यदि केंद्र सरकार फंड में कटौती करती है या राज्य सरकारें जांच और प्रक्रियाओं में उलझ जाती हैं, तो उन गांवों में जहां अब तक पाइपलाइन नहीं बिछाई गई है, वहां का काम रुक सकता है या उसकी रफ्तार धीमी हो सकती है।
लेखन – हिंदुजा
केंद्र सरकार ने जल जीवन मिशन के तहत चल रही योजनाओं में खर्च और टेंडर की गड़बड़ियों की जांच के लिए 100 निरीक्षण टीमों को 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 135 जिलों में भेजा है। यह कदम तब उठाया गया जब योजना में भारी लागत बढ़ने और टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी की रिपोर्टें सामने आईं।
केंद्र सरकार के जल जीवन मिशन क्या समस्साएं सामने आयी?
जल जीवन मिशन के तहत काम में गड़बड़ियों और बढ़ते खर्च की जांच के लिए केंद्र सरकार ने 19 मई को 100 निरीक्षण टीमों को 135 जिलों में भेजा है। यह कदम उन चिंताओं के बीच उठाया गया है, जिनमें कहा गया है कि कई योजनाओं में टेंडर नियमों में बदलाव के बाद खर्च जरूरत से ज्यादा बढ़ गया है।
द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जल जीवन मिशन के डैशबोर्ड पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा डाले गए आंकड़ों की जांच में सामने आया है कि 2022 में टेंडर से जुड़े नियम बदले गए, जिससे राज्य अब पहले से तय लागत से ज्यादा रेट पर टेंडर दे सकते हैं जिससे 14,586 योजनाओं की लागत में कुल 16,839 करोड़ रुपये (लगभग 14.58%) की बढ़ोतरी हुई है।
पहले के नियमों के अनुसार, अगर किसी योजना की लागत बढ़ती थी, तो उसका बोझ राज्य सरकार को उठाना होता था और केंद्र की तरफ से कोई अतिरिक्त पैसा नहीं मिलता था लेकिन 2022 में नियम बदलकर ‘टेंडर प्रीमियम’ को मान्य कर दिया गया जिससे अब राज्य सरकारें ज्यादा बोली लगाने वालों को भी टेंडर दे सकती हैं।
इस बदलाव के बाद, कई योजनाओं की लागत अनुमान से बहुत ज्यादा हो गई। मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा लागत बढ़ी — जहां केवल 4% योजनाएं थीं लेकिन उन्होंने 64% अतिरिक्त खर्च में योगदान दिया। इस मुद्दे को देखते हुए, सरकार अब पूरे देश में योजनाओं की स्थिति की जांच कर रही है।
2022 में नियमों में कैसे बदलाव के तहत ये हुआ?
दिसंबर 2019 में जारी किए गए ‘हर घर जल’ योजना के संचालन दिशानिर्देशों में साफ तौर पर लिखा था कि अगर किसी योजना की लागत तय सीमा से ज़्यादा बढ़ती है, तो उसका खर्च संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश को उठाना होगा और इसके लिए केंद्र सरकार से कोई अतिरिक्त पैसा नहीं दिया जाएगा। इन पुराने नियमों में ‘टेंडर प्रीमियम’ (यानी किसी टेंडर में सरकार की अनुमानित लागत से ज़्यादा बोली लगने पर जो अतिरिक्त रकम बनती है) को अनुचित खर्च की श्रेणी में रखा गया था। इसका मतलब था कि अगर कोई काम तय लागत से महंगे भाव में दिया जाता है, तो उसके लिए केंद्र का पैसा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था।
21 जून 2022 को जल शक्ति मंत्रालय ने इन नियमों में बदलाव किया। अब ‘टेंडर प्रीमियम’ शब्द को अनुचित खर्चों की सूची से हटा दिया गया। नए नियमों में कहा गया कि किसी योजना की ‘मंजूर लागत’ वही मानी जाएगी जो एक खुली, पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी टेंडर प्रक्रिया के जरिए तय की गई हो। साथ ही, अगर कोई टेंडर अनुमानित लागत से 10 से 25 प्रतिशत तक ज़्यादा होता है, तो उसे मंजूरी देने से पहले राज्य स्तरीय योजना स्वीकृति समिति के प्रमुख से अनुमति लेना जरूरी होगा।
इन तीन सालों में कुल 1,03,093 योजनाएं 600 जिलों में मंजूर की गईं, जो 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में फैली थीं। इन योजनाओं की कुल लागत 3,90,732 करोड़ रुपये थी — जो जल जीवन मिशन की शुरुआत से अब तक मंजूर की गई सभी योजनाओं की कुल राशि का 47% हिस्सा है।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट की जांच से सामने आई मुख्य बातें
कई योजनाओं में टेंडर के बाद जो खर्च हुआ, वह राज्य सरकारों द्वारा पहले जो अनुमान लगाया गया था, उससे काफी ज्यादा था। उदाहरण के लिए, कुछ योजनाओं में लागत करीब पंद्रह प्रतिशत तक बढ़ गई।
लगभग आधे से ज्यादा मामलों में, खर्च अनुमानित लागत से कम से कम दस प्रतिशत ज्यादा था। कुछ बड़ी योजनाओं में तो यह बढ़ोतरी करोड़ों रुपये की थी।
ध्यान देने वाली बात है कि मध्य प्रदेश में कुल योजनाओं की संख्या कम थी, लेकिन वहां हुई लागत वृद्धि पूरे देश में हुई कुल बढ़ोतरी का लगभग 64 प्रतिशत हिस्सा थी।
कुल मिलाकर, ज्यादा खर्च उन योजनाओं में हुआ जिनकी लागत पहले से ही काफी बड़ी थी। कुछ राज्यों में यह बढ़ोतरी ज्यादा नजर आई, खासकर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु में।
ग्रामीण स्तर पर इसका क्या असर हो सकता है?
जल जीवन मिशन भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2019 में की गई थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य है हर ग्रामीण घर तक नल के माध्यम से शुद्ध पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करना।
ऐसी फाइंडिंग्स के सामने आने से स्थानीय स्तर पर कई तरह के बुरा असर पड़ सकते हैं। यदि केंद्र सरकार फंड में कटौती करती है या राज्य सरकारें जांच और प्रक्रियाओं में उलझ जाती हैं, तो उन गांवों में जहां अब तक पाइपलाइन नहीं बिछाई गई है, वहां का काम रुक सकता है या उसकी रफ्तार धीमी हो सकती है। जल जीवन मिशन का लक्ष्य हर घर तक स्वच्छ जल पहुंचाना है, लेकिन अगर योजनाएं अटकती हैं या समय पर वित्तीय सहायता नहीं मिलती, तो ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट बना रह सकता है। ऐसी स्थिति में लोग एक बार फिर टैंकर, कुओं और हैंडपंप जैसे पारंपरिक स्रोतों पर निर्भर होने को मजबूर हो सकते हैं जिससे उनकी दिक्कतों में कोई समाधान नहीं निकल पायेगा।
जैसे अंतिका जो जल जीवन मिशन योजना की लाभकारी है उसका कहना था मिशन तहत यहां पानी की सप्लाई शुरू हुई थी, लेकिन अब एक साल से पानी नहीं मिल रहा। घरों में पानी के पाइप और टोटियां तो लगी हैं, लेकिन पानी नहीं आता। घर में महिलाओं को साफ़ सफाई के लिए, खाना बनाने के लिए, नहाने कपडे धोने आदि कामों में अक्सर पानी न होने की वजह से देर हो जाती है। कोई भी काम समय पर और जल्दी नहीं हो पाता है। इन फाइंडिंग्स के सामने आने से अब ऐसे स्थानीय मुद्दे नज़रअंदाज़ होंगे।
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