मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 30 मार्च को उज्जैन की शिप्रा नदी सेजल गंगा संवर्धन अभियान की शुरुआत की गई। इसका समापन 30 जून 2025 को होगा। इस अभियान की थीम है ‘जन सहभागिता से जल स्रोतों का संरक्षण करना है।’ इसी अभियान के अंतर्गत छतरपुर जिले की जल सहेलियों और उनके अन्य साथियों द्वारा 7 मई दिन बुधवार को श्रमदान करते हुए एक तालाब की खुदाई कर गहरी करण किया गया। इस पहल का उद्देश्य देशभर में गिरते वाटर लेवल को सुधारना है।
रिपोर्ट – अलीमा, लेखन – गीता
जल सहेली हल्की अहिरवार का कहना है कि तालाबों और कुंओं में कचरा भर जाने से वह सूख जाते हैं और उनका गहरी करण नहीं हो पाता। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए उन सभी जल सहेलियों और उनके साथियों ने यह संकल्प लिया है कि वह खुद श्रमदान कर तालाबों का गहरी करण करेंगेताकि जल स्तर में सुधार हो और पशु पक्षियों को भी पीने का स्वच्छ पानी मिल सके। सुबह 7:00 बजे से जल सहेलियां अपने सहयोगी के साथ फावड़ा-कुदाली और सिर पर तसला लेकर तालाबों की खुदाई के लिए तालाब पहुंच गई। उनका उद्देश्य पानी को बचाना और बर्बादी रोकना है।
जागरूकता के साथ जनभागीदारी
जल सहेली कविता ने बताया कि जब इस कार्यक्रम को वह एकजुट हैं। इस तरह लगातार पानी बचाने के लिए प्रयास करती रहेंगी। वह गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक कर रही हैं कि अगर हमने पानी नहीं बचाया, तो आने वाले समय में वो दिन दूर नहीं जब बुंदेलखंड का भविष्य भी रेगिस्तान के तरह संकट में होगा।
पैदल यात्रा निकाल कर करती हैं जागरूकता
पहले उन्होंने जटाशंकर से पैदल यात्रा शुरू की और गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक किया। लेकिन अब वे सक्रिय रूप से विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से एकजुटता के साथ गांव-गांव में चौपाल लगाकर, मेहंदी और गेहूं पर संदेश लिखकर लोगों को पानी के महत्व को समझा रही हैं। इसके साथ ही उन्होंने तालाबों का गहरीकरण भी शुरू कर दिया है। छतरपुर जिले के कई गांवों में वे पहले ही जागरूकता फैला चुकी हैं और अब अन्य जिलों में भी यह संदेश लेकर जाएंगी।
मरमात्मा संस्था से मिली प्रेरणा
जल सहेली अदिति का कहना है कि उन्होंने यह पहल परमात्मा नाम की संस्था के मार्गदर्शन से वर्ष 2011 में शुरू की थी। नीली यूनिफॉर्म में सर पर तसला और हाथों में फावड़ा लिए ये महिलाएं जब तालाबों में श्रमदान करती हैं, तो वह तस्वीर भी लोगों को प्रेरणा देती है। उन्होंने बताया कि वह जहां भी जाती हैं। साथ में बैनर लेकर जाती हैं। ताकि लोग जान सकें कि यह केवल एक सरकारी काम नहीं, बल्कि जन आंदोलन है।
गांव वालों का मिलता है समर्थन
जल सहेली रामबती कुशवाहा का कहना है कि उनके श्रम को देखकर गांव के लोग भी प्रेरित होते हैं और वह भी उनके साथ अपने फावड़ा- कुदारी और तसला लेकर तालाबों की खुदाई और सफाई में जुट जाती हैं क्योंकि यह केवल सरकार और संस्थाओं की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह जल स्रोतों की रक्षा करे। तभी आने वाले जल संकट से बच पाएगा।
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