हर साल 29 जुलाई को ” इंटरनेशनल टाइगर्स डे ” बनाया जाता है। हर साल इस दिन को मनाने का कारण लोगो को ये याद दिलाना है की अभी-2 भी समस्या वही है। हमें बाघों के प्राकृतिक घरों की सुरक्षा करनी है। बाघों की घटती समस्याओं को लेकर काम करना है। 2010 में सैंट. पीटर्सबर्ग टाइगर समिट में बाघों के संरक्षण को लेकर बात रखी गयी थी। साथ ही यह भी तय किया गया था कि इस दिन को ” ग्लोबल टाइगर्स डे ” के नाम से भी मनाया जाएगा। समिट में आए लोगों ने 2022 तक बाघों की संख्या दो गुनी करने का लक्ष्य रखा। 2010 में बाघों की संख्या 1,706 थी और 2019 में 2,967 है। संख्या में थोड़ी तो बढ़ोतरी हुई है पर समस्या अभी भी खत्म नही हुई है। ( स्त्रोत- रणथंबोर नेशनल पार्क.कॉम)
बाघों का अस्तित्व
पहले बाघ भारत में खुलेआम घूमते थे। सिंधु-सरस्वती सभ्यता, दिल्ली-आगरा के पास यमुना किनारे हम बाघों को देख सकते थे। 2017 से पहले मध्यप्रदेश और उत्तराखंड में सबसे ज़्यादा बाघ पाए जाते थे। लेकिन शहरीकरण और मनुष्य के स्वार्थ की वजह से वह धीरे-२ गायब होते गए।
भारत में बाघों की मान्यता
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में बाघों और वन्यजीवों के लिए व्याला (बाघ) वाना के बारे में कहा गया है। भारत में बाघ को शक्ति या देवी दुर्गा के साथ जोड़ा गया। सबरीमाला के अयप्पा और राहु ग्रह पर बाघ की सवारी है। महाराष्ट्र के वाघदेव या वाघोबा और कर्नाटक के हुलीराया भी बाघ देवता हैं।
भारत के बाघ सदियों से ही लोगों के लिए केंद्र-बिंदु रहे हैं। 16 वीं शताब्दी में शिकार करने की परम्परा शुरू की गयी। इसकी शुरुआत मुग़ल बादशाह जलाल-उद-दीन मुहम्मद अकबर ने की। उन्हें खेल का बहुत शौक़ था। जो की बाद में राजा- महाराजाओं द्वारा भी अपनायी गयी। कई चित्र बताते हैं कि राजपूत, तुर्क और अफगान हाथी या घोड़े की सवारी करके शिकार करते थे। बाघों को मारने का मतलब होता था अपनी ताकत और अपने पैसों को दिखाना। जो भी खेल में जीतता उसके लिए बाघ ही उनके अंतिम उपहार होते थे।
बाघों की घटती संख्या
बाघों का अंत मुगल काल के साथ शुरू हुआ। अकबर ने शिकार करने पर ट्रॉफी देने की शुरुआत की। जहांगीर ने अपने पहले 12 वर्षों में शासक के रूप में 86 बाघों और शेरों को मारा। मुगल भोजन में 36 से 40 मांस व्यंजन खाते थे। अंग्रेजों के शासन काल में बाघों की हत्या और बढ़ गयी। 1757 की प्लासी की लड़ाई के दौरान ब्रिटिश ने बाघों को मारने पर विशेष पुरस्कार रखा। 1770 में, पूर्वी भारत में एक भयंकर अकाल पड़ा।खेत से लेकर जंगल तक सब बर्बाद हो गए। वन्यजीवों को मारकर उनकी ज़नीनो पर लोगों ने घर बना लिए। खत्म होते जंगल व शहरी विकास की वजह से धीरे-२ बाघ गायब होते चले गए।
प्रोजेक्ट टाइगर ( बाघ)
प्रोजेक्ट टाइगर को इंदिरा गांधी सरकार ने 1973 में उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क से लॉन्च किया था।
20 वीं सदी के अंत में, भारत में बाघों की आबादी 20,000 से 40,000 तक थी। महाराजाओं और अंग्रेजों की शिकार प्रथाओं के साथ-साथ अवैध गतिविधियों के कारण बाघ लुप्त होते गए। बाघों की हत्या अभी-२ भी रुकी नहीं है।
महाराष्ट्र की एक बाघिन “अवनी” को एक शिकारी को मारने के लिए मार दिया गया
( द इंडियन एक्सप्रेस, 18 जुलाई 2020)। सरकार ने न कुछ कहा और किया।
यह पैरा स्पष्ट नहीं है संध्या
बाघ बचाओ कैंपेन
2008 में एन.डी.टी.वी और एयरसेल ने मिलकर ” सेव आवर टाइगर्स ” की शुरुआत की। अमिताभ बच्चन इसके ब्रांड एम्बेसडर रहे। बाघों को बचाने के लिए प्रधानमंत्री कौन से प्रधानमंत्री के सामने पेटिशन भी रखी गयी। अन्य राज्यो के मुख्यमंत्रियों से भी यह भरोसा दिलाया गया कि वे बाघ बचाने के इस मिशन में अपना साथ देंगे। इस कैंपेन ने बाघों की घटती समस्याओं के बारे में बात रखने को एक मंच दिया। जो लोग निजी स्तर खत्म होती प्रजातियों के लिए लड़ रहे हैं उनकी आवाज़ पूरी दुनिया सुने।
जाने-माने लोगों की हिस्सेदारी
एन.डी.टी.वी के चेयरमैन डॉ. प्राणोय राय ने मध्यप्रदेश के ‘ पेंच टाइगर रिज़र्व ‘ में 12 घण्टे का लाइव ” टेलेथोन ” कार्यक्रम चलाया। कब लाईव कार्यक्रम चलाया बाघों को बचाने के लिए इस कार्यक्रम द्वारा फंड्स इकट्ठा किए गए। बहुत बड़ी संख्या में आस-पास के लोगों ने भी इसमें अपना साथ दिया। बहुत ही जानी- मानी लाइफ फोटोग्राफर बेलिंडा राइट ने भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। बाघों की सुरक्षा और घटती संख्या को लेकर लोगों से बात की। अभिनेत्री मलाइका अरोड़ा खान, दिया मिर्ज़ा और पूरब खोली जैसे अभिनेता ने भी बाघों को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की। ऐश्वर्या राय बच्चन और अभिषेक बच्चन ने 14 लाख रुपए बाघों को बचाने के कार्य के लिए दिए। मंत्री, गायक, खिलाड़ी, अभिनेता, एन.जी.ओ सबने आगे बढ़कर कैंपेन को आगे बढ़ाया।
प्रतियोगिता आयोजन: बाघ की घटती संख्या को देखते हुए
बहुत सारे स्कूलों में बाघों को बचाने के लिए बच्चों के बीच प्रतियोगिता का आयोजन कराया गया। सभी बच्चों ने इसमें हिस्सा लिया। किसी ने पोस्टर्स, चित्र तो किसी ने अपनी बात कहकर बाघों की कम होती संख्या को लेकर सबको जागरूक किया।
बाघों को लेकर जागरूकता पहुंचाने में सोशल मीडिया ने सबसे बड़ा काम किया। ट्विटर पर हैशटैग “ टाइगर फ़ॉर एवर “ करके कैंपेन चलाया गया।
A sad indictment of the human quest to rid India of its beautiful wild #tigers: https://t.co/XqkYDdLL2G thankfully their are people who care enough to help us reverse the trend now…
— Tigers4Ever (@Tigers4Ever2010) July 20, 2020
डब्लू डब्लू एफ़ और टाइगर अवेयरनेस ऐसे पेज हैं जो बाघ संरक्षण को लेकर काम करते हैं।
For the millions of people depending on them, and the ecosystem they support…
Here's why we urge governments to ensure funding is not cut for protected areas.@mongabay #GlobalTigerDay #InternationalTigerDay #covid19https://t.co/OF5wEXqOSm
— WWF Tigers (@WWF_tigers) July 29, 2020
July 29th Global Tiger Day, as we know Everyday is Tiger Day. We are losing Tiger due to man-animal conflict,poaching, loss of habitat ,lack of resources for field staff and prosecution rates are low for wildlife crimes. See our website to learn more about our work.. pic.twitter.com/1hKX2pEeK0
— Tiger Awareness (@tigerawareness) July 28, 2020
आप भी ऐसे कैंपेन और पेज के साथ जुड़कर बाघों के बचाव के लिए काम कर सकते हैं।