अपनी रिपोर्टिंग के अनुभव पर हमने देखा है कि ज़्यादातर सामुदायिक शौचालय में ताला पड़ा रहता है। शौचालय सिर्फ शो पीस बनकर रह गए हैं। अगर गांवों में हर घर शौचालय नहीं हैं तो फिर गांव ओडीएफ कैसे हुए जो कि साल 2019 में हमारा देश ओडीएफ घोषित हो चुका है।
देश ने स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के तहत एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है। देश के कुल गांवों में से आधे यानी 50 प्रतिशत गांवों ने मिशन के दूसरे चरण के तहत ओडीएफ प्लस का दर्जा हासिल कर लिया है। तमाम मीडिया रिपोर्ट्स और सरकारी डेटा के अनुसार उत्तर प्रदेश ने भी इस मिशन के तहत 95.2% का आंकड़ा पार कर लिया है जो देश भर में चौथे स्थान पर आता है।
इस मिशन को लेकर ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है। इस मिशन की शुरुआत 2 अक्टूबर 2014 से शुरू हुई थी, तब से लेकर आज तक सरकारी आंकड़े कुछ और ही हैं। शुरुआत से लेकर आज तक हमने सैंकड़ों रिपोर्ट कवरेज की हुई हैं जो इन आंकड़ों की पोल खोलती हैं। इस आर्टिकल में हम आपको उन रिपोर्ट्स के बारे में बताएंगे।
ये भी देखें – चित्रकूट: हमार गाँव ओडीएफ है, पता नहीं: ग्रामीण, विश्व शौचालय दिवस
ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय का हाल
गांव में देखा जाये तो कुछ ही लोगों को शौचालय मिला हुआ है। जिन परिवारों को शौचालय नहीं मिल पाया उन घरों की महिलाओं, लड़कियों, बुजुर्गों को खेतों में शौच के लिए मजबूर होकर जाना पड़ता है। शौचालय न मिल पाने में कई तरह की चीज़ें सामने आती हैं।
जैसे कि पंचायत की तरफ से लोगों का डेटा सरकारी दस्तावेजों में न रिकार्ड करना, सही से जांच न हो पाना, जिन लोगों ने खुद शौचालय बनाने की सोची और पैसा बाद में मिल जाने के चक्कर में गड्ढे खोद दिए लेकिन उनका पैसा न मिलना इत्यादि। कुछ ग्राम पंचायतों के मजरे ऐसे हैं कि पांच साल प्रधानों की प्रधानी बीत गई है पर वहां शौचालय नहीं मिला।
चित्रकूट जिला, मानिकपुर ब्लॉक, ग्राम पंचायत डोंडामाफी, मजरा छतैनी। यहां पर सालों से रहने वाली ममता और रोशनी का कहना है कि उन लोगों को शौचालय नहीं मिला। जंगल में शौच के लिए जाना पड़ता है, चाहें आधी रात ही क्यों न हो, बीमार क्यों न हों। सबसे ज़्यादा परेशानी बारिश के मौसम में होती है। पिछले साल शौच जाते समय एक व्यक्ति को सांप ने काट लिया और उसकी मौके पर मौत हो गयी। इसके अलावा कई और घटनाएं हो चुकी हैं।
मानिकपुर की ग्राम पंचायत हर्दीकलां का मजरा डीह पुरवा। यहां की दुर्गावती, सूरजकली,आशा,विद्यावती, मनीषा आदि महिलाओं का कहना है कि वह लोग मजबूर हैं, घर से बाहर शौच जाने के लिए। खुद के खेत न होने पर दूसरे लोगों के खेत जिनमें से कुछ जमींदार लोगों के भी खेत पड़ते हैं तो वह लोग बैठने नहीं देते और गाली-गलौच जो करते हैं वह अलग।
रात में, अंधेरे में सबकी नजरें बचाकर समय का इंतजार करना ही पड़ता है। जब पेट खराब हो या दस्त की बीमारी लग गई तो आफत खड़ी हो जाती है। अब फिर बरसात का मौसम आ रहा है। हर खेत में पानी भर जाएगा और कहीं शौच के लिए बैठने की जगह नहीं रह जायेगी। उनकी बस्ती में करीब सौ घर हैं और किसी के पास शौचालय नहीं है, न खुद का और न ही सरकारी। 2014 में लगभग दस लोगों को जो शौचालय मिले थे, वह आज भी अधूरे पड़े हैं। न छत पड़ी और न ही दरवाजा लगा। सिर्फ सीट बैठाकर ईंट की दीवार थोड़ी उठवा दी गई थी। इन शौचालय में कोई इमरजेंसी में बैठ भी जाए तो सिर तक भी नहीं ढकेगा और नाम दिया गया है इज्जतघर।
ये भी देखें – बांदा : गांव में शौचालय की कमी से बढ़ रही खुले में शौच की समस्या
पूर्व प्रधानों पर लापरवाही का आरोप
यहां की प्रधान पूनम का कहना है कि मजरों में अभी तक शौचालय हर घर तक नहीं पहुंचा है। उनकी कोशिश है कि सबको स्वच्छ भारत मिशन का लाभ दिया जा सके। इस संबंध में ग्राम विकास अधिकारी (सचिव) राजकुमार ने बताया कि जो मजरे इस योजना के लाभ से छूटे हैं वह पूर्व प्रधानों की लापरवाही है। वैसे सामुदायिक शौचालय तो बने हुए हैं तो जब तक लोगों को शौचालय नहीं मिल जाते तब तक लोग सामुदायिक शौचालय का इस्तेमाल करें।
अपनी रिपोर्टिंग के अनुभव पर हमने देखा है कि ज़्यादातर सामुदायिक शौचालय में ताला पड़ा रहता है। शौचालय सिर्फ शो पीस बनकर रह गए हैं। अगर गांवों में हर घर शौचालय नहीं हैं तो फिर गांव ओडीएफ कैसे हुए जो कि साल 2019 में हमारा देश ओडीएफ घोषित हो चुका है।
सरकारी आंकड़े कहते हैं कि मिशन के तहत, भारत में सभी गांवों, ग्राम पंचायतों, जिलों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने ग्रामीण भारत में 100 मिलियन से अधिक शौचालयों का निर्माण करके 2 अक्टूबर 2019, महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक स्वयं को “खुले में शौच से मुक्त” (ओडीएफ) घोषित किया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि खुले में शौच न करने की प्रथा स्थायी रहे, कोई भी वंचित न रह जाए और ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन की सुविधाएं सुलभ हों।
मिशन अब अगले चरण मतलब ओडीएफ-प्लस की ओर आगे बढ़ रहा है। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के दूसरे चरण के तहत ओडीएफ प्लस गतिविधियां ओडीएफ व्यवहार को सुदृढ़ करेंगी और गांवों में ठोस एवं तरल कचरे के सुरक्षित प्रबंधन के लिए मध्यवर्तन करने पर ध्यान केंद्रित करेंगी। अब देखना होगा कि यह मिशन अपने टारगेट साल 2024-25 तक ज़मीनी हकीकत वाला लक्ष्य पूरा कर पायेगा या नहीं?
इस खबर की रिपोर्टिंग सुनीता देवी द्वारा की गई है।
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’