उनके माता-पिता उन्हें पढ़ाई के लिए स्पोर्ट करते हैं लेकिन यहां सब लड़कियों के साथ ऐसा नहीं है। अपनी बात को जोड़ते हुए कहा- ‘मेरी दोस्त भी मेरे साथ पढ़ाई करती थी लेकिन अब वह नहीं पढ़ती। वह कहती है, अब उसे और नहीं पढ़ना। क्यों नहीं पढ़ना उसे नहीं पता।’
तारागढ़ की लड़कियां इसलिए स्कूल नहीं जा पातीं क्योंकि वहां हाई स्कूल नहीं है। लड़के तो आगे की पढ़ाई के लिए जयपुर,अजमेर चले जाते हैं लेकिन वह नहीं जा पातीं क्योंकि वह लड़कियां हैं। पढ़ाई के लिए थोड़ा दूर भेजना या किसी और स्थान पर भेजना मतलब उनकी सुरक्षा को खतरे में डालना – यहां के लोगों के अनुसार। बस इसलिए जो थोड़ी-बहुत पढ़ाई वह कर पातीं हैं अपनी स्थानीय जगह पर रहते हुए कर पातीं हैं अगर परिवार इज़ाज़त दे तो।
बता दें, तारागढ़, राजस्थान का एक मशहूर पर्यटन स्थल है जो रिपोर्ट्स के अनुसार 1 हजार 885 फीट ऊपर बसा हुआ है।
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“यहां पढ़ने का ज़्यादा नहीं है”
काफी ढूंढ़ने पर कुछ लड़कियों से बात हुई। 16 वर्षीय महताब (बदला हुआ नाम) ने बताया, उन्होंने यहीं तारागढ़ से आठवीं तक की पढ़ाई की है। आगे की पढ़ाई के लिए अजमेर जाना होता है। वह आगे जाकर फैशन डिज़ाहन का कोर्स करना चाहती हैं।
उनके माता-पिता उन्हें पढ़ाई के लिए स्पोर्ट करते हैं लेकिन यहां सब लड़कियों के साथ ऐसा नहीं है। अपनी बात को जोड़ते हुए कहा- ‘मेरी दोस्त भी मेरे साथ पढ़ाई करती थी लेकिन अब वह नहीं पढ़ती। वह कहती है, अब उसे और नहीं पढ़ना। क्यों नहीं पढ़ना उसे नहीं पता।’
महताब की बड़ी बहन साहिबा 18 वर्ष की हैं। वह अब नहीं पढ़ती। कहतीं, अब पढ़ाई में मन नहीं लगता। घर में मम्मी की घर के कामों में मदद करती हैं पर उन्होंने भी आईपीएस बनने का सपना देखा था।
महताब और साहिबा, ने अपनी बातें बहुत दबें शब्दों में कहीं। वह कह भी रहीं थीं और डर भी रही थी, और यहां यह बात समझना लाज़मी है कि उन्हें इस दौरान किस तरह का डर होगा और इसलिए हमने भी उनसे ज़्यादा नहीं पूछा क्योंकि उनकी चुप्पी ही सब बताने के लिए काफी नज़र आ रही थी।
साहिबा कहती, “यहां पढ़ने का ज़्यादा नहीं है”, कुछ लड़कियां जाती हैं पर अधिकतर नहीं और यह कहकर वह बड़ी ही खुशी से अपने छोटे भाई की ट्रॉफी दिखाती हैं जो उसके भाई को क्रिकेट अकादमी में अच्छा प्रदर्शन करने की वजह से मिली थी।
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आर्थिक मज़बूरी व महंगी शिक्षा
रेशमा, तारागढ़ में लड़कियों की शिक्षा की स्थिति को थोड़ा व्यापक रूप में बताती हैं। कहती, ‘मेरा आदमी फूल की दुकान में काम करता है। उससे दिन के 3 सौ या 4 सौ मिलते हैं और महीने के लगभग 10 हज़ार बस। इससे ज़्यादा तो खर्चा ही होता है।’
पूछने पर अगर यहां आगे तक स्कूल या कॉलेज होता तो क्या लड़कियां पढ़ने जातीं? इसके जवाब ने उन्होंने कहा, ‘वह ज़रूर से जातीं। उनकी पढ़ने में बहुत दिलचस्पी है। पढ़ने वाले तो अजमेर भी जाते हैं लेकिन सबके पास भेजने के लिए पैसे नहीं होते। मेरी बेटी अभी छठी कक्षा में पढ़ती है लेकिन उसे कुछ भी पढ़ना नहीं आता। अध्यापक भी अच्छे नहीं है।’
उन्होंने अजमेर से आठवीं तक पढ़ाई की है और वह चाहती हैं कि उनकी बेटियां भी आगे पढ़ें। उनके चार बच्चे हैं। अगर वह अपनी बेटियों को अजमेर पढ़ने भी भेजें तो एक का लगभग 9 से 10 हज़ार रूपये खर्चा पड़ेगा। ऐसे में वह सबको कैसे पढ़ाये। महीने की आमदनी ही इतनी नहीं है।
लड़कियों-महिलाओं से बात करने पर जितना समझ आया, वह यह था कि पहला हर परिवार अपनी लड़कियों को स्कूल नहीं भेज सकता या भेजता। वजह आर्थिक अवस्था और आमदनी और दूसरा शिक्षा के लिए इज़ाज़त न देना। दूसरा, हाई स्कूल दूर होने की वजह से सुरक्षा के नाम पर स्कूल न भेजना। तीसरा, निवास स्थान पर बेहतर शिक्षा व स्कूल का न होना।
ऐसा नहीं है कि लड़कियां पढ़ना नहीं चाहतीं लेकिन उस शिक्षा के बीच आती बाधाएं उन्हें शिक्षा तक पहुंचने नहीं देती। उनसे कहीं न कहीं इन बाधाओं को समझने की उम्मीद लगाई जाती है। अतः, बात यहां आकर खत्म कर दी जाती है, ‘अब वे पढ़ना नहीं चाहतीं।’
इस खबर की रिपोर्टिंग संध्या व नाज़नी द्वारा की गई है।
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