बुंदेलखंड: उत्तर प्रदेश में पंचायती राज चुनाव को लेकर जनता के बीच खूब हलचल है। लोग चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में जुट गए हैं। चोरी चुपके प्रचार भी खूब कर रहे हैं। यूपी की योगी सरकार आगामी पंचायत चुनावों में उम्मीदवारों की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता तय करने जा रही है। इसके तहत 8वीं पास वाले उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते हैं। इसके अलावा दो से ज्यादा बच्चों वाले दावेदारों को भी झटका लग सकता है। इस बात को लेकर खूब चर्चा हो रही है। हालांकि सरकार इस बात पर अभी कोई फैसला नहीं की है। इसको लेकर हमने रिपोर्टिंग करते हुए लोगों के विचार जाने। लोगों ने कहा कि अगर इस फैसले के साथ चुनाव होगा तो कम पढ़े लिखे महिला और पुरुष छूट जायेंगे। खासकर महिलाओं को मौका नहीं मिलेगा क्योंकि महिलाओं की शिक्षा स्तर ग्रामीण यूपी में बहुत कम है।
चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश जिले के अफसरों को सतर्क किया है कि पंचायत चुनाव को लेकर प्रारंभिक तैयारी शुरू कर दे। सूबे के जिन जिलों में कोरोना की स्थिति बेहतर नजर आ रही है, वहां पर 15 सितंबर से मतदाता सूची बनाने का काम शुरू हो जाएगा। आयोग से बुकलेट और प्रपत्र पहले ही भेजे जा चुके। पहले डोर टू डोर सर्वे होगा, बीएलओ गणना कार्ड पर नाम नोट करेंगे, जो पहले से नाम है उनके आधार और मोबाइल नंबर लिए जाएंगे। इसके बाद जिन मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट में बचेंगे, उनके नाम फार्म भरवाकर शामिल किए जाएंगे।
दरअसल उत्तर प्रदेश की 59,163 ग्राम पंचायतों के मौजूदा ग्राम प्रधानों का कार्यकाल आगामी 25 दिसंबर को समाप्त हो रहा है। इसी क्रम में अगले साल 13 जनवरी को जिला पंचायत अध्यक्ष और 17 मार्च को क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा हो रहा है। ऐसे में अक्टूबर-नवंबर में पंचायत का चुनाव करवा पाना प्रशासन के लिए काफी मुश्किल है, क्योंकि पंचायत के चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को कम से कम छह माह का समय चाहिए। इसके अलावा सारी तैयारियों के पूरे होने के बाद भी पंचायत चुनाव की प्रक्रिया पूरी करने के लिए चुनाव आयोग को कम से कम 40 दिन का समय चाहिए।
माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार इस बार जिला पंचायत सदस्य, बीडीसी, प्रधान, ग्राम पंचायत सदस्य का चुनाव एक साथ कराएगी। आयोग से जिलों को जो तैयारी कराने के निर्देश दिलवाए गए हैं, वह चारों पदों पर एक साथ चुनाव कराए जाने के क्रम में हैं। इससे साफ जाहिर है कि उत्तर प्रदेश में जब भी चुनाव होंगे सभी पदों पर एक साथ होंगे।
सूबे की पंचायतों का परिसीमन भी है। इसके अलावा जिन ग्राम पंचायतों का पिछले 5 वर्षों में शहरी निकायों में विलय हुआ है उनको हटाकर अब ऐसी पंचायतों के नए सिरे से वार्ड भी तय होने हैं। वोटर लिस्ट का विस्तृत पुनर्निरीक्षण का काम 15 सितंबर से शुरू हो रहा, जिसमें दो से तीन महीने का समय लग सकता है। इसी तरह से अगले साल ही चुनाव की संभावना बनती नजर आ रही है। ऐसे में यूपी सरकार ग्राम प्रधानों का कार्यकाल खत्म कर ग्राम प्रधान और वार्ड सदस्यों को मिलाकर प्रशासनिक समिति का गठन कर सकती है। इस दौरान मौजदा ग्राम प्रधानों को ही प्रशासक बनाकर उनसे ही गांव में विकास कार्य करवाए जा सकते हैं। ये भी सुनने में आ रहा है कि खण्ड विकास अधिकारी ग्राम पंचायतों और एसडीएम तहसील स्तर के प्रशासके हो सकते हैं।
खैर आम जनता यह भी मान रही है कि किसी भी निर्णय के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के परिणाम होते हैं। लोगों की मांग है कि यह अच्छा निर्णय होगा अगर लागू हुआ तो लेकिन इसको सभी तरह के चुनावों में लागू किया जाना चाहिए। अब जनता सरकार के फैसले का इंतजार कर रही है और सवाल पूंछ रही है कि चुनावी नीति सबके लिए अलग अलग क्यों? ऐसे दो तरह की नीति या भेदभाव का जिम्मेदार कौन है? जो भी है लोग इंतज़ार कर रहे हैं सरकार के फैसले का।