खबर लहरिया National जय जवान, जय किसान का क्या यही है सम्मान, देखिए द कविता शो

जय जवान, जय किसान का क्या यही है सम्मान, देखिए द कविता शो

वो जो चाहते थे अपने मनसूबे में कामयाब हो गए। उनको ठंडक मिल गई होगी। जो चाहते थे कि किसान अपने हक की लड़ाई न लड़े, आंदोलन न करे, सरकार पर सवाल न उठाएं। ये कौन हैं, कहां से आये, किसके इशारे पर आए हैं ये अभी राज का विषय बना हुआ है। हो सकता है पुलिस प्रशासन कभी कार्यवाही करे।
दो महीने से ज्यादा चले इस आंदोलन में किसानों ने कड़ाके की ठंड और बारिश को आड़े नहीं आने दिया। लगातार हो रही किसानों की शहादत को भी नहीं आड़े आने दिया। यही नहीं गलत तरीके से लगाये गए आरोप और बदनाम करने की साजिसों को भी बेनकाब कर दिया और आंदोलन में डटा रहा किसान। 26 जनवरी के दिन हुए बवाल में जिस तरह से किसान आंदोलन को बदनाम किया गया, तोड़ा गया, आघात पहुंचाया गया, देश की आन बान शान के प्रति ठेस पहुंचाया गया इसको लेकर किसान इतना आहत हुआ कि खुद आंदोलन वापस लेने का ऐलान कर डाला।

 

किसान आंदोलन की बढ़ती लोकप्रियता और सरकार के ऊपर बढ़ता दबाव वह नहीं पचा पाए। 26 जनवरी के दिन दिल्ली में हुए बवाल कई सवाल खड़ा करता है। जैसे लाल किले पर झंडा फहराने वाला व्यक्ति बीजेपी का ही दलाल निकला तो क्या ये बीजेपी के लिए सवाल नहीं खड़ा करता। क्या bjp इस व्यक्ति पर कार्यवाही करेगी? वैसे इस व्यक्ति को लेकर न सरकार कुछ बोल रही और न ही चिल्लाती मीडिया। कितने किसान शहीद हो गए बवाल के दिन भी एक 27 वर्षीय किसान की मौत हो गई। इसकी जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ सरकार है। सरकार के अंदर के जिम्मेदार लोगों के लिए तो कोई कानून है ही नहीं, कानून उन्हीं के हाथों चलाया जाता है तो फिर अपने खुद के ऊपर थोड़े कोई कार्यवाही करता है।
खैर दिल्ली में जो हुआ वह सबके सामने है। बहुत मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया में सरकार पर और किसानों संगठनों पर सवाल उठाए जा रहे हैं। आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। तो इस पर ज्यादा बात न करते हुए आइये बात करें कि इस आंदोलन का असर ग्रामीण स्तर में भी किस तरह से देखने को मिला। बांदा के बदौसा क्षेत्र के किसानों ने ट्रैक्टर रैली निकाली। इस रैली में लगभग 25 से 30 ट्रैक्टर के साथ करीब दो सौ किसान शामिल थे।
यह रैली महुंटा गांव से शुरू हो रही थी तभी बदौसा और अतर्रा थाने की पुलिस मौके पर पहुंच इस रैली को रोकने लगी। घण्टों चली बहस के बाद यह रैली अतर्रा अनाज मंडी समिति तक आनी थी तभी बीच रास्ते तुर्रा पुल के पास अतर्रा एसडीएम और तहसीलदार पुलिस बल के साथ पहुंचकर रैली को रोक लिया और किसानों को वहीं से वापस होने का निर्णय लेना पड़ा। आखिरकार क्यों लौटे किसान इसीलिए क्योंकि किसान इस आंदोलन को शांति तरीके से करते आये हैं। वह किसी भी तरह से गलत कदम नहीं उठाते हैं।
इस किसान आंदोलन की आड़ में राजनीतिक की रोटियां सेंक रहा विपक्ष। बांदा जिले में समाजवादी पार्टी ने हद ही कर दी। ट्रैक्टर रैली की तर्ज पर ट्रैक्टर से रैली निकाली और पुलिस से झड़प करी और फेसबुक में खूब वीडीओ शेयर किए। क्या सही में ये किसान समर्थन था? या अपनी राजनीतिक ताकत आजमाने का एक जरिया था। इस कुचक्र राजनीति की शुरुआत जब दिल्ली पर साफ तौर पर किसान आंदोलन में बारम्बार देखी गई तो यहां क्यों पीछे रहें।
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