खबर लहरिया Blog धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले भारत में मुस्लिमों के साथ दमनकारी व्यवहार क्यों?

धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले भारत में मुस्लिमों के साथ दमनकारी व्यवहार क्यों?

रिपोर्ट के अनुसार, लव जिहाद को आधिकारिक तौर पर अदालत व भारतीय सरकार द्वारा मान्यता नहीं दी गई है फिर ऐसे में जब कुछ हिन्दू संगठनों द्वारा इन नामों का इस्तेमाल कर धार्मिक रोष फैलाया जा रहा है तो प्रशासन इसके खिलाफ कोई कार्यवाही क्यों नहीं करती?

in an secular india, why muslims are being oppressed

                                                                                                          प्रदर्शन करते हुए लोग व नोटिस की फोटो

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है? यहां सांप्रदायिकता के नाम पर लड़ाइयां नहीं होती? यहां हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई हैं? यहां सभी धर्म के लोगों के बीच भाईचारा है? भारत एक लोकतांत्रित देश हैं? यहां सबके लिए कानून एक बराबर है?
मैं यह चीज़ें नहीं कह रही बल्कि देश और समाज यह चीज़ें कहता आया है। लोगों के यह कथन ही मेरे सवाल हैं क्योंकि जो दशकों से हिन्दू-मुसलमान के नाम पर होता आ रहा है उनके जवाब काफी स्पष्ट है कि अमूमन ‘ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता।’

हाल ही में, उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी में हुआ मामला जिसमें एक हिन्दू व मुस्लिम लड़के ने एक 14 साल की लड़की का अपहरण किया, यह मामला आज भी यह बताने के लिए काफी है कि एक संप्रदाय को किस तरह से टारगेट कर पूरे समुदाय को इसमें घेरा जाता है और इस तरह से धर्म की राजनीति का सिलसिला चलता रहता है। दोषी को दोषी की तरह न देखकर एक समुदाय की तरह देखा जाता है जहां से यह धर्म की राजनीति व खेल हमेशा शुरू होता है।

हालांकि, मामले में दो आरोपी एक हिन्दू व मुस्लिम व्यक्ति शामिल थे लेकिन हर जगह मुस्लिम शब्द को बढ़ावा देते हुए पूरे समुदाय को दोषी की तरह दिखाया गया। स्थानीय लोगों ने मामले को लव-जिहाद का नाम दे दिया। लव-जिहाद, शब्द कुछ हिंदू समूह, मुस्लिम पुरुषों और हिंदू महिलाओं के बीच संबंध को बताने के लिए करते हैं।

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लव जिहाद, मज़ार जिहाद के नाम पर राजनीति

इससे पहले राज्य सरकार द्वारा ‘मज़ार जिहाद’ (land Jihad) के नाम पर राज्य में बने सारे मज़ार को तोड़ने के आदेश दिए गए थे जिनमें कई मज़ार तो दशकों पुराने थे जिन्हें तोड़ दिया गया था। वहीं इस दौरान सर्फ कुछ मंदिर तोड़े गए थे।

              उत्तराखंड में राज्य सरकार के आदेश पर तोड़े गए मज़ार की फोटो/ सोशल मीडिया

इसके अलावा जब रोहिंगया मुस्लिम उत्तराखंड में शरण लेने आये तो इन समुदायों को यह कहकर टारगेट किया गया कि इससे राज्य की जनसंख्या पर असर पड़ेगा। इस तरह से मुस्लिमों के नाम पर आये दिन कुछ न कुछ होता ही रहता है।

एक और उत्तराखंड का ही मामला सामने आया जिसमें पौड़ी गढ़वाल के एक भाजपा की बेटी की शादी आपसी सहमति से मुस्लिम समुदाय के लड़के से 28 मई को होने वाली थी लेकिन हिन्दू दक्षिणपंथियों द्वारा लव-जिहाद के नाम पर उन पर दबाव बनाया गया और आखिरकार उन्हें शादी रद्द करनी पड़ी।

विश्व हिन्दू परिषद, आरएसएस आदि संगठन हमेशा धर्म का नाम अलापते रहते हैं। धर्म का नाम अलापना गलत नहीं लेकिन किसी अन्य के धर्म को नीचा दिखाते हुए स्वयं के धर्म को ऊंचा रखना गलत है। लोगों को अन्य धर्म के लोगों के बारे में भड़काना गलत है। लेकिन जब भी मुस्लिम शब्द से जुड़ा कोई भी मामला होता है तो ये संगठन धर्म का झंडा लेकर खड़े हो जाते हैं और कहते हैं कि मुस्लिम, हिन्दू धर्म की लड़कियों को बहलाकर उनका धर्म परिवर्तन करते हैं।

यह धर्म की लड़ाई एक तरफ से नहीं बल्कि दोनों तरफ देखने को मिलती है। कई बार मुस्लिम संगठनों द्वारा भी यही किया जाता है और मामले से हटकर सिर्फ धर्म पर ध्यान केंद्रित कर बवाल बनाना शुरू कर दिया जाता है।

उत्तरकाशी जिले के पुरोला कस्बे में 28 मई को हुए मामले के बाद स्थानीय लोगों द्वारा ‘बाहरी’ लोगों को राज्य छोड़ने की धमकी दी गई और अल्टीमेटम देने के तीन दिनों के प्रदर्शन के बाद न्यूज़ क्लिक की रिपोर्ट के अनुसार, 42 मुस्लिम दुकानदारों को अपनी जगह छोड़कर भागने पर मज़बूर कर दिया। यह तब हुआ जब ओबैद नाम के मुस्लिम व्यक्ति और जितेंद्र सैनी नाम के दो आरोपी लड़कों ने नौवीं क्लास की लड़की को अगवा कर लिया था।

रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय स्वयं संघ से जुड़े लोगों ने मामले को लव-जिहाद का नाम दिया जिसके बाद ‘बाहरी’ शब्द का इस्तेमाल करते हुए मुस्लिम लोगों को बाहर करने के लिए पंचायत में फरमान सुनाये गए।

पुरोला में 15 जून, 2023 से पहले अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को उनकी दुकाने खाली करने हेतु कई जगह पोस्टर दिखाई दिए। यह पोस्टर ‘देवभूमि रक्षा अभियान’ की तरफ से लगाए गए थे जिन पर लिखा था, “लव जिहादियों को सूचित किया जाता है कि 15 जून 2023 को होने वाली महापंचायत होने से पूर्व अपनी दुकानें खाली कर दें, यदि तुम्हारे द्वारा यह नहीं किया जाता है तो वह वक्त पर निर्भर करेगा।”

‘देवभूमि रक्षा अभियान’ द्वारा दिया गया जगह खाली करने का नोटिस

पोस्टर्स के लगने के बाद कई लोगों ने पुलिस से सुरक्षा की भी मदद मांगी और पुलिस द्वारा भी उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिया गया। लेकिन डर की वजह से कई मुस्लिम दुकानदार 30 मई तक अपनी स्थानीय जगहों को छोड़कर चले गए जो वहां 25-30 सालों से रह रहे थे।

मामले को लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि उत्तराखंड का माहौल खराब करने की इज़ाज़त किसी को नहीं दी जाएगी और उत्तराखंड में ‘लव जिहाद’ और ‘मजार जिहाद’ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

द प्रिंट की 7 अप्रैल 2023 की रिपोर्ट में बताया गया कि मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने दावा किया था कि उत्तराखंड में वन भूमि पर 1,000 से अधिक अनाधिकृत मजार या मकबरे बनाए गए हैं, जिसे उन्होंने ‘मजार जिहाद’ बताया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के हिंदी मुखपत्र पाञ्चजन्य के साथ एक इंटरव्यू में धामी ने दावा किया कि इन मजारों से “असामाजिक तत्व निकलते हैं” और उनकी सरकार ऐसी संरचनाओं के खिलाफ “सख्त कार्रवाई” करेगी।

मुस्लिम समुदाय को ‘बाहरी’ कहने पर ओवैसी का जवाब

AIMIM पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने मामले को लेकर ट्वीट करते हुए कहा, “15 जून को होने वाली महापंचायत पर तुरंत रोक लगाई जाए! वहां रह रहे लोगों को सुरक्षा प्रदान किया जाए। वहां से पलायन कर गए लोगों को वापस बुलाने का इंतज़ाम किया जाए। #भाजपा सरकार का काम है कि गुनहगारों को जेल भेजे और जल्द अमन क़ायम हो।”

आगे कहा, “पिछले 9 वर्षों से मॉब लिंचिंग, लव जिहाद, हिजाब और ह़लाल के नाम पर माहौल ख़राब किया जा रहा है और अब उत्तरकाशी में मुसलमानों के घर पर एक्स का निशान लगाकर खाली करने को कहा गया।”

आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने अपने एक बयान में कहा कि,’अगर इस्लाम कहीं सुरक्षित है तो सिर्फ इण्डिया में है।” इसके जवाब में ओवैसी ने कहा,”आप कौन होते हैं सुरक्षित बोलने वाले, ये तो संविधान है। संविधान है तो हम सुरक्षित हैं।”

वहीं जब हिन्दू राइट विंग के लोगों द्वारा मुस्लिम समुदाय को ‘बाहरी’ लोग कहकर संबोधित किया तो इसका भी जवाब देते हुए ओवैसी ने कहा,”आप मुस्लिमों को बाहरी (invaders) बोलने वाले कौन होते हैं। अगर ये मुल्क किसी का है तो वह ट्राइबल्स (आदिवासियों) का है।

दमनकारी विचार

उत्तराखंड ‘देवों की भूमि’ है और यह कहकर मसुलिम समुदाय पर तंज कसते हुए यह बताया गया कि वह उनकी भूमि को मैला कर रहे हैं और उनसे भूमि को छोड़ने के लिए कहा जा रहा है। उन्हें बहिष्कृत किया जा रहा है। उन्हें हटाने वाले ये हिन्दू संगठन और ये लोग कौन होते हैं?

हिन्दुओं के संत कबीर ने भी हिन्दू-मुस्लिम को एक कहा है। उनका एक दोहा है, “राम-रहीम एक है, नाम धराया दोय। कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परौ मति कोय।” मतलब यह है कि राम-रहीम एक ही नाम है जिसके दो नाम रख दिए गए हैं। कबीर कहते हैं कि दो नाम सुनकर भ्रम में मत पड़ जाना।

पर ये धर्म और भक्ति का दावा करने वाले लोग तो आज भी भ्रम में हैं और दोनों को अलग-अलग देखते हुए एक-दूसरे समुदाय को नीचे दबाते हैं, टारगेट करते हैं और राजनीति का खेल खेलते हैं। लोगों को यह समझने की ज़रूरत है कि एक व्यक्ति के क्राइम को पूरे समुदाय पर नहीं डाला जा सकता। चाहें वह कोई भी समुदाय हो।

यहां कानून की भूमिका सबसे ज़्यादा बन जाती है लेकिन धर्म के मामले में कानून के कदम भी एक कदम पीछे ही नज़र आते हैं और इस तरह से धर्म के नाम पर हिंसा फैलती रहती है।

द प्रिंट की रिपोर्ट यह कहती है कि लव जिहाद को आधिकारिक तौर पर अदालत व भारतीय सरकार द्वारा मान्यता नहीं दी गई है फिर ऐसे में जब कुछ हिन्दू संगठनों द्वारा इन नामों का इस्तेमाल कर धार्मिक रोष फैलाया जा रहा है तो प्रशासन इसके खिलाफ कोई कार्यवाही क्यों नहीं करती? आखिर धर्म के नाम पर दमनकारी शासन का राजनीतिक खेल कब तक चलता रहेगा?

 

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