त्रिवेणी ओबीसी में शूद्र जाति से आती हैं जिसे समाज में कमतर बताया गया है। उन्हें लगता है कि नौकरी न मिल पाने की एक वजह जाति व उससे मिलने वाली पहुंच व सुविधा भी है।
युवा के लिए रोज़गार पाना क्या है? सालों-साल सरकारी नौकरी पाने के लिए सरकारी परीक्षाओं की तैयारी करना, फिर उस परीक्षा की तारीख का इंतज़ार, परीक्षा के दिन का इंतज़ार….अगर सब कुछ ठीक रहा तो आगे परिणाम का इंतज़ार!
फिर बेहतर नौकरी पाने में भेदभाव का सामना, जातिगत भिन्नता की लड़ाई, आर्थिक कमज़ोरी व ज़िम्मेदारियों की चुनौती इत्यादि इत्यादि…..मुश्किलें और सिर्फ लड़ाई!!
सरकारी नौकरी पाने के लिए सालों मेहनत के बाद भी उनके हाथ दोबारा लगता है इंतज़ार व निराशा, क्योंकि परिणाम ही नहीं आते, क्योंकि परीक्षाएं ही नहीं होती, क्योंकि वह पहुँच से दूर होते हैं…… सुविधाओं की!
सरकार क्या कहती है? आज के युवा कल का भविष्य है लेकिन युवाओं की ज़िंदगी तो चार घेरे के कमरे में परीक्षा की सिर्फ तैयारी में ही बीती जा रही है। उसे वहां से बाहर ही नहीं निकाला जाएगा तो वह करेंगे क्या?
“ज़्यादातर लोग यह सोचकर पढ़ाई करते हैं कि अगर हमारी पढ़ाई अच्छी होगी तो हमें अच्छी नौकरी मिलेगी और बेहत्तर भविष्य होगा जिससे गर्व से अच्छी जिंदगी जी सके।” – ओबीसी समुदाय से आने वाली छत्तीसगढ़ की 27 वर्षीय युवा त्रिवेणी साहू ने कहा।
छत्तीसगढ़, रायपुर के बीरगांव की त्रिवेणी एम कॉम व डी एल एड कर चुकी हैं। इस समय वह शिक्षाकर्मी बनने की तैयारी कर रही हैं। उन्हें टीचर बनना है।
उनका कहना है कि, “पढ़ाई करने के बाद भी मेरे आस-पास में गिने-चुने लोगों की ही सरकारी नौकरी लगी है। कितनी भी अच्छी पढ़ाई करने के बाद भी नौकरी लगने का चांस बहुत कम हो गया है। अपने आस-पास देखती हूँ तो काफी युवा हैं जो पढ़ाई कर रहे हैं। कोविड के बाद से युवाओं की पढ़ाई बहुत मात खाई है। चाहें लड़का हो या लड़की, अपने घर की आर्थिक स्थिति के कारण, फैमिली को स्पोर्ट करने के लिए वह अपनी पढ़ाई छोड़कर काम करना शुरू कर दिया है। सरकारी नौकरी सिर्फ उन लोगों की लग रही है जो उच्च स्तर के हैं। जिनकी पहुंच बड़े-बड़े अधिकारियों के पास है। उनकी मेहरबानी से उनकी नौकरी लग जाती है।”
त्रिवेणी ओबीसी में शूद्र जाति से आती हैं जिसे समाज में कमतर बताया गया है। उन्हें लगता है कि नौकरी न मिल पाने की एक वजह जाति व उससे मिलने वाली पहुंच व सुविधा भी है।
उनका यह भी आरोप है कि झूठी अफवाहे फैलाकर पेपर रद्द करा दिए जाते हैं ताकि युवा आने वाले पेपरों पर ध्यान न दें व सरकारी नौकरी के लिए भी फॉर्म न भरें।
जाति, ज़िम्मेदारी व पहुंच
एससी यानी अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले 28 वर्षीय सुनील भी छत्तीसगढ़ से आते हैं व ग्राम हसदा बेमेतरा जिले के रहने वाले हैं। उनका कहना है, “सभी नौकरी में जाति रहती ही है। सरकारी नौकरी में जाति के अनुसार पद रहता है। उसके हिसाब से लोगों को नौकरी मिलती है। काम को लेकर भेदभाव किया जाता है।”
सुनील इस समय स्पंज आयरन कंपनी में कंट्रोल रूम ऑपरेटर के रूप में काम कर रहे हैं। वह अपनी पढ़ाई पूरी करके रेलवे में काम करना चाहते हैं। 2018 में उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकम्युनिकेशन विषय से इंजीनियरिंग की डिग्री लो थी। इसके बाद पीएचडी पूरा किया और फिर साल 2020 में सिविल सर्विस की तैयारी शुरू कर दी। इस बीच कोविड आ गया और उनकी पढ़ाई धरी की धरी रह गई।
आगे कहा, माँ-पिता जी का रोज़गार छीन गया। घर में खर्च के लिए पैसे नहीं थे तो मज़बूरन पढ़ाई छोड़कर स्पंज आयरन कंपनी में साफ़-सफाई का काम करना शुरू कर दिया। 12 घंटे काम करने पर भी 250 रूपये मिलता था।
अब वह आगे पढ़ाई नहीं करना चाहते। उनका कहना है, “विद्यार्थियों की पढ़ाई तो हो रही है लेकिन सरकार रोज़गार देने में असमर्थ है। कोई रोज़गार आता है तो परीक्षा होते-होते 4-5 साल बीत जाते हैं।”
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया, “सेंट्रल गवर्नमेंट रेलवे एनटीपीसी की वेकेंसी 2019 में आई थी। क्वालीफाइंग परीक्षा दिसंबर 2020 से जुलाई 2021 तक हुई। परीक्षा का परिणाम आया मार्च 2022 तक फिर जून 2022 में दूसरे चरण में परीक्षा हुई और परिणाम आया मार्च 2023 तक। 4 सालों तक सिर्फ परीक्षा ही ली गई।
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भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 क्या कहती है?
मानव विकास संस्थान और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा मंगलवार 26 मार्च को ‘भारत रोजगार रिपोर्ट 2024’ (India Employment Report 2024) जारी की गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में कुल बेरोजगार आबादी में बेरोज़गार युवाओं की हिस्सेदारी 82.9% थी। वहीं सभी बेरोज़गार लोगों में शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी साल 2022 में 65.7% थी।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि 2022 में युवाओं के बीच बेरोजगारी दर उन लोगों की तुलना में छह गुना ज़्यादा था, जिन्होंने माध्यमिक शिक्षा या उच्च शिक्षा पूरी की हुई थी जिनकी संख्या 18.4 प्रतिशत थी। वहीं स्नातकों के लिए नौ गुना अधिक (29.1%) थी, जो पढ़ या लिख नहीं सकते थे उसमें 3.4 प्रतिशत लोग शामिल थे। इसके साथ पुरुषों (17.5%) की तुलना में शिक्षित युवा महिलाओं (21.4%) की संख्या इसमें ज़्यादा थी, विशेष रूप से वे महिलाएं जिन्होंने स्नातक ( (34.5%) किया है। इसमें पुरुषों की संख्या (26.4%) थी।
रिपोर्ट व युवाओं द्वारा सामना की गई चुनौतियाँ यह स्पष्ट तौर पर बताती हैं कि सिर्फ शिक्षा पा लेने से ही नौकरी नहीं मिलती। नौकरी पाने में जाति,पहुंच,आर्थिक मज़बूती व सरकार का रवैया भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इस खबर की रिपोर्टिंग छत्तीसगढ़ फेलो उर्मिला ने की है।
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