जब बात आती है महिलाओं की आज़ादी की, तो कुछ खास जगहों पर दिखता है कि बदलाव आया है। लेकिन क्या ये बदलाव सच में महिलाओं के हक में हैं? क्या वे सच में अपने फैसले खुद लेने की स्थिति में हैं, या फिर वही पुरानी परंपराओं का बोझ उनके कंधों पर भारी हो रहा है?
ये भी देखें –
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’