खबर लहरिया Blog जस्टिस संजीव खन्ना बने भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश, जानें उनके फैसले व क़ानूनी सफर के बारे में

जस्टिस संजीव खन्ना बने भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश, जानें उनके फैसले व क़ानूनी सफर के बारे में

डी.वाई चंद्रचूड़ भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश थे जिनका कार्यकाल 10 नवंबर 2024 को खत्म हो गया है। इसके बाद जस्टिस खन्ना ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली, जिनका कार्यकाल 13 मई 2025 तक रहेगा।

Justice Sanjiv Khanna appointed as India’s 51st Chief Justice: Key Decisions and Career Highlights

भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेते हुए जस्टिस संजीव खन्ना की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ तस्वीर, राष्ट्रपति भवन ( फोटो साभार – सोशल मीडिया)

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजीव खन्ना ( Supreme Court judge Justice Sanjiv Khanna) ने आज,11 नवंबर 2024, को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।

शपथ ग्रहण समारोह को राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया गया जिसमें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सरकार के मंत्री, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के वर्तमान और सेवानिवृत्त जज मौजूद थे।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, शपथ लेने के बाद, मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने वहां मौजूद लोगों का अभिवादन किया और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। वहाँ उन्होंने कोर्ट नंबर एक में मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाला और जस्टिस संजय कुमार के साथ मिलकर उनके सामने सूचीबद्ध 47 मामलों की सुनवाई शुरू की।

डी.वाई चंद्रचूड़ भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश थे जिनका कार्यकाल 10 नवंबर 2024 को खत्म हो गया है। इसके बाद जस्टिस खन्ना ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली, जिनका कार्यकाल 13 मई 2025 तक रहेगा।

द हिन्दू की प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि सुप्रीम कोर्ट के बगल में कोर्ट नंबर दो में, जहां वे मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले महीनों तक सुनवाई कर रहे थे, वहां उनके चाचा व प्रचलित जस्टिस एच.आर. खन्ना की एक बड़ी तस्वीर भी लगी हुई है। रिपोर्ट बताती है कि साल 1977 में आपातकाल के दौरान व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने की वजह से जस्टिस एच.आर. खन्ना को भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने का अवसर गंवाना पड़ा था।

मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले जस्टिस खन्ना के महत्वपूर्ण फैसले

भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले चीफ़ जस्टिस खन्ना ने कई मुख्य मामलों में फैसले सुनाये थे। जोकि इस प्रकार है:

दिल्ली के पूर्व सीएम का शराब नीति मामला

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के शराब नीति मामले में उन्होंने पूर्व सीएम को जमानत देते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता को एक पवित्र अधिकार बताया था। उनके फैसले का आधार इस पर भी था कि केजरीवाल को 90 से अधिक दिनों तक हिरासत में रखा गया।

उस समय जस्टिस खन्ना ने एक बड़ी पीठ से यह गुज़ारिश भी की थी कि वे ऐसे मामलों में जमानत की शर्तों पर विचार करें, जब किसी मुख्यमंत्री को पहली बार केंद्रीय एजेंसियों द्वारा मनी-लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया हो।

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर फैसला

जस्टिस खन्ना का एक और महत्वपूर्ण फैसला इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के पक्ष में था। इस फैसले में उन्होंने बैलट पेपर को फिर से शुरू करने से मना कर दिया था। इसमें उन्होंने संतुलन बनाए रखने का समर्थन किया और संस्थानों व प्रणालियों पर आंख मूंदकर विश्वास करने की आदत की आलोचना की। उन्होंने कहा कि ऐसा रवैया केवल “अनावश्यक संदेह को बढ़ावा देगा और प्रगति में बाधा डालेगा।”

संविधान की प्रस्तावना में संसोधन

हाल ही में जस्टिस खन्ना ने 42वें संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’को शामिल करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए यह कहा था कि धर्मनिरपेक्षता हमेशा से संविधान का हिस्सा रही है और यह इसके मूल ढांचे का एक अहम तत्व है।

कई मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि पिछले पांच सालों में सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में जस्टिस खन्ना का अनुभव अलग-अलग तरह का रहा है। वह उस बेंच का हिस्सा थे, जिसकी अध्यक्षता चीफ जस्टिस गोई ने की थी। इस बेंच ने 20 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व कर्मचारी द्वारा चीफ जस्टिस पर लगाए गए यौन उत्पीड़न आरोपों की सुनवाई की थी।

उनके कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट की जज, जस्टिस एलसी विक्टोरिया गौरी के पदोन्नति के खिलाफ एक मामले में दखल देने से इंकार कर दिया था।

जस्टिस खन्ना का क़ानूनी सफर

जस्टिस खन्ना का सफ़र 1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद शुरू हुआ जहां उन्होंने दिल्ली की जिला अदालतों से अपने कानूनी करियर की शुरुआत की। उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में संवैधानिक, प्रत्यक्ष कराधान/प्रत्यक्ष कर, मध्यस्थता, वाणिज्यिक, कंपनी, भूमि और पर्यावरण कानूनों जैसे विभिन्न क्षेत्रों में मामले संभाले।

एक वकील के रूप में, वे आयकर विभाग और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के वरिष्ठ सलाहकार भी रहे। इसके अलावा, उन्होंने उच्च न्यायालय में अतिरिक्त लोक अभियोजक और अमिकस क्यूरी के रूप में भी काम किया।

अतिरिक्त लोक अभियोजक (Additional Public Prosecutor) वह व्यक्ति होता है जो सरकारी अभियोजन पक्ष (Public Prosecution) का प्रतिनिधित्व करता है, विशेष रूप से न्यायालय में मामलों की सुनवाई के दौरान।

इनका मुख्य काम अपराधों में अभियोजन की प्रक्रिया को संभालना होता है, जिसमें वह अदालत में सरकार की ओर से आरोपी के खिलाफ आरोप प्रस्तुत करते हैं। अतिरिक्त लोक अभियोजक अक्सर न्यायालयों में विशेष मामलों को देखते हैं और उन मामलों में अभियोजन प्रक्रिया का पालन करते हैं। वे न्यायालय के आदेशों के अनुसार सरकारी पक्ष का बचाव या आरोप तय करते हैं।

अभियोजन का मतलब है – जब कोई अपराध हुआ हो, तो उस अपराध के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया को शुरू करना और उसे अदालत में पेश करना।

‘अमिकस क्यूरी’ (Amicus Curiae) एक लैटिन शब्द है, जिसका मतलब होता है “अदालत का मित्र”। यह एक व्यक्ति या संगठन होता है जो किसी मामले में अदालत को मदद देने के लिए अपनी राय या जानकारी प्रस्तुत करते हैं लेकिन वह मामले का हिस्सा नहीं होते।

अमिकस क्यूरी आम तौर पर उन मामलों में अदालत को कानूनी दृष्टिकोण, विशेषज्ञ राय या सुझाव देते है, जहां किसी विशेष मुद्दे पर अदालत को मदद की ज़रूरत हो, लेकिन उसे कोई पक्ष नहीं बनना होता। यह आमतौर पर उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में होता है, खासकर जटिल कानूनी मामलों में।

उन्हें 2005 में दिल्ली हाई कोर्ट के अस्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत ( (प्रमोट/आगे बढ़ाना) किया गया था और 2006 में वह स्थायी न्यायाधीश बन गए। वह उन गिने-चुने न्यायाधीशों में से एक थे जिन्हें सीधे अपने मूल उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत किया गया। उन्होंने कभी राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में काम नहीं किया। इसके अलावा, वह अपने से बड़े 32 उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पार करके सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने।

बता दें, जस्टिस खन्ना ने 18 जनवरी, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।

 

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