एक गांव के व्यक्ति ने बताया कि, दलितों ने अन्य लोगों को सूचित किया था कि वे एक धार्मिक आयोजन के लिए मंदिर में प्रवेश करेंगे। 9 नवंबर की रात, तथाकथित सवर्ण जाति के लोगों ने यह संदेश फैलाया कि हर घर से कम से कम एक व्यक्ति मंदिर के पास खड़ा हो, ताकि दलितों को मंदिर के अंदर जाने से रोका जा सके। यह सब इसलिए ताकि तथाकथित सर्वर्णों के पास उनकी जाति की सत्ता बनी रहे।
कर्नाटक के नवनिर्मित कलाभैरवेश्वरा स्वामी मंदिर में दलितों के पहली बार प्रवेश करने भर से तथाकथित समाज के सवर्ण लोगों को ठेस पहुंच गईं और वह मंदिर से मूर्ती लेकर बाहर निकल गए। उन्होंने मंदिर का नाम बोर्ड भी तोड़ दिया और कहा, “उन्हें मंदिर रख लेने दो; हम देवता को ले जाएंगे।”
और यह क्यों? क्योंकि तथाकथित समाज उन्हें सवर्ण कहता है जो खुद की नाक को इतना ऊँचा मानते हैं कि ज़मीन पर न चलें। लेकिन उन्हें उस ज़मीन पर रहना भी है और उन्हीं लोगों पर अपनी सत्ता भी दिखानी है जिन्हें वह ‘दलित’,’अछूत’ कहते हैं।
यह पूरा मामला, रविवार को मंड्या जिले के हनकेरे गांव का है जहां जिला प्रशासन ने पहली बार दलितों को कलाभैरवेश्वरा स्वामी मंदिर (Kalabhairaveshwara Swamy Temple) में प्रवेश करने की अनुमति दी थी। इसका विरोध गांव के तथाकथित सवर्ण जाति वाले लोगों ने किया। मुख्य रूप से वोक्कलिगा समुदाय ने। ये समुदाय मंदिर की उत्सव मूर्ती (त्योहार की प्रतिमा) हटाकर मंदिर के बाहर पूजा-पाठ करने लगे।
दशकों तक दलितों को मंदिर प्रवेश से रोका गया
डेक्कन क्रॉनिकल की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, यह पूरा मामला मंदिर में सिर्फ दलितों के प्रवेश से नहीं बल्कि मंदिर के इतिहास से जुड़ा हुआ है। मंदिर का इतिहास बताता है कि इस मंदिर में दलितों को कभी प्रवेश की इज़ाज़त नहीं दी गई थी। मंदिर को लगभग तीन साल पहले तोड़कर दोबारा बनवाया गया था। अब यह मंदिर हिंदू धार्मिक संस्थाओं और धर्मार्थ संपत्तियों विभाग के अधीन है।
रिपोर्ट बताती है कि हाल ही में, स्थानीय अधिकारियों और पुलिस के साथ बातचीत के बाद, दलितों को मंदिर में जाने की मंज़ूरी दी थी कि जिससे समाज में समानता और समावेशिता को बढ़ावा दिया जा सके।
बता दें, हनकेरे गांव में आदि कर्नाटका समुदाय (जो अनुसूचित जाति) में आते हैं और तथाकथित ऊपरी जाति के वोक्कलिगा लोग रहते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में एक गांव वाले व्यक्ति ने बताया कि, दलितों ने अन्य लोगों को सूचित किया था कि वे एक धार्मिक आयोजन के लिए मंदिर में प्रवेश करेंगे। 9 नवंबर की रात, तथाकथित सवर्ण जाति के लोगों ने यह संदेश फैलाया कि हर घर से कम से कम एक व्यक्ति मंदिर के पास खड़ा हो, ताकि दलितों को मंदिर के अंदर जाने से रोका जा सके। यह सब इसलिए ताकि तथाकथित सर्वर्णों के पास उनकी जाति की सत्ता बनी रहे।
दलित परिवारों को पुलिस व प्रशासन की मदद से मंदिर में लेकर जाया गया था। रिपोर्ट बताती है कि उसी समय फिर से तथाकथित सवर्ण जाति के लोगों ने प्रवेश का विरोध किया और मूर्ति को दूसरे मंदिर ले गए। वहीं तथाकथित सवर्ण समाज की महिलाएं मंदिर के सामने इकठ्ठा हो गईं और पुरुषों ने मूर्ति को बाहर लाकर दूसरी जगह रख दिया।
रिपोर्ट बताती है कि जैसे ही तनाव बढ़ा, जिला प्रशासन ने शांति बैठकें आयोजित कीं, जो सोमवार शाम को खत्म हुई। यह बताया गया कि बाद में दलित और वोक्कलिगा समुदाय के लोग देवता को वापस मंदिर में लेकर आये।
डॉ. बीआर अंबेडकर वॉरियर्स के अध्यक्ष गंगराजु हनकेरे, जो शांति बैठक का हिस्सा थे उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि दोनों समुदायों ने कानून का पालन करने पर सहमति जताई है। उन्होंने कहा, “दलितों को सदियों तक मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी, लेकिन अब यह बदल चुका है और दुनिया में बदलाव आया है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि हम भी इंसान हैं और हमारे समान अधिकार हैं। हालांकि, केवल कुछ ऊपरी जाति के लोग थे जो दलितों के मंदिर में प्रवेश करने से खुश नहीं थे। यह शांति से पुलिस और जिला प्रशासन की मदद से सुलझा लिया गया,।”
मंड्या के तहसीलदार शिवकुमार बिरदार ने कहा कि यह समस्या केवल कुछ ऊपरी जाति के लोगों द्वारा उत्पन्न की गई थी, और यह अब सुलझा ली गई है।
कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी बताया गया कि तथाकथित उच्च जाति के लोग सिर्फ इसलिए शांत हुए क्योंकि उन्हें कानून और प्रशासन का डर था। वह अब भी दलितों के मंदिर में प्रवेश को सही नहीं मानते और यह सच आज के आधुनिक व विकसित देश का है जहां जातिगत हिंसा व भेदभाव को तथ्य व वजह के रूप में नहीं देखा जाता है, उसे वास्तविक नहीं कहा जाता।
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