15 अगस्त 2025 की थीम का नाम है नया भारत। इतना बढ़िया सा शब्द जिसको मुंह से निकालते ही आनंदमय सुख का एहसास होता है। जैसे ही मैंने पीछे पलट कर जमीनी हकीकत की तरफ ध्यान दिया तो सवालों की बौछार खड़ी हो गई।
लेखन – मीरा देवी
15 अगस्त 2025 की थीम का नाम है नया भारत। है न, एकदम धांसू वाला सपना। सेम वैसे ही जैसे कुछ सालों से 15 अगस्त की थीम रखी जाती है। इतना बढ़िया सा शब्द जिसको मुंह से निकालते ही आनंदमय सुख का एहसास होता है। सुनते ही मन में एक तस्वीर बनती है कि साफ सुधरा कपड़े पहने बच्चे, हरे-भरे खेत, पक्के मकान, बराबरी के अधिकार, सुरक्षित महिलाएं, बेहतरीन अस्पताल और शिक्षा, साफ-सुथरे गांव और शहर, खुशहाल लोग और मुस्कुराता भविष्य।
मुझे भी हुआ लेकिन जैसे ही मैंने पीछे पलट कर जमीनी हकीकत की तरफ ध्यान दिया तो सवालों की बौछार खड़ी हो गई। बहुत सारे सवाल मुझे खुद परेशान करने लगे। क्या पॉलिश है, दिखावापन है अपनी कमियों पर पर्दा डालने और काम न करने के लिए। आपको क्या लगता है जनता बेवकूफ है। लोग बेवकूफ हैं, उनको यह समझ में नहीं आता है। हां, कुछ ऐसे लोगों को बिल्कुल भी समझ नहीं आया और न ही उनको कोई फर्क पड़ता है जो सादगी से अपना जीवन जीते हैं। फोन और इंटरनेट की दुनिया से दूर हैं और मुख्यधारा से दूर है। लेकिन जो लोग पढ़े लिखे और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं, मुख्यधारा से जुड़े हैं वह ये सब नौटंकी देख और समझ रहे हैं। ठीक से काम करने के लिए सरकार को मजबूर कर रहे हैं और सवाल पूछ रहे हैं, जवाबदेही मांग रहे हैं। वह बात और है कि सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता है। जानबूझ कर आंखे, नाक, कान और दिमाग सब बंद कर लेती है। इस जज्बे को भी इस स्वतन्त्रता दिवस पर 21 तोपों की सलामी मिलनी चाहिए ताकि सिर्फ वही बोल सके, क्योंकि सबका मुंह तो बंद कर दिया गया है शाम दाम दंड भेद के हथकंडे अपनाकर। इस साल के कितने उदाहरण गिनाऊं जहां पर नया भारत की पोल खुलती दिख रही है। ऐसा सपना दिखाने वाली सरकार अपने ओवर कांफिडेंट और घमंड में चूर है।
बाढ़ का नतीजा बहुत भयावह चल रहा है। उत्तर प्रदेश और बिहार से हमने कवरेज किया। सबसे ज्यादा गरीब असहाय, खास तबके और समुदाय के लोग प्रभावित हुए। 2022 तक में पक्के घरों का सपना दिखाने वाले और लाल किले से बोलने वाले प्रधानमंत्री आज तक कच्चे घर को पक्का नहीं करा पाए। यह भी 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर संबोधित करते समय की बात थी। ऊपर से बाढ़ क्षेत्रों में लाई का पैकेट बांट फोटो शूट करते हैं।
महिलाओं के हक़ अधिकार और उन पर होने वाली हिंसा की बात ही न करो। जिस तरह से हिंसा बढ़ रही है महिलाओं और लड़कियों के प्रति कि आंकड़े देख सुनकर घमंड कम नहीं और बढ़ जाता है। झूठ के ऊपर झूठ बोलकर जनता को बेवकूफ बनाते हैं। साल तो छोड़ ही दो सिर्फ जून और जुलाई की बात करें तो उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के आस पास इलाके से ही छोटी लड़कियां जो 4 से 8 साल तक की हैं उनके साथ रेप के मामले सामने आए। एक की तो अस्पताल में तड़प तड़प कर मौत हो गई मतलब उसकी हत्या कर दिया जल्लादों ने और पुलिस वाहवाही के लिए एनकाउंटर करती है। मूक बाधिर जो बोल नहीं सकती, सुन नहीं सकती ऐसी लड़कियों महिलाओं के साथ बलात्कार और हत्या के मामले सामने आए। आय दिन ऐसी घटनाएं आ रही हैं लेकिन उन पर कितना कार्यवाही हो रही है, ये एक बड़ा सवाल है, क्या यही है नया भारत। जो महिलाएं खुलकर समाज और सरकार का सामना कर रही हैं, जवाब मांग रही हैं, सवाल खड़ा कर रहीं हैं, उनको पुलिस और कानून की धमकियां देकर चुप करा दिया जा रहा है।
जिस तरह से राजनीति और चुनावी प्रक्रिया बदलती जा रही है और चुनाव आयोग के पर खास पार्टी के मनमुताबिक काम करने के आरोप लगते जा रहे हैं, क्या यहीं है नया भारत। जिस तरह से सब कुछ अपने हिसाब से कर दो, क्या वही लगता है नया भारत। मीडिया की आवाजों को दबाना, पत्रकारों को डराना, धमकाना, जान से मारना यह सब नया भारत का ही हिस्सा है, है न?
क्या-क्या लिखूं इस नए भारत की थीम पर, हजारों सवाल हैं मेरे और हो सकता आपके भी हों। मुझे पता है कि इस आर्टिकल को कितने लोग पढ़ने के बाद समझेंगे और विचार करेंगे और कितनों के लिए सिर्फ यह एक आर्टिकल होगा। आप पढ़े या न पढ़े आपकी स्वतंत्रता है, बस ये कहना और सोचना जरूरी है कि यह पॉलिश किया हुआ शब्द ‘नया भारत’ को आप किस रूप में देखते है। चाहे जिस क्षेत्र को देख लीजिए विकास हो, शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, जान और सुरक्षा हो, हक और अधिकार हो, महिला, पुरुष या थर्ड जेंडर हो, धर्म हो-जाति हो, पर्यावरण हो मतलब कि हर क्षेत्र में हम बहुत पीछे हैं। इस ओवर कांफिडेंट और घमंड में हम पीछे ही रहेंगे जैसे और और पीछे होते जा रहे हैं।
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