सेक्स वर्कर गरीबी और अमीरी से नहीं बनते। ज़रूरतें सबकी होती है। मैं किसी की भी अब मदद नहीं लेती। अकेले हूँ, अकेले ही रहना चाहती हूँ। मैं सेक्स वर्कर हूँ। मुझे नहीं बुरा लगता है।
“मैं किन्नर नहीं हूँ, ये हर कोई मुझे बताने की कोशिश करता, मारता। घर-परिवार समाज ने तो अपनाया ही नहीं था यहां तक की किन्नर समाज के लोगों ने मेरे बाल काटे,मुझे मारा। क्यों चिढ़ते हैं मुझसे? मुझे नहीं पता मेरी खूबसूरती से जलते थे। मैं किन्नर हूँ, मैं महसूस करती हूँ। इसका सबूत कहां से दूं और कब तक सबूत देती रहूं।”
यह कहानी हरिद्वार की 28 वर्षीय महिला की है जो अपनी पहचान एक किन्नर के रूप में बताती हैं व पेशे से सेक्स वर्कर हैं। यह कहानी उनके जीवन में उनकी पहचान की लड़ाई, उनके सेक्स वर्क के पेशे, उनके जीवन की चुनौतियों व समाज की अवधारणा को प्रतिबिंबित करती है।
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पहचान व मंज़ूरी
वह 12 साल की थी जब पिताजी नहीं रहे। परिवार में बुज़ुर्ग माँ, भाई-भाभी हैं। वह परिवार के साथ रहती हैं लेकिन संघर्ष कर रही हैं। घर के हालात अच्छे न होने की वजह से घर वाले पढ़ा नहीं पाए। कहतीं, ‘घर की ज़िम्मेदारियों ने मुझे कहां से कहां पहुंचा दिया, कुछ समझ ही नहीं आया। मैं क्या से क्या बनती जा रही हूँ।
अब इतने आगे आ गई हूँ कि पीछे मुड़ना मुश्किल है या शायद मैं पीछे मुड़ ही नहीं सकती। जब तक मैं घर वालों का सपोर्ट कर रही हूँ वो मेरा कर रहे हैं। वैसे भी कौन चाहता है हमारे जैसा किसी के घर में कोई हो। उनका नाम गंदा होगा, ये सोचकर लोग हम जैसे को घर में ही नहीं रखते। मैं जो भी हूँ, जैसी भी हूँ, एक्सेप्ट करना है करो, नहीं तो कोई बात नहीं।’
12-13 साल की उम्र में वह समाज की नज़र में बिगड़ने लगी। पता नहीं कब लड़के से लड़की बन गई। लड़का होने पर लोग खुश होते हैं। बतातीं, लड़का घर का चिराग होता है, वंश चलायेगा, बहुत अपेक्षा होती है। फिर जब न लड़की, न लड़का किन्नर हो जाए तो खुद में बुरा लगता है। मैं क्या हूँ, न लड़की, न लड़का बीच में अटकी हूँ जिसे समाज आज भी पूरी तरह से स्वीकार नहीं करता। छक्का, हिजड़ा, मीठा, गे, जानें क्या-क्या नाम देते हैं। बहुत बुरा लगता है लेकिन अब आदत हो गई है।
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सबके पेशे की तरह मेरा पेशा है
अपने पेशे के बारे में बताते हुए कहतीं, सुबह से उठकर, नहाकर, तैयार होना फिर शाम होने पर सेक्स वर्क के लिए जाती हूँ। कभी का दिन बहुत अच्छा जाता है। कभी इतना बुरा की याद रहता है। दुआ करती हूँ ऐसे लोग दोबारा न मिलें लेकिन ऐसा नहीं होता। जो अच्छे होते हैं वो दोबारा नहीं मिलते। जो बद्तमीज़ होते हैं वो दोबारा ज़रूर मिलते हैं। शुरूआती दौर में बहुत बुरा-बुरा हुआ। गांव के गंवार मिल गए। कस्टमर ऐसे-ऐसे मिले, सिगरेट से जला दिया, बाल काट दिया, नोंचते हैं, खींचते हैं।’
कहा, सेक्स वर्कर गरीबी और अमीरी से नहीं बनते। ज़रूरतें सबकी होती है। मैं किसी की भी अब मदद नहीं लेती। अकेले हूँ, अकेले ही रहना चाहती हूँ। मैं सेक्स वर्कर हूँ। मुझे नहीं बुरा लगता है। मैं खुश हूँ कि मेहनत से कमाती, अपना शरीर बेचती हूँ। चोरी नहीं, गलत काम नहीं करती। लोगों का नज़रिया है, ये काम गलत है। मेरा मानना है कि किसी की गुलामी से अच्छा है कि खुद पर निर्भर रहूं। ये काम भी इतना आसान नहीं है। हर तरह के लोगों से सामना होता है। अच्छे लोग भी मिलते हैं, बुरे भी लेकिन इन सब चुनौतियों से डर कर पीछे नहीं हट सकती। जैसे सबके काम में उतार-चढ़ाव होते हैं, वैसे ही ये मेरा काम है। कुछ संघर्ष चुनौतियाँ हैं, उसे फेस करना ही है।
पेशा-चुनौती-आज़ादी
अपने पेशे से वह खुश हैं लेकिन यह पेशा उनके लिए कई बार, उनके खुद के लिए, उनके जीवन के लिए एक चुनौती की तरह भी सामने आकर खड़ा हो जाता है। ऐसे में कई फैसले उन्हें अपने जीवन के लिए अपनी इच्छा के खिलाफ भी लेने पड़ते हैं। इससे जुड़ा एक उदाहरण देते हुए वह बताती हैं-
‘अकसर ऐसा हुआ है कि सेक्स करने की बात हमारी एक से हुई है पर कई लोग आ गए। मज़बूरी थी फंस गए तो कह दिया, भैया! कर लो तुम भी। एक बार का किस्सा है, जिसके साथ मैं गई थी वह तो मुझे छोड़कर भाग गया। वहां दो लोग और मौजूद थे। उन दो लोगों ने मेरा फोन छीन लिए। 18 हज़ार का फोन था। छोड़ नहीं सकती थी इसलिए कहा कर लो दोनों। मेरे साथ सेक्स किया, बुरी तरह से मारा लेकिन मैं अपना फोन नहीं छोड़ी। सेक्स करने दिया फिर फोन लेकर आई।
कई बार ऐसा होता है, कई लोग आ जाते हैं और पैसे भी नहीं देते। सेक्स करके चले जाते हैं फिर डांटकर, चिल्लाकर भगा देते हैं। धंधा है हमारा, इस लाइन में हैं। काम तो नहीं छोड़ेंगे लेकिन अब बहुत कुछ समझ आ गया। मेरा घर इसी से चलता है। मेरे परिवार वाले नहीं जानते कि मैं देर रात कहां रहती हूँ। कैसे उनकी महंगी-महंगी ज़रूरते पूरा करती हूँ।’
परिवार को अपने बचपन के बारे में जोड़ते हुए कहा, जब मैं बचपन से जवानी में कदम रख रही थी, बहुत कुछ सुनाते थे। कैद रखना चाहते थे लेकिन अब नहीं। मैं अपनी मर्ज़ी से चलती हूँ। घर में खाना भी बनाती हूँ। लड़कियों की तरह कपड़े भी पहनकर रहती हूँ। चूड़ी भी पहनती हूँ लेकिन अब मुझे कोई नहीं टोकता। घर वाले छोटे कपड़े पहनने पर टोकते हैं, बुरा लगता है। मैं चाहती हूँ मैं छोटे-छोटे कपड़े पहनकर निकलूं। सबकी नज़र मुझ पर हो। लोग अच्छे कमेंट पास करे लेकिन हर तरह के लोग हैं। गलत कमेंट ज़्यादा पास करते हैं। अच्छे भी होते हैं।
‘मानों हम इंसान नहीं’
स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौती को लेकर बतातीं, सबसे बड़ी बात यह है कि जब हम बीमार पड़ते हैं, डॉक्टर के पास जाते हैं लोग अजीब नज़रों से देखते हैं। जैसे हम बीमार नहीं हो सकते, हम इंसान नहीं है। आधार कार्ड बनवाने में बहुत दिक्कत होती है। कोई लड़का हमसे सच्चा प्यार नहीं कर सकता। मैं सेक्स वर्कर हूँ, सिर्फ किन्नर नहीं हूँ।
समाज की यह रीति रही है, अगर कोई उसकी मंज़ूर की हुई धारणाओं से परे कोई पहचान या व्यवसाय या कोई अन्य चीज़ अपनाता है तो समाज उसे दरकिनार कर देता है। उसे जीने नहीं देता क्योंकि समाज मानता है कि समाज में जीने के लिए समाज के कायदे-कानून मानना सबसे सर्वप्रथम है, उसके जीवन, उसकी पहचान से भी ज़्यादा। इसी विचारधारा ने कभी लोगों को खुलकर सामने आने ही नहीं दिया। उन्हें हमेशा बांध कर रखा। बदलते युग के साथ जो इन धारणाओं से बाहर निकलने लगे, उन्हें बहिष्कृत किया जाने लगा।
यह कहानी हर उस व्यक्ति से जुड़ी है जो समाज की धारणाओं के खिलाफ लड़ रहे हैं ताकि वह अपने अनुरूप जीवन जी सकें। जीवन में अगर साथी मिल जाए तो भी खुश और न मिले तो भी लेकिन एक आशा के साथ जीना, जैसे कि उन्होंने कहा….
“मैं खुश हूँ अपनी ज़िंदगी से, अपनी लाइफ से। हाँ, अगर कोई मेरे साथ आगे जाना चाहेगा तो मैं तैयार हूँ।”
इस खबर की रिपोर्टिंग नाज़नी रिज़वी द्वारा की गई है।
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