नमस्कार दोस्तों द कविता शो के इस ऐपीशोड में आपका स्वागत है । आप सभी को क्रिसमस डे की ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाइयां । ये साल अब जाने को है और मैं नये साल का स्वागत करने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहु हूं । क्या आप भी नये साल का इंतजार कर रहे हैं ।जरूर से बताइयेगा । तो दोस्तो मैं 2020 को बिदा करने के तैयार हूं और ये साल जो घाव दे गया है उसपर इस एपीसोड चर्चा करूगी। दोस्तों 2020की शुरूआत ही एक भयांनक कहर के साथ हुई। जनवरी लगते ही कोरोना ने भारत में अपना पैर रख दिया था ।
जनवरी 2020में मैंने अपना शो भी कोरोना पर की थी। तब मुझे ये पता नहीं था एक किटाणु जो हमें दिखाई नहीं देता वो हमारी जिंदगी को तहस नहस कर देगा,लेकिन हुआ ऐसा ही । 2020 जितना दुख देकर गया और मै मरते दम तक नहीं भूल सकती हूं । पूरे साल मैं वो घड़ी का इंतजार करती रही की कब सुख चैन और आनंद वाली घडी होगी लेकिन वो घोड़ी आज तक नहीं आई ।हर दिन के कुछ अलग ही घाव रहें हैं। आओ और बात करें। सबसे पहले मैं खबर लहरिया की अपनी दो सदस्यों को याद करूगी जिनको 2020ने निगल गया है ।
खबर लहरिया की होनहार लेखिका रिजवाना तबस्सुम की सोसाइट की खबर ने मुझे हिला कर रख दिया । मेरा नसीब ही ऐसा था कि उस दिन मैं बनारस में थीं । और रिजवाना की मौत की खबर सुन कर मेरा शरीर सुन्न पड़ गया । रिजवाना पहली मुस्लिम युवा लड़की थी जो हर मुद्दे पर खुद कर लिखती और बोलती थी । लाक डाउन में अंतिम उसका आर्टिकल बनारस की स्थिति पर था । उसने असहाय भूखे और गरीबों राशन भी बांट रही थी । पता नहीं उसकी मौत का क्या कारण था आज तक वह राज बन कर रह गया है ।
आरोपित व्यक्ति अभी भी जेल में है । मन में सवाल उठता है कि दूसरों के मौत की खबर लिखने वाली कलम की सिपाही को पता नहीं मौत का रास्ता क्यों चुनना पड़ा ।आज हमारे बीच में ये पहेली बनकर रह गया और उसकी यादें रह रह कर दिल को चीरती हैं। एक और हमारी पुरानी सहेली कृष्णा दीदी जिन्होंने खबर लहरिया को खड़ा करने और इस मुकाम तक पहुंचाने में अपना खून पसीना बहाया है ।
उन्होंने अपनी पूरी ड्यूटी के बाद कयी साल पहले रिटायर हुई थी । लम्बी बीमारी की वजह से कृष्णा दीदी सितम्बर माह में गुजर गयी । वो खबर लहरिया में नौकरी करके अपने दो बेटों पढ़ाया और एक बेटा की नौकरी पुलिस विभाग में उनके मरने कुछ महीने पहले लगी थी। कृष्णा दीदी ने अपनी जिंदगी में बहुत संघर्ष की हैं ।
दूसरे के दुखों को अपना दुख समझती थी और तुरंत सहयोग के लिए आगे आती थी। सहनसील, हंसमुख और जुझारू साथी को खोने में हमें बहुत दुख है आपकी कमी हमें हमेशा खलेगी। तो दोस्तों और भी बहुत कड़वी यादें हैं इस साल की मैंने देश की त्रासदी, की सीन मेरे आंखों में अभी भी चल रही है । लाकडाऊन में प्रवासी मजदूरों को चिलचिलाती धूप मैं हजारों किलोमीटर पैदल चलने की वो सीन।लोगों की भूख।कोरेटांइन के दौरान महिलाओं के साथ मानसिक हिंसा,और सरकार और पुलिस का बुरा और घातक रवैया मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी।
बस हो को समाप्त करते करते मैं ये जरूर कहूंगी कि ये सरकार ने जितना जुल्म किया है वो आनेवाले वक्त में अब न करें। दोस्तों आपको कैसे लगा ये शो आप जरूर से मुझे बताईये। अगल शो पसंद आया हो तो अपने दोस्तों के साथ में सेयर करें और कमेंट करना न भूलें । अगर आपने अभी तक हमारे चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया है तो अभी ही कर लें । तो अगले एपीसोड में मैं फिर मिलूंगी कुछ करारु बातों के साथ जबतक के लिए नमस्कार