खबर लहरिया Blog J&K, Haryana Election Result 2024: हरियाणा व जम्मू-कश्मीर में पार्टियों को कितनी मिली सीट, भाजपा-कांग्रेस में से कौन रहा आगे, जानें

J&K, Haryana Election Result 2024: हरियाणा व जम्मू-कश्मीर में पार्टियों को कितनी मिली सीट, भाजपा-कांग्रेस में से कौन रहा आगे, जानें

रिपोर्ट में कहा गया कि भाजपा के हरियाणा में ज़ोरदार वापसी की वजह राष्ट्रीय स्वयं सेवक समूह (RSS) है, जिसने ज़मीन पर भाजपा की छवि को सुधारने का काम किया है।

                                                                            जम्मू-कश्मीर में चुनाव मतदान की तस्वीर (फोटो साभार – सोशल मीडिया)

जम्मू-कश्मीर, हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणाम 2024: हरियाणा व जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव 2024 की घोषणा मंगलवार,8 अक्टूबर को कर दी गई है। हरियाणा में भाजपा को बहुमत से लगातार तीसरी बार जीत मिली है। वहीं जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस व कांग्रेस अलायंस का दबदबा रहा।

बहुमत से जीतने के बाद भाजपा हरियाणा में अपनी सरकार बनाने के लिए फिर से तैयार है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि नायब सिंह सैनी (Nayab Singh Saini) को अगले सीएम के रूप में चुना जाएगा। नायब ने लाडवा सीट से 16,054 मतों के साथ जीत हासिल की है।

द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार,नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री के रूप में उभर रहे हैं। पार्टी सूत्रों ने कहा कि अंतिम निर्णय अगले दो दिनों में सहयोगी दलों, एनसी और कांग्रेस की श्रीनगर में बैठक के बाद सार्वजनिक किया जाएगा। इस बीच, एनसी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने यह कहा कि उनका बेटा जम्मू-कश्मीर का अगला मुख्यमंत्री होगा।

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 परिणाम

भारतीय जनता पार्टी की हरियाणा में यह लगातार तीसरी जीत है जहां विधानसभा चुनाव में पार्टी 48 सीटें जीतने में कामयाब रही है। वहीं कांग्रेस ने 37 सीटें जीती जहां ये लग रहा था कि वह बहुमत से जीतने वाली है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बुधवार, 9 अक्टूबर, 2024 को कहा कि पार्टी हरियाणा में “अप्रत्याशित” परिणामों का विश्लेषण कर रही है और राज्य के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों से मिली शिकायतों के बारे में चुनाव आयोग को अवगत कराएगी।

हरियाणा की 90 सीटों पर 5 अक्टूबर को एक चरण में मतदान हुआ था, जिसमें लगभग 68 प्रतिशत मतदान हुआ था। चुनाव के पूर्वानुमानों में भाजपा के जीतने का मौका नहीं दिख रहा था, जिसकी वजह किसान आंदोलन व महिला पहलवानों द्वारा भाजपा के खिलाफ किये गए प्रदर्शन को बताया गया। किसानों का समर्थन भारतीय पहलवानों द्वारा किये जा रहे आंदोलन में भी रहा। ज़मीनी स्तर से ग्रामीण और लोकल नेता भी इस आंदोलन में शामिल रहे, जिसने भाजपा की ज़मीनी पकड़ को कमज़ोर कर दिया था।

हरियाणा में कैसे जीती भाजपा?

इंडिया टुडे ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि भाजपा के हरियाणा में ज़ोरदार वापसी की वजह राष्ट्रीय स्वयं सेवक समूह (RSS) है, जिसने ज़मीन पर भाजपा की छवि को सुधारने का काम किया है।

अगस्त में RSS द्वारा किये गए आंतरिक सर्वे में बताया गया कि तत्कालीन सीएम मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में हरियाणा सरकार अपनी चमक खो रही थी और वापसी के लिए नेतृत्व व योजना में बदलाव की मांग की जा रही थी। यहां भाजपा ने अपने वोटर्स को वापस लाने और उनका विश्वास जीतने के लिए RSS का कंधा पकड़ा ताकि ज़मीनी स्तर पर फिर से लोगों को पार्टी की तरफ लाया जा सके। ग्रामीण वोटों को फिर से भाजपा में शामिल किया जा सके और हरियाणा में जो आज भाजपा ने वापसी की है, वह यही है।

29 जुलाई को नई दिल्ली में प्रमुख नेताओं की महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया था जिसमें आरएसएस के संयुक्त महासचिव अरुण कुमार, हरियाणा बीजेपी चीफ मोहनलाल बरदोली व केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान शामिल हुए थे। बैठक में चर्चा का मुख्य विषय ग्रामीण स्तर पर पार्टी से लोगों के संबंध को मज़बूत करना, लाभकारी योजनाओं को बढ़ावा देना इत्यादि था।

सितंबर महीने की शुरुआत में आरएसएस ने रूरल वोटर प्रोग्राम शुरू किया था जिसके तहत हर राज्य में 150 वोलंटियर्स को लगाया गया था। इसके पीछे का उद्देश्य साफ था कि ग्रामीण स्तर पर जो लोग पार्टी के विरोध में थे, उनकी योजनाओं और फैसलों के खिलाफ आवाज़ उठा रहे थे, उसे बदलना और ग्रामीण समुदाय से अपने रिश्ते को मज़बूत करना।

आरएसएस के वोलंटियर्स सीधा मंडल कार्यकर्ता,लोकल स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ता और चौपाल में शामिल लोगों से मिल रहे थे, बात कर रहे थे। यहां वोट पार्टी के नाम से नहीं बल्कि विकास के नाम से मांगा जा रहा था लेकिन उसमें यह भी इशारा था कि अगर विकास चाहिए तो उन्हें किसे वोट करना है।

1 से 9 सितंबर के बीच आरएसएस ने हर विधानसभा क्षेत्र में लगभग 90 मीटिंग की। इसके साथ तकरीबन 200 मीटिंग पार्टी कार्यकर्ता और ग्रामीण वोटर्स के साथ भी की ताकि पार्टी को फिर से ज़मीनी स्तर पर संगठित किया जा सके।

आरएसएस के वरिष्ठ अधिकारी ने इस बात को माना कि पूर्व चुनावों में बीजेपी के खराब प्रदर्शन ने लोगों के बीच पार्टी के प्रति असंतुष्टि को पैदा कर दिया था। रिपोर्ट में बताया गया कि गज़ब बात यह थी कि जहां लोकसभा चुनाव के अभियानों के दौरान आरएसएस एकदम शांत दिखी, वहीं विधानसभा चुनाव में उसकी भूमिका सबसे ज़्यादा निकलकर आई।

आरएसएस ने भाजपा के लिए वोट मांगने के लिए विकास की रणनीति को अपनाया और लोगों के सामने एक स्थायी सरकार व देश की बढ़ोतरी जैसी बातें रखी।

विश्लेषकों का अनुमान था कि भाजपा को अपना तीसरा कार्यकाल सुरक्षित करने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है लेकिन आरएसएस ने पार्टी के लिए रास्ते से सभी पत्थरों को साफ़ करते हुए जीत का रास्ता समतल कर दिया और पार्टी को जीत भी दिलाई।

हरियाणा में अन्य पार्टियों की क्या रही स्थिति?

द हिन्दू की रिपोर्ट में बताया गया कि इस बार के हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस, दोनों के ही वोटिंग प्रतिशत में पिछले चुनाव के मुकाबले बढ़ोतरी हुई है। पिछले चुनाव में भाजपा के पास 40 सीटें थी और इस बार उसने 8 और सीट यानी कुल 48 सीटें जीतीं हैं। वहीं वोट शेयर भी 36.5 फीसदी से बढ़कर 39.9 फीसदी हो गया है।

वहीं कांग्रेस का वोट शेयर भी 11 प्रतिशत अंक बढ़कर 39.1 फीसदी हो गया लेकिन सीटों की संख्या में कुछ खासा वृद्धि देखने को नहीं मिली। पिछली बार से कांग्रेस को छः ज़्यादा सीटें मिली यांनी इस बार कुल 37 सीटें कांग्रेस के नाम रही। इससे यह सामने आया कि दोनों पार्टियों के बीच वोट शेयर का अंतर 1 प्रतिशत से भी कम रहा।

जननायक जनता पार्टी (Jannayak Janata Party), जिसका भाजपा के साथ पूर्व में गठबंधन भी रह चुका है, इस चुनाव में उसे एक भी सीट हासिल नहीं हुई। यह वही पार्टी ने जिसने साल 2019 में सबको चौकाते हुए 10 सीटें जीतीं थी।

इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी), जिसने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा, वह सिर्फ दो सीटें जीत पाई।

आम आदमी पार्टी (आप), जो ‘शासन के दिल्ली और पंजाब मॉडल’ को दोहराने के लिए अगली सरकार बनाने का ‘मौका’ तलाश रही थी, उसे भी हरियाणा में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा और उसे भी कोई सीट नहीं मिली।

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में जीते उम्मीदवारों के नाम

कांग्रेस से जीतने वाले प्रमुख उम्मीदवार – पूर्व मुख्यमंत्री श्री भूपिंदर हुड्डा (गढ़ी सांपला-किलोई), विनेश फोगाट (जुलाना), आदित्य सुरजेवाला (कैथल), गीता भुक्कल (झज्जर)।

भाजपा से जीतने वाले उम्मीदवारों के नाम – अनिल विज (अंबाला कैंट), श्रुति चौधरी (तोशाम) और आरती सिंह राव (अटेली)।

विजयी इनेलो (INLD) उम्मीदवार अर्जुन चौटाला (रानिया) और आदित्य देवी लाल (डबवाली)

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 परिणाम

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस व कांग्रेस अलायंस ने मिलकर 90 सीटों में से 49 सीटें जीती हैं, जो सदन में बहुमत के लिए ज़रूरी संख्या से एक अधिक है।

नेशनल कांफ्रेंस की सहयोगी पार्टी कांग्रेस ने सिर्फ छः सीटें जीतीं। पांच कश्मीर घाटी में और एक जम्मू प्रान्त में। कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के साथ सीट-शेयर के साथ अपने 32 उम्मीदवार जो चुनाव में उतारा था।

द हिन्दू से बात करते हुए नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) ने कहा कि “लोगों ने एनसी को निर्णायक जनादेश दिया है। यह जनादेश 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर में [अनुच्छेद 370 को निरस्त करके] भाजपा द्वारा उठाए गए कदमों की अस्वीकृति है। हमने अपनी अपेक्षा से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है। बीजेपी आधे आंकड़े से भी काफी दूर है।” बता दें, इस चुनाव में उमर अब्दुल्ला ने गांदरबल और बडगाम, दो सीटें जीती हैं।

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) ने मोहम्मद यूसुफ तारिगामी (Mohammed Yousuf Tarigami) के साथ कुलगाम (Kulgam) से अपना लगातार पांचवां विधानसभा चुनाव जीतकर एक सीट हासिल की है।

जम्मू क्षेत्र में भाजपा 29 सीटें जीतने में सफल रही है लेकिन कश्मीरी घाटी से उसे कोई भी सीट नहीं मिली। द हिन्दू ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि भाजपा ने हिंदू-बहुल जम्मू में पांच प्रतिशत अंको की वृद्धि के साथ अपना वोट शेयर 45 फीसदी कर लिया। इसकी बदौलत पार्टी इस चुनाव में 29 सीटें जीतने में सफल रही। जम्मू क्षेत्र में, भाजपा ने (11 सीटों के साथ), सांबा जिले (तीन सीटों), उधमपुर जिले (चार सीटों) और कठुआ जिले (छह सीटों) की सभी सीटों को अपने नाम किया है।

इसके अलावा पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने तीन सीटें जीतीं व पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने केंद्र शासित प्रदेश में एक निर्वाचन क्षेत्र हासिल किया।

आम आदमी पार्टी ने जम्मू प्रांत की डोडा सीट पर जीत हासिल की। वहीं सात सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के नाम रहीं।

बता दें, जम्मू-कश्मीर में विधान सभा की संख्या 119 सदस्यों की है जबकि चुनाव 90 निर्वाचन क्षेत्रों में हुए। इसके आलावा 24 अतिरिक्त सीटें उन क्षेत्रों के लिए नामित की गई हैं जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में हैं। उपराज्यपाल के पास पांच सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार होता है इसलिए जब सदन में 95 सदस्य हों तो किसी पार्टी या गठबंधन को बहुमत के लिए 48 सीटों की ज़रूरत होती है।

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव तीन चरणों में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को हुए थे व इस दौरान 63.8 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था।

जम्मू-कश्मीर का चुनावी इतिहास

जम्मू-कश्मीर के अगर चुनावी इतिहास की बात करें तो यहां पूरे 10 सालों बाद विधानसभा के चुनाव कराये गए हैं। यह साल 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद हुआ पहला चुनाव भी है।

बता दें, अनुछेद 370 के तहत राज्य को विशेष दर्जा दिया गया था। उस समय केंद्र ने राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था।

रिपोर्ट्स में बताया गया कि इस चुनाव में मुख्य मुद्दा बढ़ती बेरोज़गारी,शासन समस्या था। वहीं कश्मीरी घाटी में चुनाव पहचान और विशेष दर्जे को लेकर लड़ा जा रहा था।

नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी जैसी लोकल क्षेत्रीय पार्टियों ने इस चुनाव में विशेष दर्जे की दोबारा स्थापना और जम्मू-कश्मीर की पहचान की रक्षा करने का वादा किया था। वहीं कांग्रेस ने कहा था कि अगर वह सत्ता में आती है तो जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिया जाएगा लेकिन धारा 370 को लेकर पार्टी को तरफ से कुछ स्पष्ट नहीं कहा गया।

भारतीय जनता पार्टी का कहना था कि अनुच्छेद 370 अब ‘इतिहास’ है और वह विकास व लाभकारी योजनाओं के तहत लोगों के मत अपनी तरफ करने की कोशिश कर रही थी।

2014 में हुए चुनाव में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने विधानसभा की 87 निर्वाचित सीटों में से 28 सीटें जीतीं थी। उसके बाद भाजपा ने 25 सीटें जीतीं थी। नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 सीटें और कांग्रेस को 12 सीटें मिली थीं। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भाजपा ने चुनाव के बाद गठबंधन बनाया था और इससे मुफ्ती मोहम्मद सईद (Mufti Mohammed Sayeed) को मुख्यमंत्री बनाया गया था।

2016 में सईद की मृत्यु के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती को उनकी जगह मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद जून, साल 2018 में भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया जिससे पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार गिर गई। साल 2019 में धारा 370 के निरस्त होने से पहले जम्मू-कश्मीर राज्यपाल और राष्ट्रपति का शासन रहा।

वहीं हाल ही में हुए आम चुनाव में, भाजपा ने जम्मू क्षेत्र में दोनों लोकसभा सीटें जीतीं। इंडिया ब्लॉक ने कश्मीर क्षेत्र में तीन में से दो निर्वाचन क्षेत्र जीते। बाकी एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की।

द हिन्दू ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि भाजपा ने हिंदू-बहुल जम्मू में पांच प्रतिशत अंको की वृद्धि के साथ अपना वोट शेयर 45 फीसदी कर लिया। इसकी बदौलत पार्टी इस चुनाव में 29 सीटें जीतने में सफल रही।

अंततः, चुनाव हरियाणा व जम्मू-कश्मीर के चुनावी फैसले आने के बाद पार्टियों का अगला कदम नई सरकार बनाना और मुख्यमंत्री का चयन करना जिसे लेकर कई नाम भी सामने आ रहे हैं लेकिन कोई भी नाम अभी स्पष्ट नहीं है।

 

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