वैसे तो सरकार बाल विवाह पर रोक लगाने के लिए कई कानून पारित किये और शादी के लिए लड़कियों की 18 वर्ष उम्र और लड़कों की 21 वर्ष उम्र तय की लेकिन उसके बावजूद इस देश में ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहाँ अभी बाल विवाह हो रहा है और इसके कारण लड़कियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।
जब लड़कियों की शादी 18 साल से पहले करा दी जाती है, उस समय उनका शरीर बढ़ रहा होता है, ऐसे में गर्भवती होने से उनका विकास रुक जाता है, और वो कई बीमारियों की शिकार बन जाती हैं। बाल विवाह के कारण न उनका शारीरिक विकास हो पाता है और न ही मानसिक। कहने को तो सैकड़ों कानून बने हैं लेकिन आज भी पूरी तरह से आज भी बालविवाह पर रोक नहीं लग पाई है। हमने देखा कि चित्रकूट जिले में लगभग 5000 से ज्यादा महिलाओं में खून की कमी पाई गई है, जब हमने इसकी गहराई से तहकीकात की तो पता चला जल्दी शादी हो जाना, फिर बच्चे हो जाने के कारण महिलाओं में खून की कमी हो रही है।
जब हम एक सामुदायिक केंद्र की नर्स से मिले तो उन्होंने बताया कि बच्चियां जिनकी अभी खेलने कूदने की उम्र है वो बच्चा पैदा करने की स्तिथि मे नहीं होती है पर ज़बरदस्ती उनकी शादी करा दी जाती है और ससुराल वाले उनपर घर संभालने का, काम करने का, बच्चा पैदा करने का इतना दबाव डालते हैं कि उनका मानसिक स्वास्थ पूरी तरह से ध्वस्त हो जाता है। यह छोटी छूती बच्चियां स्कूल जाने की उम्र में घर के कामों और ससुराल में इतना व्यस्त हो जाती हैं कि अपना ध्यान ही नहीं रख पाती।
हमने कुछ ऐसी महिलाओं से बात की जिनका बाल विवाह हुआ था, उन महिलाओं ने हमें बताया वो बहुत छोटी थी जब उनकी शादी हुई थी उनको ये नहीं पता था कि शादी क्या है, जब वो ससुराल पहुँचती हैं और उनपर एकदम से इतना बोझ डाल दिया जाता है तब उन्हें इस बंधन का मतलब समझ आता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और ज़िम्मेदारियाँ उठाने के चलते वो अपने स्वास्थय के बारे में भूल ही जाती हैं।