कौशाम्बी जिला के गढ़वाली गांव में लोहे के बर्तन काफ़ी प्रचलित है। आस-पास के शहर से लोग यहाँ लोहे के बर्तन खरीदने आते है । यहाँ के कारीगर बताते है कि यहाँ के लोहे के बर्तन इसिलए खास है क्यूंकि इनको काफी मेहनत से बनाया जाता है।
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लोहे को लीवर पर कई बार पिटा जाता है फिर इनको रूप दिया जाता है। यह कारोबार यहाँ पर काफी समय से चला आ रहा है। कारीगर अलग-अलग जगहों जैसे कानपुर, झाँसी, आगरा , इत्यादि से लोहा लेकर आते है फिर इसको बड़ी महनत से अन्य प्रकार के बर्तनो का रूप देते है।
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पहले 6 महीने सारे बर्तन बनाये जाते है, बाकी के 6 महीने में यहाँ के कारीगर इन बर्तनो को मेलो में ले जाकर बेचते है। लोहे के बर्तन बनाने के अलावा यहाँ के कारीगर खेती भी करते है। उसके अलावा इनके पास रोज़गार का और कोई साधन नहीं है। कमाई भी इससे कुछ खास नहीं हो पाती। उल्टा इनका लोहा लेन ले जाने में ही खुद का काफी खर्चा हो जाता है। विक्रेता से जो ये लोहा खरीदते है वह दिन पर दिन लोहे का दाम बढ़ा कर बताते है।
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