खबर लहरिया Blog महुआ से महकती रसोई: कोवा की सब्जी और डोरी के तेल की कहानी

महुआ से महकती रसोई: कोवा की सब्जी और डोरी के तेल की कहानी

चित्रकूट जिले के मऊ ब्लॉक कोलमजरा गांव में इन दिनों जंगल की खुशबू रसोई तक पहुंच रही है। पेड़ों पर महुआ के फूल और फल दोनों लगे हैं। गांव की महिलाओं के हाथों में लकड़ी की टोकरी से लेकर मिट्टी के चूल्हों तक, हर जगह महुए की महक है।

                                                               महुआ के कोए की सब्जी की तस्वीर (फोटो साभार: सुनीता)

रिपोर्ट – सुनीता, लेखन – कुमकुम 

कोवा महुआ का फल और स्वाद से भरपूर

इस समय में महुआ के पेड़ों पर फल आ गए हैं, जिन्हें गांव में ‘महुआ का कोवा’ कहा जाता है। यह कोवा पकने के बाद गिरने लगता है। गांव की महिलाएं व बच्चे सुबह-सुबह जंगल की ओर निकल जाते हैं ताकि ताजे कोवा को इकट्ठा किया जा सके। इसका सीजन मई से जून तक चलता है ‌इसके बाद डोरी (कोवा से निकलने बीज का तेल मतलब गोही का तेल) आने लगता है ‌

कमला देवी बताती हैं कि इस समय महुआ के पेड़ में कोवा आ गये है। कोवा की सब्जी इतनी टेस्टी होती है कि कटहल की सब्जी भी उसके आगे फेल हो जाती है। गर्मी के इन महीनों में हर रोज़ किसी न किसी घर में कोवा की सब्जी बनती है। यह सब्जी कई तरह से पकाई जाती है। कुछ लोग इसे सुखाकर बनाते है। कुछ लोग रसेदार तरी में, तो कुछ लोग इसे प्याज-लहसुन के साथ भूनकर रोटी या चावल के साथ खाते हैं।

कोवा की सब्जी बनाने का देसी तरीका

मनोरमा बताती हैं कि पहले लोग कोवा को सीधे पेड़ से तोड़कर लाते थे। फिर घर लाकर उसके ऊपर का छिलका सूती कपड़े या छीलने वाले किसी चीज से निकालते थे। इसके बाद कोवा को एक-एक कर काटा जाता और उसका अंदर का बीज अलग कर लिया जाता।

फिर लोहे की कढ़ाई में पानी गरम करके कोवा को थोड़ा उबालते हैं ताकि वह नरम हो जाए। इसके बाद मसाले तैयार होते थे जैसे – धनिया, जीरा, हल्दी, गरम मसाला को पीसकर रखा जाता। फिर लहसुन, मिर्च और प्याज को बारीक काटकर तड़का लगाया जाता।

हम इसकी दो तरह की सब्जी बनाते हैं। एक सूखी और दूसरी रसेदार वाली। इसकी सब्जी इतनी स्वादिष्ट होती थी कि हम लोग इसे इतना शौक से खाते थे कि सिर्फ सब्जी से ही पेट भर जाता था।

महुआ के कोए को छिलती महिला (फोटो साभार: सुनीता)

डोरी का तेल त्योहारों का स्वाद और सेहत की चाबी

जब महुआ का फल यानी कोवा पूरी तरह पक जाता है तब उसके अंदर से बीज निकाला जाता है। गांव के लोग इस बीज को डोरी कहते हैं। महिलाएं डोरी को धूप में अच्छी तरह सुखा लेती हैं और फिर गांव के तेल पेराई घर में ले जाकर उससे तेल निकलवाती हैं। इस तेल का इस्तेमाल लोग गांव में बहुत करते थे। इसे सिर्फ खाने के लिए ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लोग करते थे।

जब गांव में तीजा, हरतालिका या अन्य त्योहार आते है, तब इसी डोरी के तेल से गुझिया, पूड़ी, पकोड़ी और मिठाइयाँ बनाई जाती हैं। यह तेल खाने में बहुत स्वादिष्ट होता है और बाजार के तेल से भी कहीं ज्यादा शुद्ध माना जाता है। डोरी का तेल हड्डियों और शरीर के दर्द के लिए बहुत अच्छा होता है। ठंड में इससे मालिश करने से शरीर गरम रहता है। बच्चे हों या बूढ़े, सबके लिए यह फायदेमंद है। पहले लोग साल भर के लिए डोरी का तेल निकाल कर रख लेते थे। अब तो बाजार के तेल का इस्तेमाल ज्यादा बढ़ गया है लेकिन डोरी का तेल आज भी सबसे अच्छा और शुद्ध माना जाता है ।

 

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