जिला महोबा ब्लाक कबरई, गाँव सिचौरा। यहां का अशोक कुमार जनवरी 2019 में कबरई के बनारस ग्रेनाइट क्रेशर में काम करता था। 13 जनवरी को क्रेशर में लगी 11 हजार वोल्टेज बिजली का तार टूटने से वह बुरी तरह घायल हो गया। क्रेशर के मुनीम और मजदूरो के द्वारा जिला अस्पताल में भर्ती कराया।जहां पर हालत गंभीर होने के कारण डॉक्टरो ने कानपुर रिफर कर दिया।
अशोक की मुँह जुबानी हाल, क्या मिल पायेगा अशोक को न्याय?
अशोक ने रोते हुए कहा कि 1 साल पहले मैं कबरई बनारस ग्रेनाइट क्रेशर का ट्रक चलाता था। 1 दिन ट्रक खराब होने के कारण मैं क्रेशर में अपना ट्रक रिपेयरिंग करवा रहा था। तभी वहाँ पर 11 हजार वोल्टेज के तार निकले हुए थे। बिजली के तार बहुत पुराने जर्जर थे। अचानक से बिजली का तार टूट कर ट्रक के ऊपर गिर गया। करंट के कारण मैं बुरी तरह जलकर घायल हो गया। वहां पर मौजूद मुनीमो के द्वारा जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां पर डॉक्टरों ने कानपुर रेफर कर दिया।
कानपुर में कहाँ कहाँ चला इलाज
अशोक ने बताया की हालत गंभीर होने के कारण कानपुर में केजीएमसी, सिविल और पीजीआई हॉस्पिटल में कई महीना इलाज चला। उसके बाद डॉक्टरों ने हाथ पैर काटने के लिए कहा, जिससे मैं घबरा गया क्योंकि फिर मैं चल फिर भी नही पाता, इसलिए मैंने हाथ पैर कटवाने से मना कर दिया, मालिक वहां पर मुझे गंभीर अवस्था में छोड़कर भाग गया। तब से लेकर आज तक न मालिक कभी देखने आया है और ना ही उसने हाल-चाल पूछा है। मैंने अपना इलाज दिल्ली में करवाया है जिसमें मेरा तीन से चार लाख रुपये खर्च हो गया है।
मदद मांगने पर क्रेशर के मालिक और मुनीमो ने किया गलत ब्यवहार
अशोक ने कहा मैं दलित जाति का हूँ, जब मैं थोड़ी सही हो गया तो क्रेसर गया। जहां पर मालिक और मुनीमो के द्वारा मुझे जातिसूचक गालियां देकर बेज्जती कर के भगा दिया। तब से लेकर आज तक में कार्यवाही के लिए भटक रहा हूं, पर कोई मेरी मदद नहीं कर रहा है, जहां भी जाते हैं वहां से हमें एक कागज पकड़ा दिया जाता है।
क्या है अभी अशोक की हालात
अशोक का कहना है कि मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करता था। करंट लगने के बाद मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूँ, मेरे दोनों हाथ की उंगलियां कट चुकी हैं, एक पैर की भी सारी उंगलियां कट गई है। मैं विकलांग की भांति घर पर ही पड़ा रहता हूँ। इस समय परिवार चलाने के लिए बहुत ही मोहताज हूँ। मेरी पत्नी 12 पास है, पर परिवार चलाने के लिए वह मनरेगा में काम करने जाती है।
कौन-कौन है अशोक के परिवार में
अशोक ने बताया कि मेरे मम्मी पापा, भाई, पत्नी और दो बच्चे है। मम्मी पापा और भाई दिल्ली में रहकर मजदूरी का काम करते हैं। गरीबी हालत होने के कारण मेरे मां-बाप इस लॉकडाउन में भी वापस घर नहीं आए। क्योंकि मेरे पास इलाज का इतना सारा कर्जा है कि मैं अकेले नहीं चुका पाऊंगा। गरीबी होने के कारण यहां पर कोई काम नहीं लग रहा है इसलिए वह बाहर पलायन कर मजदूरी करते हैं।
न्याय पाने के लिए दर दर की ठोकरे खा रहा है पीड़ित
अशोक ने बताया कि 13 जनवरी 2019 को जब करंट लगा तो मुझे बचने की उम्मीद नहीं थी। मुझे इलाज के लिए मालिक के द्वारा कानपुर ले जाया गया, जहां पर आश्वासन दिया गया कि वह पूरा इलाज का खर्च उठाएंगे। इसलिए हमने तुरंत कोई कार्यवाही नहीं की, पर बीच में ही सब लोगों ने मेरा साथ छोड़ दिया। मैंने अपने रिश्तेदारों से कर्जा लेकर अपना इलाज करवाया। उसके बाद मुझे सही होने में कई महीना लग गए। जैसे ही हम सही हुए तो कबरई थाना में दरखास देने गए, पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। हमने कबरई से लेकर महोबा डीएम, एसपी से कार्यवाही करने के लिए गुहार लगाई है, पर वह क्रेशर माफिया होने की वजह से मेरी किसी ने एक नहीं सुनी।
अशोक के केस में क्या हुई है अभी तक कारवाही
अशोक का कहना है कि मैंने कोर्ट से धारा 156 के तहत अपील की थी। जिसमें 3 जून 2019 को कोर्ट से आदेश हुआ था कि धारा 269, 337, व 506, 3 (1)10 एससीएसटी एक्ट के तहत मुकदमा लिख विविध कार्यवाही की जाए, पर वहां के इंचार्ज दरोगा ने अपने मन मुताबिक धारा लगाकर 6 जून 2019 को मुकदमा लिख लिया गया। जो कोर्ट का आदेश था उनमें से कोई धारा नहीं लगाई।
अशोक कुमार ने पुलिस पर लगाये गंभीर आरोप
अशोक कुमार ने कबरई थाना कि पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि पुलिस क्रेसर मालिक के हाथों बिक गया है, इसलिय तो कोर्ट का आदेश भी नही माना, एक तो पुलिस ने अपने मन की धारा लगा कर मुकदमा लिखा है, दूसरी मुकदमा में क्लीनचिट भी लगा कर दिया है कि क्रेशर वालों की कोई गलती नहीं है। तार टूटने से उसको करंट लगा है। इसलिए अब वहां से भी कोई न्याय की उम्मीद नहीं रही।
न्याय मिलने की उम्मीद छोड़कर अशोक ने मरने का दिया बयान
अशोक ने मायूस होकर कहां के अब हमारे लिए कहीं से कोई न्याय के रास्ते नहीं दिख रहे हैं। क्योंकि क्रेसर मालिक तो पैसा वाला है और दरोगा एसपी सब क्रेशर वाले से पैसा ले चुके हैं।इसलिए कोई हमारी मदद नहीं कर रहा है। हमारे पास करीब 4 लाख रुपये कर्जा है ,और मैं पूरी तरह से विकलांग हूं। मेरा एक बेटा 7 साल का लड़का और 4 साल की लड़की है। जब से हादसा हुआ है|
तब से मेरा लड़का हमेशा मेरी ससुराल में ही रहता है, क्योंकि मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं उनको घर पर खाना खिला पाऊं।पत्नी भी मनरेगा में काम करती है पर उसने कभी किया नहीं है तो अकेले उससे भी काम नहीं होता है। इसलिए जब तक हम से यह दर्द झेला जा रहा है तो झेल रहे हैं नहीं तो परिवार सहित आत्महत्या करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। हर रोज हमसे लोग पैसा मांगते हैं हम कहां से लोगों का कर्जा चुकाएं।
आइये हम बताते हैं आपको यहां के मजदूर और मंडियों को हाल
आपको बता दें कि कबरई मंडी पूरे प्रदेश में खनन और क्रेसर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंडी ने जहां पर कई हजार लोगों को रोजगार दिया है तो वहीं पर कई हजार मजदूरों के परिवारों को अनाथ और विकलांग कर दिया है। जब भी कोई बड़ी घटना घटती है और लोगों की जान जाती हैं तो वहां पर क्रेशर माफिया,खनन माफिया और प्रशासन एकजुट नजर आता है। वहां पर परिवार वालो को कई तरह के अस्वाशन दिये जाते। बच्चों की शादी करने के या फिर उनके परिवार की जिम्मेदारी उठाने की।
जिससे पीड़ित परिवार किसी तरह की कोई आवाज न उठाएं, पर जैसे ही यह मामला थोड़ा शांत होता है तो सब उसको भूल जाते हैं। अगर इन जगहों पर किसी की मौत हो जाती है तो उनको कुछ चंद रुपए देकर मामला को समझा-बुझाकर शांत करा दिया जाता है और अगर कोई घायल है तो उसको सांत्वना दी जाती है की पहाड़ मालिक या क्रेशर मालिक उनकी हर तरह से मदद करेंगे। क्योंकि जोश जोश में पीड़ित बोलता है, और प्रशासन भी कार्रवाई के लिए कहते हैं। पर बाद में जाओ तो प्रशासन भी मोटी रकम लिए होता है तो कोई मदद नहीं करता है और पीड़ता से चक्कर कटवाते रहता है।
क्या होता है जब ऐसी घटना घटना घटित होती है
इस पूरे मामले में एक और सच्चाई है जो हम आपको बता दें जब भी कोई घटना घटती है तो पुलिस भी ऐसे केसो में ज्यादातर समझौता करवाती हैं। इस चैन को अगर हम नीचे से ऊपर तक देखे तो एक-दूसरे से जुड़कर चैन बनी हुई है शिवाय मजदूर के अलावा जैसे कि पहाड़, खनन माफिया प्रशासन के सामने ही अवैध तरीके से विस्फोट और खुदाई का काम करवाता है, जब भी कोई केस होता है तो नीचे से ऊपर तक इसमें मोटी रकम दी जाती है। यही कारण है कि आज अशोक अपने न्याय के लिए डर डर की ठोकरे खाता फिर रहा।