उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड मैं एक समय था कि ग्रामीण महिला खेल बहुत ही मैसूर हुआ करते थे महिलाएं हमेशा इन खेलों को खेला करती थी खासकर त्योहारों में तो रात रात भर जग के गाने बजाने के साथ इन खेलों को खेला करती थी और बहुत ही मजे लिया करती थी जिससे उनको बहुत ही खुशी भी होती थी| लेकिन अब यह खेल लुप्त होते जा रहे हैं तो वही ललितपर जिले खेल के प्रति महिलाओ और लडकियों को आगे लाने के लिए सहजनी संस्था ने अच्छी पहल की है| जिसमे लडकिया और महिलाए काफी रुची लेती है तो वही बांदा और चित्रकूट में भी खेलों को महिलाएं जीवित रखने के लिए त्योहारों में खेलती हैं और हमेशा इन खेलों के गुणगान करती हैं| जब इस बारे में मैंने ग्रामीण स्तर पर महिलाओं से बातचीत की तो पता चला कि उस समय की बात ही कुछ और थी उस समय कोई डर नहीं था और महिलाएं अपने आप को बहुत ही अच्छा महसूस करती थी बाहर निकल कर एक साथ सबके बैठती बोलती थी और खेलती थी लेकिन आज का जो समय है वह बहुत ही बदल गया है आजकल लोग किसी के साथ बैठना उठना और बातचीत करना पसंद नहीं करते अपने आप में ही व्यस्त रहते हैं इस बदलते दौर को चलते लोगों को इन खेलों के लिए समय ही नहीं मिलता और डर महसूस होता रहता है उस समय कोई डर भी नहीं था लोग रात रात भर जागते थे लेकिन आजकल तो घर के अंदर ही रहना मुश्किल है| तू वही सही धनिया की टीचरों और ग्रामीण स्तर की महिलाओं का कहना है कि वह पहले मायके में तो इन खेलों को खेली है लेकिन ससुराल आकर तो इन खेलों को काम के आगे भूल ही गई थी लेकिन अब जो सजनी के तहत सूचना केंद्र ग्रामीण स्तर पर खुले हैं उनमें महिलाओं को आगे लाने के लिए और लड़कियों को आगे लाने के लिए कैरम बोर्ड कबड्डी खो-खो जैसे कई तरह के खेल खिलाए जाते हैं जिसमें वह काफी रुचि रखती हैं और उनको अच्छा भी लगता है| तू जिस तरह से यह खेल लुप्त होते जा रहे हैं और सहजन जैसे के अपने बांदा और चित्रकूट जिले में भी कार्यक्रम होने लगे तो शायद महिलाएं अभी भी इन खेलों को जीवित रखने के लिए और भी आगे आ सकती हैं