खबर लहरिया Blog रोडवेज बस कर्मियों के लिए जॉब बनी कंटिक

रोडवेज बस कर्मियों के लिए जॉब बनी कंटिक

बांदा: रोडवेज बसों को सड़क के बीच अचानक रोक कर चेकिंग करना जितना जरूरी है ताकि बस चालक और परिचालक परिवहन विभाग को चूना तो नहीं लगा रहे उतना ही जरूरी है कि बसों की स्थिति और देखभाल अच्छी हो। जबकि सफर करते समय अक्सर इस तरह की दिक्कतें देखने और भुगतने को मिल जाती हैं।

Job became difficult for roadways bus workers

अक्सर रास्ते के बीच बिगड़ती बसें खड़ी करतीं है समस्याएं

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22 दिसम्बर को बांदा से कानपुर और फिर कानपुर से बांदा के सफर के दौरान कुछ ऐसा ही हुआ। सुबह करीब 8 बजे कानपुर के रास्ते पड़ने वाला चौडगरा के पास एक रोडवेज बस खड़ी थी पर सवारियां नहीं थीं। बिगड़ी बस के ड्राइवर और कंडक्टर ने दूसरी बस के सामने आकर बस रूकवाई और कहने लगे उनकी बस स्टार्ट नहीं हो रही है। दूसरी बस के ड्राइवर और कंडक्टर ने बिगड़ी बस की मरम्मत की और धक्का देकर स्टार्ट कर दिया। बस स्टार्ट होने पर ड्राइवर और कंडक्टर खुश हुए। बोले कि आज बस में जो सवारियां थीं वह किसी किसी साधन से चली गईं और यह दिक्कत लगातार कई दिन से हो रही है। बस कार्यशाला में रोज जाती है,बनती है फिर भी पता नहीं क्या कमी रह जाती है। चलो बस स्टार्ट तो हो गई तीन घण्टे से खड़े हैं ऊपर से बेकाबू ठंडी। कई बसें निकली उनको रोका लेकिन वह नहीं रुकी। खैर दोनों बसें अपनेअपने रास्ते चल दीं।

बस चेकिंग में ज्यादातर अधिकारी लगाते हैं गलत आरोप

अब सुनिए दूसरा हाल और यह है कानपुर से बांदा वाले सफर के दौरान। कानपुर शहर निकलकर तीन व्यक्तियों ने बस को रोक लिया। पता चला कि वह रोडवेज विभाग के अधिकारी हैं। बस में चढ़कर फुल, हाफ, विकलांग पास वाली टिकटों की गिनती की और फिर टिकट काटने वाली कम्प्यूटराइज मशीन से टिकटों का मिलान किया। फिर तीनों अधिकारी ड्राइवर और कंडक्टर को बस के पीछे ले गए। घण्टों तक बहुत चिल्लम चिल्ली हुई फिर जाकर बस चली। पूरे सफर के दौरान ड्राइवर चिल्लाता रहा कि यह अधिकारी सिर्फ पैसा ऐंठने के कारण ढूंढते हैं। भिखारियों की तरह सीधेसीधे पैसे मांग क्यों नहीं लेते, बहाने क्यों ढूढ़ते हैं। गलत आरोप भी लगाते हैं। ऐसे अधिकारियों के ऊपर विभाग क्यों नहीं कार्यवाही करता है। तंग गए हैं इन अधिकारियों के रोजरोज के ऐसे कारनामों से। खैर ड्राइवर बहुत गुस्से में था नतीजन उसने बहुत तेज रफ्तार से बस चलाकर लाया।

यह दोनों तरह की परिस्थितियां बताने के लिए काफी हैं कि परिवहन विभाग बसों की व्यवस्था को चुस्तदुरुस्त रखने में कितना काम करता है। यही नहीं यह भी पता चल रहा है कि भ्रष्टाचार कायम रखने में विभाग के बड़े अधिकारी कितने माहिर हैं। इस तरह की समस्याओं का समाधान भी सरकार को करना चाहिए।