खबर लहरिया जिला बाँदा- एक्सप्रेस-वे का तर्ज क्या मिटा पायेगा किसानों का दर्द?

बाँदा- एक्सप्रेस-वे का तर्ज क्या मिटा पायेगा किसानों का दर्द?

जिला बांदा| सरकार ने बुंदेलखंड को बड़े शहरों से जोड़ने और विकसित बनाने के लिए बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे की शुरुआत की| जिसका नाम सुनते ही आप सोच सकते हैं कि कितना अच्छा लग रहा होगा| लोग सोच रहे होंगे कि वहा इतना बड़ा काम और हा इस बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे को बनाने में सरकार कह रही है कि इससे किसान और आम लोग सब को रोजगार भी मिलेगा| यहां की कायापलट होगी| लेकिन वहीं दूसरी तरफ बहुत से किसानों का अभी तक मुआवजा भी नहीं मिला और जिन किसानों का मिला भी है वह किसान भी उस मुआवजे से संतुष्ट नहीं है, तो भला कैसे वह विकसित होने और रोजगार का सपना महसूस कर पाएंगे|

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बडोखर खुर्द ब्लाक गांव हथौड़ा के अशरफ बताते हैं कि वह एक किसान हैं और कृषि पर ही निर्भर थे| लेकिन जब से यह बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे बनने लगा और इसमें उनकी 6 बीघे जमीन चली गई| तब से उनका तो काम ही खत्म हो गया एक भाई उनके बाहर प्रदेश में रहते थे कुछ वहां से आता था और कुछ खेती से होता था उसी के सहारे वह अपने परिवार का भरण पोषण करते थे वह भाई नहीं थे बाहर थे इसलिए वह लोग जमीन नहीं दे पाए थे.लेकिन 4 महीने हो गए उनके भाई को आए अभी तक उनकी जमीन का बैनामा नहीं हुआ और वह बराबर तहसील के और लेखपाल के चक्कर काट रहे हैं| अभी तक एक रुपए मुआवजा नहीं मिला लेखपाल द्वारा यह कह दिया गया था कि आप की जमीन अधिग्रहण मैं चली गई है. लेकिन ऐसा नहीं था| पहली बात तो उनकी जो पुश्तैनी जमीन है जिससे वह हर साल पैदावारी करते थे वह जा रही है दूसरी बात उनको मुआवजा भी उस हिसाब का नहीं मिल रहा ₹500000 का बीघा मिल रहा है |

भला क्या होता है इतने में लेकिन वह कर भी क्या सकते हैं| क्योंकि सरकार को अगर जमीन लेना है, तो लेना है इसलिए उनके सामने यह एक मजबूरी खड़ी हो गई है कि उनको जमीन देना ही पड़ेगा| उनके गांव के ऐसे सैकड़ों किसान है जो इस स्थिति से गुजर रहे है| बहुत से लोगों का मुआवजा अभी तक नहीं मिला है| जिन लोगों का मुआवजा मिल भी गया है |

वह लोग भी संतुष्ट नहीं कुछ समय बाद किसान जमीन खत्म होने के बाद भुखमरी की कगार में आ जाएगा| जो जमीन गई सो गई जो बची जमीन है उसको भी ठेकेदारों द्वारा इस एक्सप्रेस वे के लिए मिट्टी लेकर तालाब बनाया जा है| इससे किसान और भी परेशान है| क्योंकि उसका भी मुआवजा नहीं दिया जा रहा और अगर दिया भी जा रहा है तो न के बराबर अगर लोग कहते हैं,तो ठेकेदारों द्वारा उनको धमकियां दी जा रही है दबाव बनाए जा रहे हैं| इससे किसान बहुत ही परेशान है |

एक दलित किसान रामपाल बताते हैं कि उनकी जमीन भी एक्सप्रेस वे में चली गई है| उसका मुआवजा मिल गया है. लेकिन उससे संतुष्ट नहीं है| दूसरी बात उस जमीन में उनके लगभग 18 पेड़ थे जो फलदार थे और हर साल उन पेड़ों से उगने वाले फल से वह अपने परिवार का भरण पोषण करते थे कमाई करते थे वह सारे पेड़ उनके काट दिए गए हैं| उन पेड़ों का एक रुपए मुआवजा नहीं मिला|

उन्होंने उन पेड़ों को ऐसे छोटे बच्चे की तरह पाला था सिंचाई गुड़ाई करके मानो पूरा जीवन उनका उन्हीं पेडो़ में चला गया जब वह पेड़ काटे जा रहे थे, तो वह मोड़ कूटकूट कर रो रहे थे| लेकिन प्रशासन ने उनकी एक नहीं सुनी ना एक रुपए मुआवजा दिया अब क्या करें हताश होकर बैठे हैं |

क्योंकि सरकार से कौन लड़ाई लड़ेगा जो काम होना है वह होना है| वह गरीब किसान क्या कर सकते हैं| अगर सरकार उनके पेड़ पौधों का भी मुआवजा दे देते तो शायद उनको संतुष्टि मिल जाती| बहुत से किसानों और आम लोगों का यह भी कहना है कि सरकार रोजगार के सपने दिखाकर किसानों की जमीनें जरूर छीन रही है |

लेकिन उनको रोजगार मिलने की कोई उम्मीद नहीं है| क्योंकि अभी काम चल रहा है.लेकिन जिस गांव से एक्सप्रेस वे निकल निकल रहा है उन गांव के मजदूरों को काम नहीं दिया जा रहा तो आगे कैसे माने कि उन को रोजगार मिलेगा|बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां आ जाएं और कुछ लोगों को रोजगार मिल जाए तो नहीं कहते लेकिन उनको इस से कोई उम्मीद नहीं है |