खबर लहरिया Blog 10वीं 12वीं के विद्यार्थी गर्मियों की छुट्टियों में घूमने की बजाय करते हैं भविष्य चमकाने का काम

10वीं 12वीं के विद्यार्थी गर्मियों की छुट्टियों में घूमने की बजाय करते हैं भविष्य चमकाने का काम

अधिकतर 9वीं से 12वीं कक्षा के बच्चे अपनी गर्मी की छुट्टियों में अपने घर की आर्थिक स्थिति में मदद करने के लिए काम करना शुरू कर देते हैं।

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                                                                                                 छत्तीसगढ़ के रायपुर में पढ़ने वाले छात्रों की तस्वीर

रिपोर्ट – छत्तीसगढ़ फेलो उर्मिला 

स्कूल जा रहे बच्चों को हमेशा गर्मी की छुट्टियों का इंतजार रहता है। विद्यार्थी अपने स्कूल की परीक्षा खत्म होते ही अपनी गर्मी की छुट्टियों का प्लान करते हैं कि गर्मी की छुट्टी में क्या-क्या करेंगे? कहाँ घूमने जाएंगें? पर ऐसा बोलने के लिए सभी बच्चे नही होते। अधिकतर 9वीं से 12वीं कक्षा के बच्चे अपनी गर्मी की छुट्टियों में अपने घर की आर्थिक स्थिति में मदद करने के लिए काम करना शुरू कर देते हैं। प्रत्येक बच्चे का मन होता है कि वो छुटियों में घूमे, खेले और खाएं लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो उम्र से पहले बड़े होकर जिम्मेदारियां निभाते हैं ताकि माँ-बाप का बोझ हल्का हो। उनके मन में हमेशा भविष्य को लेकर, अपनी शिक्षा को लेकर चिंता बनी रहती है कि वे कैसे इन गर्मियों की छुट्टी में नौकरी करके कुछ पैसे कमा सकें। कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो अपने शौक पुरे करने के लिए नौकरी की तलाश में जुट जाते हैं ताकि अपने मन पसन्द की चीजे खरीदने के लिए पैसे कमा सकें। जैसे -: मोबाइल खरीदना, कपड़े खरीदना इत्यादि।

तो आइए जानते हैं गर्मी की छुटियों में ये स्कूल के बच्चे क्या-क्या करते हैं?

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सामान को पीठ पर उठाने का काम

राहुल टंडन जोकि छत्तीसगढ़ के रायपुर के ग्राम बिरगांव से है बताते हैं कि, “ इस साल 10वीं कक्षा की परीक्षा दी है। जब मैं छोटा था तब गर्मी की छुट्टी में बुआ के गांव घूमने जाता था। दिन भर घूमना, खेलना, कूदना, नए दोस्त बनाता था। बचपन का लाइफ बहुत ही खूबसूरत और अनमोल होता है। जैसे-जैसे बड़े हो रहें हैं अब जिंदगी में बचपना खत्म हो रहा है। मैं अभी परीक्षा के बाद से अपने बुआ के घर आया हूँ। यहां हेमाली ( सामान को पीठ पर उठाने का काम) का काम करता हूँ। रोज मुझे 50 किलो शक्कर की बोरी, 50 किलो मैदा की बोरी और 26 – 26 किलो आटा की बोरी उठाने का काम मिलता है। एक दिन का 350 रुपए रोजी है। महीने का 9000 हजार रुपए मिल जाता है जिसमें से खुद का खर्च निकाल कर बाकी पैसे घर भेजा देता हूँ।

कंप्यूटर कोर्स करना

कुछ बच्चे अपने बुआ के घर सिर्फ घूमने, खेलने नहीं जाते कुछ काम के लिए भी जाते हैं ताकि वह अपना कीमती समय इस तरह से इस्तेमाल कर सके तो कुछ विद्यार्थी इन छुट्टियों में अलग-अलग तरह के कोचिंग लेते हैं ताकि भविष्य में वो इस कॉम्पिटिशिन की दुनिया में पीछे न रह जाए।

ऐसे ही समझ वाली सतरेखा राय, छत्तीसगढ के जिला बाजार ग्राम हिरमि बलौदा से हैं बताती हैं कि, “मैं अभी 12वीं जीव विज्ञान (बायो) लेकर पढ़ाई कर रही थी। मैं अपनी गर्मी की छुट्टी में गांव घूमने जाती थी पर 12वीं परीक्षा के बाद मेरे भाई ने मुझे कंप्यूटर कोर्स के लिए बोला है तो अभी वही करने जाती हूँ महीने का 200 रुपए फ़ीस है।”

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मजदूरी का काम

मुकेश राय जिन्होंने 12वीं परीक्षा दी है। छतीसगढ़ के ग्राम हिरमि बलौदा बाज़ार से हैं। उन्होंने बताया कि, “ मुझे कही घूमना पसंद नहीं है तो कहीं जाता नही हूँ इसलिए गर्मी छुट्टी में काम करता हूँ। 9वीं क्लास से 12वीं तक गर्मी की छुट्टियों में काम करता आया हूँ। ट्रेक्टर में मिट्टी भरने का काम , ट्रेक्टर में खाद भर कर खेत में डालने का काम , गर्मी में फसल रखवाली का काम, कंपनी में काम इससे घर में मदद हो जाती है और खुद का खर्च निकल जाता है।

ऐसे विद्यार्थी अभी से मिट्टी के बोझ तले अपने नए भविष्य का निर्माण करने में लगें हैं। ये काम उनके हौसले को दिखाता हैं, अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी को दिखाता हैं और कहीं न कहीं खुद को बहारी दुनिया की चकाचौंध से खुद को बचाए रखने की समझ को भी दर्शाता है। कहीं न कहीं इस बात को भी चिन्हित करता है कि जिम्मेदारी का भार उठाते-उठाते मन थक जाता है और मन चाह कर भी घूमना नहीं चाहता।

नौकरी न मिल पाने से निराश

बिरगांव रायपुर की हिमानी साहू जिन्होंने 10वीं की परीक्षा दी है कहती हैं, “गर्मी छुट्टियों में गांव घूमती हूँ पर इस साल सोचा कंप्यूटर सीखने जाऊंगी पर मां ने पैसे नहीं है बोलकर मना कर दिया। पापा का निधन हुआ है तब से मां ही घर का खर्च चलाती है तो मैंने भी जिद्द नहीं की। सोचा कुछ काम करके मदद करूंगी पर अभी तक काम नहीं मिला है।” हिमानी नौकरी करना चाहती हैं पर नौकरी न मिल पाने से निराश हैं क्योंकि वह अपनी माँ की मदद नहीं कर पाई।

मोनिका साहू और दीप्ती रायपुर के मजदूर नगर सरोरा से हैं। दोनों ने इस साल 12वीं पूरी की है वे बताती हैं, “हर गर्मी की छुट्टियों में अपने नाना-नानी या दादा दादी के पास जाते थे पर इस साल शिक्षा से जुड़े वर्कशॉप अटेंड करेंगे जो हमारा पहला अनुभव होगा।”

गर्मियों की छुट्टियों में बच्चे बहुत-सी चीजें सीख और सीखा सकतें हैं या पूरा दिन सो कर गुजार सकते हैं ये उनके सोच के ऊपर छोड़ते है। पर आप अपने बच्चो के भविष्य के साथ क्या करना चाहते हैं? ये आप तय कर सकते हैं।

 

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