वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन’ (डब्ल्यू.एच.ओ) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने 194 देशों में बच्चों के स्वास्थ्य पर जहरीले हवा के प्रभाव का विश्लेषण करते हुए 2016 में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की वायु प्रदूषण से प्रेरित मौतों की सबसे ज्यादा संख्या दर्ज की गई है।
सोमवार को जिनेवा में जारी ‘वायु प्रदूषण और बाल स्वास्थ्य‘ नामक रिपोर्ट के मुताबिक घर के अन्दर और बहार वायु प्रदूषण से जुड़ी स्वास्थ्य जटिलताओं के कारण देश में पांच साल की उम्र के कम से कम 100,000 बच्चे अब तक मर चुके हैं।
नाइजीरिया (98,001), पाकिस्तान (38,252), डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो (32,647), इथियोपिया (20,330) और आखिर में भारत को जोड़ते हुए ये सभी बाल मृत्यु दर में सबसे खराब पांच देशों की सूची के अंतर्गत आते हैं।
सर्वेक्षण किए गए देशों में, भारत ने 2016 में बाहरी वायु प्रदूषण के कारण पांच साल से कम उम्र के बच्चों को घर के अन्दर और बाहर वायु प्रदूषण से संपर्क के कारण दूसरी सबसे ज्यादा मौत दर्ज की है – नाइजीरिया सबसे पहले नंबर पर है।
भारत में उस आयु वर्ग के लगभग 98% बच्चे पी.एम 2.5 के स्तर से अवगत हैं जो डब्ल्यूएचओ के 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के वार्षिक मानक से अधिक है। पी.एम 2.5 प्रदूषक कणों के पदार्थ हैं जिनके व्यास 2.5 माइक्रोमीटर से कम है। ये पदार्थ इतने छोटे होते हैं कि ये खून में मिलकर, हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं।
डब्ल्यूएचओ के अनुमान के अनुसार, कम और मध्यम आय वाले देशों में उच्च वायु प्रदूषण के स्तर के संपर्क में आने से पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत हो जाती है, जिनमें से निमोनिया और इन्फ्लूएंजा उनका प्रमुख कारण है। 2016 में बड़े प्रदुषण स्तर के चलते, पूरी दुनिया में लगभग 600,00 बच्चों की मौत तीव्र निचले श्वसन संक्रमण के कारण हो चुकी है।
पिछले 10 सालों में प्रकाशित महत्वपूर्ण अनुसंधान अध्ययन और दुनिया भर के विशेषज्ञों के इनपुट को ध्यान में रखते हुए डब्ल्यूएचओ ने स्वास्थ्य प्रभावों की एक सूची तैयार करी है जिसमे बच्चों को वायु प्रदूषण का किन-किन चीजों से सामना करना पड़ता है वो सब लिखा गया है।
डब्ल्यूएचओ की आलोचना के अनुसार ये पाया गया है कि वायु प्रदूषण भी ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकारों और ध्यान घाटे के अति सक्रियता विकार जैसे व्यवहार संबंधी विकारों का कारण बन सकता है; प्रतिकूल चयापचय परिणाम जैसे मोटापे और इंसुलिन प्रतिरोध; ओटिटिस मीडिया की घटना (मध्य कान की सूजन संबंधी बीमारी); और बच्चों में रेटिनोब्लास्टोमा (रेटिना का कैंसर) और ल्यूकेमिया (रक्त कैंसर) जैसे विकार बच्चों में भी हो सकते हैं।
बच्चे बड़ों की तुलना में अधिक शारीरिक रूप से सक्रिय होते हैं; तो उनका वायु-संचार भी ज्यादा होता है। वे जमीन के करीब होते हैं, जहां प्रदूषण सांद्रता अधिक होती है। गर्भवती मां द्वारा श्वास लेने वाले कुछ प्रदूषक उसके रक्त प्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं और फिर भ्रूण तक पहुंचकर, बदले में, बच्चे के विकास को प्रभावित कर सकते हैं।
डब्ल्यूएचओ गरीबी और वायु प्रदूषण के संपर्क में एक मजबूत सहसंबंध बताता है। कम आय वाले समुदायों में बच्चे वायु प्रदूषण के असमान रूप से उच्च प्रभाव का सामना करते हैं। गरीबी, लोगों को अपनी जरूरतों को पाने के लिए प्रदूषण के स्रोतों पर निर्भर बनाये रखती है, और गरीबी उनके उपयोग से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को भी जोड़ती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीबी, पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए लोगों की क्षमता को भी सीमित करती है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार बच्चों में लड़कियों इन सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं और भारत में वायु प्रदूषण के कारण लड़कों की तुलना में अधिक लड़कियां मर जाती हैं।