाए गए थे। इन खच्चरों को मुगल सेना में शामिल किया गया था। इसके बाद से ही हर साल मेला लगाने की परंपरा चली आ रही है। ( tv 9 द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट )
यह मेला नगरपालिका के लिए आय का भी एक जरिया है। इस मेले में विशेषकर गधों और खच्चरों का ही कारोबार होता है।
देखिये इस बार के गधे मेले की झलक – चित्रकूट का प्रसिद्ध गधा मेला
– कुलपहाड़ का जल विहार मेला
महोबा जिले के कुलपहाड़ में लगने वाला जल विहार मेला भाद्रपद शुक्ल पक्ष को लगता है। इस साल हिन्दू कलेंडर के अनुसार भाद्रपद 23 अगस्त से शुरू हुआ था। कोरोना की वजह से यह मेला इस साल लगभग दो सालों बाद लगा। मेले में झूला-गाड़ी, खेल-तमाशे आदि चीज़ें मनोरंजन की दृष्टि से आयोजित की जाती है।
मेले के दौरान 16 आराध्य देवों के विमान आकर्षण का केन्द्र होते हैं। देवों का सुखनई नदी के तीर विहार कराया जाता है। पूरी रात उत्सव होते हैं। कार्यक्रमों में कुश्ती, गीत, आर्केस्ट्रा, कवि सम्मेलन सहित आदि चीज़ें शामिल होती है। आखिरी दिनों में श्री राम दरबार सजता है और मानस सम्मेलन होता है।
इस साल का जल विहार मेला दिए गए लिंक के ज़रिये देखें – 2 साल बाद कुलपहाड़ में लगा दिवाली पर जल-विहार मेला
तो कैसा लगा आपको, बुंदेलखंड में लगने वाले मेलों के बारे में जानकार? मुझे तो बहुत मज़ा आया। कभी मौका मिले तो आप लोग भी इन मेलों की खूबसूरती और उनके इतिहास से खुद को ज़रूरी रूबरू करवाना, तो आप भी खुद को यहां के कल्चर से जुड़ा हुआ पाएंगे।