त्रिवेणी गांव के 60 साल के ओमप्रकाश कहते हैं कि उनकी जिंदगी बीत गई हमेशा से इस गांव में खारा पानी रहा है जिसके कारण लोग कई बार मन होते हुए भी दाल नहीं बना पाते हैं। जबकि दाल को प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है। खासकर शाकाहारी लोगों को दिनभर की प्रोटीन जरूरतों को पूरा करने के लिए रोज एक कटोरी दाल खाने की सलाह दी जाती है।
रिपोर्ट – गीता देवी
पानी की समस्या आए दिन बढ़ती ही जा रही है। कई इलाकों मे पानी का आभाव है और कई इलाकों में लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में पानी की बहुत समस्या है। कहीं कहीं पानी उपलबध है तो वो खारा है और खारे पानी को ही लोगों को मजबूरन पीना पड़ता है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड / बांदा जिले में कई गांव ऐसे हैं जहां खारा पानी आता है। साफ़ पानी न होने की वजह से खाना बनाने और खर्च के इस्तेमाल में भी बाधाएं आती है। अछरौण और त्रिवेणी गांव में जहां पर खारे पानी की वजह से लोग घर में ठीक से खाना नहीं बना पा रहे हैं जिससे उनके स्वास्थ पर असर पड़ रहा है।
भोजन बनाने में आ रही दिक्कत
ग्रामीण इलाकों में भोजन में सबसे ज्यादा मात्रा में खाए जाने वाला भोजन दाल है। दाल स्वास्थ के लिए बहुत फायेदमंद होती है। यहां तक की डॉक्टर भी स्वास्थ बिगड़ने पर दाल पीने-खाने को कहते हैं। अब गांव में खारे पानी होने से दाल ठीक से गल नहीं पाती। त्रिवेणी गांव के 60 साल के ओमप्रकाश कहते हैं कि उनकी जिंदगी बीत गई हमेशा से इस गांव में खारा पानी रहा है जिसके कारण लोग कई बार मन होते हुए भी दाल नहीं बना पाते हैं। जबकि दाल को प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है। खासकर शाकाहारी लोगों को दिनभर की प्रोटीन जरूरतों को पूरा करने के लिए रोज एक कटोरी दाल खाने की सलाह दी जाती है। अरहर, उड़द, मूंग और मसूर, सभी दालों को सेहत के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है। दाल पकाने के लिए अब ज्यादातर लोग प्रेशर कुकर का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि इससे जल्दी पक जाती है और गैस की भी बचत होती है और चूल्हे में भी कम ईंधन लगता है। पहले के लोग पतीले या हांडी में दाल पकाते थे और आज भी कई घरों में भी बनाते है। आपने ध्यान दिया होगा कि जब भी कोई किसी खुले बर्तन में दाल पकाते हैं तो उसके ऊपर साबुन जैसा झाग बनने लगता है। ऐसे में अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता है कि आखिर दाल पकाते समय झाग क्यों बनता है? क्या इसे खाना सेहत के लिए सुरक्षित है या नहीं? वही झाग है जो प्रेशर कुकर के अंदर दाल को गला देता है। वरना खारे पानी से दाल नहीं पकती और घंटों लोग इंधन फूकतें रहते हैं।
दूर से लाना पड़ता है पानी
त्रिवेणी गांव की कुसमा (65) बताती हैं कि 50 साल से ऊपर उनकी शादी के हो गए क्योंकि उनकी बचपन में ही शादी हो गई थी। उन्हें कुकर में खाना बनाना नहीं आता है। वह चूल्हे में खाना बनाती है और मीठा पानी लेने जाने में भी उनको बहुत दिक्कत होती है लेकिन दाल के लिए वह 1 किलोमीटर दूर से पानी लाती है या किसी के सहयोग से मंगवा लेती है। ऐसे में पानी को संभाल कर रखना पड़ता है और इतना ही नहीं जब घर में मीठा पानी नहीं होता तो मोहल्ले में एक दुसरे के घर से मीठा पानी मांगा के दाल बनाते हैं।
खारे पानी से कपड़े होते हैं खराब
अछरौण गांव के कमलेश ने कहा कि उनके गांव की आबादी लगभग 5 हजार है लेकिन पानी पूरे गांव में पानी खारा है। खाना तो सही से नहीं बन पाता है लेकिन कपड़े धोने से कपड़े भी खराब हो जाते हैं। विधायक निधि से नदी किनारे एक ट्यूबवेल लगाया गया था जिसमें तीन-तीन दिन तक पानी ही नहीं आता। गांव में चार पुराने कुएं भी हैं लेकिन 2 ही कुएं सही हैं जिसका पानी मीठा है लेकिन अब जल स्तर गिरने से वह भी सूख गए हैं।
नहाने पर हो जाती है खुजली
अछरौण गांव की राधा उम्र (50) बताती है कि खारे पानी की वजह से इस गांव में आने के बाद हमारी तो जिंदगी ही नरक हो गई। पानी के लिए गांव के बाहर दूर जाना पड़ता है इसलिए खारे पानी से ही नाहना पड़ता है। खारे पानी से नहाने पर शरीर में साबुन नहीं लगती अगर साबुन लगाते हैं तो वह तेल की तरह शरीर में चिपक जाती है। जिससे खुजली भी होने लगती है और नहाने का कोई फायदा भी नहीं होता लेकिन अब तो आदत सी पड़ गई है। फिलहाल जल जीवन मिशन का काम तेजी से चल रहा है और उनके हिसाब से लास्ट स्टेज पर होगा। उनको उम्मीद है कि यह पानी आने लगेगा तो गांव में मीठा पानी हो जाएगा और यह सारी समस्या खत्म हो जाएगी। जब तक नहीं आता तब तक इस समस्या का सामना कर ही रहे हैं। उन्होंने बताया कि इतना खारा पानी है कि पीने से ऐसे लगता है जैसे नमक का घोल बनाकर के पानी पी रहें हो। गांव के बाहर का कोई व्यक्ति आ जाए तो एक घूंट भी पानी नहीं पी पाते हैं।
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