पत्रकार भी चुनावी मैदान पर, भला क्यों? उनको क्यों जरूरत है चुनाव लड़ने और नेता बनने की, समाजसेवा करने की। पत्रकार तो वैसे भी नेता होते हैं साथ ही समाजसेवक भी। लेकिन हां चुनाव लड़ना सबका अधिकार होता है तो शायद हमारे पत्रकार भाई भी चुनावी मैदान पर हैं। 49 साल के शंकर प्रसाद यादव चित्रकूट जिले के पहाड़ी ब्लॉक गांव अरछा बरेठी से हैं। इनका कहना है जिस तरह वह अपनी पत्रकारिता से लोगों की समस्याओं को उजागर करते हैं। अगर उनके पास पद होगा तो वह स्वयं उनकी छोटी मोटी समस्या को हल कर सकते है।
अगर वह जीतते हैं और प्रधान पद पर खरा उतरते हैं तो आने वाले विधानसभा चुनाव में विधायक पद के लिए चुनावी मैदान में उतरेंगे। वह विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी भी कर रहे हैं। जनता की सेवा निःस्वार्थ भाव से करते हैं। एभी हाल का ही एक उदाहरण है कि गांव के कई हैंडपंप की मरम्मत उन्होंने खुद अपना पैसा लगाकर कराया। क्योंकि प्रधान का कार्यकाल खत्म हो गया था और प्रशासन कोई सुनवाई नहीं कर रहा था। इस कार्य के बदौलत ही उनके क्षेत्र की जनता के दिलों में जगह बना ली और उत्तर पड़े चुनावी मैदान पर।
इसी तरह से अनवर रजा रानू जो बांदा में रहकर कई सालों से पत्रकारिता कर रहे हैं वह अपने निजी निवास ग्राम पंचायत खैर (बक्छा) जिला हमीरपुर से ग्राम प्रधान पद के लिए चुनावी मैदान में हैं। वह खुद को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकार लिखते हैं। मुख्य रूप से के. न्यूज चैनल के लिए काम करते हैं। उन्होंने इंटरव्यू के दौरान बताया कि वह अपने गांव का विकास करना चाहते है। पत्रकार होने के नाते लोगों के हक अधिकार के लिए आवाज तो उठाते हैं लेकिन उनका काम नहीं कर पाते।
अगर वह प्रधान बन जाएंगे तो जो वह नहीं कर पाते उसको करके रहेंगे। तीसरे पत्रकार बांदा जिले के मवई बुजुर्ग गांव निवासी पूरन राय चुनावी मैदान पर पहली बार प्रधान पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। जब हमने उनसे इंटरव्यू करने की बात की तो उन्होंने टाइम न मिल पाने का कारण बताते हुए हमसे रूबरू नहीं हो पाए। वह के के डी न्यूज चैनल में ब्यूरो चीफ के पद पर हैं।