खबर लहरिया Blog Justice BR Gavai: भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश (CJI) बने भूषण रामकृष्ण गवई, आज शपथ ग्रहण समारोह

Justice BR Gavai: भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश (CJI) बने भूषण रामकृष्ण गवई, आज शपथ ग्रहण समारोह

मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई अप्रैल 2024 में एक भाषण में कहा था, “यह पूरी तरह से डॉ बीआर अंबेडकर के प्रयासों के कारण है कि मेरे जैसा कोई व्यक्ति, जो नगरपालिका के स्कूल में एक अर्ध-झुग्गी क्षेत्र में पढ़ता था, इस पद को प्राप्त कर सका।”

भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ पत्र पढ़ते हुए की तस्वीर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

लेखन – सुचित्रा 

भारत के मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में आज बुधवार 14 मई 2025 को शपथ ली। इसके साथ ही वे भारत के दूसरे दलित सीजीआई (CJI) और पहले बौद्ध न्यायधीश बने। उनका शपथ ग्रहण समारोह दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मौजूद रहें। न्यायाधीश भूषण का कार्यकाल 6 महीने का है जो 14 मई से शुरू होकर 23 नवम्बर को खत्म हो जाएगा। इससे पहले संजीव खन्ना भारत के मुख्य न्यायाधीश थे, जिन्होंने एक दिन पहले 13 मई 2025 को औपचारिक रूप से पद छोड़ा था यानी रिटायर्ड हो गए थे।

सीजीआई (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई कौन हैं?

न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई का जन्म 24 नवंबर, 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ। उनके पिता आर.एस. गवई सामजिक और राजनितिक थे जिसकी वजह से न्यायमूर्ति गवई ने भी कई सामजिक कार्यक्रम आंदोलन का हिस्सा बने। उनका परिवार शुरू से ही बीआर अंबेडकर की विचारधारा को अपनाते थे। उनके पिता ने 1956 में हुए बाबा साहब के बौद्ध धर्मान्तरण आन्दोलन के दौरान हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया था। आज 15 मई 2025 को उन्होंने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। इसका वीडियो एएनआई ने सोशल मीडिया X पर पोस्ट किया।

सीजीआई भूषण रामकृष्ण गवई, भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश / CJI बने

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सीजीआई भूषण दलित समुदाय से भारत के न्यायधीश बनने वाले दूसरे व्यक्ति बने। इससे पहले न्यायमूर्ति केजी बालाकृष्णन पहले दलित सीजीआई बने थे जिनका कार्यकाल 2007 से लेकर 2010 तक रहा।

सीजीआई भूषण बीआर अंबेडकर की विचारधारा से हुए प्रेरित

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सीजीआई भूषण भीम राव अम्बेडकर के विचारों से काफी प्रभावित हुए जिन्होंने उनके जीवन में यह बदलाव लाया। उन्होंने राजनीति का रास्ता न चुन कर कानून का रास्ता चुना। उन्होंने अप्रैल 2024 में एक भाषण में कहा था, “यह पूरी तरह से डॉ बीआर अंबेडकर के प्रयासों के कारण है कि मेरे जैसा कोई व्यक्ति, जो नगरपालिका के स्कूल में एक अर्ध-झुग्गी क्षेत्र में पढ़ता था, इस पद को प्राप्त कर सका।” उन्होंने अपने भाषण में “जय भीम” के नारे भी लगाए थे।

सीजीआई भूषण रामकृष्ण गवई का क़ानूनी सफर

मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार सीजीआई भूषण रामकृष्ण गवई ने नागपुर विश्वविद्यालय से बीए (बैचलर ऑफ आर्ट्स) और एलएलबी यानी वकील बनने और कानून को और गहराई से जाने की पढ़ाई पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने 16 मार्च 1985 को वकील बन गए थे।

सीजीआई भूषण ने 1987 से 1990 बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस

महाराष्ट्र के पूर्व एडवोकेट जनरल और बॉम्बे हाई कोर्ट के जज राजा एस. भोंसले के साथ अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में 1987 से 1990 स्वतंत्र प्रैक्टिस (बिना किसी कोर्ट में जुड़कर काम करना) की और फिर नागपुर बेंच में संवैधानिक और प्रशासनिक कानून के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई।

14 नवंबर, 2003 को वे बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बने और 12 नवंबर, 2005 को स्थायी जज।

24 मई 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया था।

सीजीआई भूषण रामकृष्ण गवई के ऐतिहासिक फैसले

जस्टिस गवई का नाम कई बड़े फैसलों में दर्ज है जिसमें नोटबंदी, अनुच्छेद 370 को हटाना, इलेक्टोरल बॉन्ड योजना और अनुसूचित जाति/जनजाति में उप-वर्गीकरण जैसे मामलों के फैसलों में योगदान दिया। इसमें सबसे चर्चित अनुसूचित जाति/जनजाति में ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा को लागू करने की वकालत भी शमिल है। उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मानहानि मामले में राहत देने में योगदान दिया।

दलित समुदाय जिसे समाज में अछूत और निम्न स्तर का माना जाता है। उस समुदाय से किसी का मुख्य न्यायाधीश बनना सच में दलित समुदाय के बीच भी उम्मीद बनकर आया है। जहां दलित समुदाय हमेशा इंसाफ मिलने से पीछे छूट जाता है ऐसे में दलित समुदाय का किसी उच्च पद पर होना जरुरी बन जाता है।

 

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