खबर लहरिया Blog भक्ति से आहत होकर ‘धार्मिक तंत्र’ के नाम खुला खत 

भक्ति से आहत होकर ‘धार्मिक तंत्र’ के नाम खुला खत 

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार तो हमारा मौलिक अधिकार है। हमारे संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है। वह दूसरों को परेशान किए बिना अपने धर्म का पालन कर सकता है। तो आप धर्म का ठेका लेकर उसका बोझ क्यों ढो रहे हैं। जबरन इस काम काम को जॉब क्यों बना लिया है।

इलस्ट्रेशन – ज्योत्सना 

लेख  –  मीरा देवी 

मैं रोहिणी का अभागा पति और छोटकी का अभागा बाप बोल रहा हूं। अपने ऊपर बहुत दुख दर्द पीड़ा और चिढ़न है जो तुम दोनों से अलग हो गया हूं। तुमसे बिछड़े 15 दिन होने को आए हैं तुम अब तक आई नहीं। तुमने वापस आने का वादा तो सिर्फ दो घंटे का किया था न। कितना इंतजार करूं, अब नहीं हो पा रहा है मुझसे! भोले बाबा उर्फ नारायण साकार हरि की भक्त रही रोहिणी (बदला हुआ नाम) अब इस दुनिया में नहीं है। जानता हूं लेकिन दिल को कैसे भरोसा दिलाऊं! 2 जुलाई को हाथरस जिले में हुई सत्संग भगदड़ घटना में मैंने अपनी पत्नी और सात महीने की मासूम बेटी को हमेशा के लिए खो दिया। 

रोहिणी तुमने हमेशा मुझसे कहा कि भोले बाबा में बहुत शक्ति है वही तुम्हारे भगवान हैं, तुम उन्हीं की पूजा करती थी। यहां तक कि बड़की, छुटकी और मुझे भी तुम अपने साथ भोले बाबा की फोटो लगी लॉकेट पहना रखी थी। बोलती थी अगर हम यह लॉकेट पहनेंगे तो जिंदगी में कोई बाधा नहीं आयेगी। तुम तभी से ही ये लॉकेट और पूजा पाठ करना शुरू करी थी जब तुम पहली बार दिव्या चाची (बदला हुआ) के साथ सत्संग में मथुरा गई थी। तुमने बताया कि सत्संग में आई महिलाएं लॉकेट पहने हैं और पूरे घर को पहना रखे हैं। यह भी बताए कि दान दक्षिणा में दिया जाने वाला पैसा और सोना चांदी चढ़ावे के रूप में जितना ज्यादा देंगे उतना धन दौलत हमको मिलेगी। सब सुखी से रहेंगे। 

अब ये तुम्हारी सारी बातें गलत क्यों लग रही हैं मुझे। बहुत लोग बातें कर रहे हैं कि अगर इस भक्ति में इतनी दम थी तो तुम और साथ ही छोटकी भी मेरे से दूर क्यों चले गए। यह तुम्हारा और मेरा और बहुत लोगों का विश्वास है और आस्था भी जो बहुतेरे लोगों के लिए अंधभक्ति और ढकोसला है। तुम दोनों के बिना मैं और बड़की बहुत ही पीड़ा में हैं। भूख प्यास नहीं लगती, दिन दिन भर खाना नहीं खाते और बड़की का तो रो-रो के बुरा हाल है। वह समझेगी भी कैसे, जब मुझे समझ नहीं आता एक 35 साल के युवक को तो बड़की तो सिर्फ 3 साल की है। क्या भोले बाबा को हम पर दया नहीं आती। वह हमारी पीड़ा अब क्यों नहीं समझ रहे। बाबा जी! मेरी बेटी और पत्नी को मेरे पास भेज दो, बस! इसके बाद कुछ नहीं मांगूंगा आपसे। मेरी मन्नत पूरी हुई तो खूब दान दक्षिणा करूंगा।

बाबा जी, अब मैं आपको खत लिख रहा हूं अपने मन की पीड़ा और गुस्सा बताने के लिए। मुझे उम्मीद है कि आप मेरी पीड़ा को उसी तरह समझेंगे जिस तरह रोहिणी ने मुझे आपके प्रति भरोसा दिलाया था। मैं अंधभक्ति शब्द का विरोधी रहा हूं पर आज जाने क्यों डगमगा रहा हूं। मुझे नहीं पता कि आपको यह खत पढ़ने को मिलेगा भी या नहीं। आप पढ़ना भी चाहेंगे या नहीं। हो सकता है कहीं सोसल मीडिया के समुद्र में गायब हो जाए या आपको कोई फर्क पड़ेगा या नहीं।

बाबा जी, आप खूब तरक्की किए जा रहे हो। इसमें कोई दोराय नहीं कि आप दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर ही रहे हैं। करेंगे कैसे नहीं, सरकार, बिजनेसमैन, राजनैतिक लोग सब आपकी मुट्ठी में हैं। आप चाहे तो इनकी सह से कुछ भी कर सकते हैं। आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। देख लीजिए इसी सत्संग में 80 हजार भीड़ की अनुमति के साथ ढाई लाख लोगों को बुला लिए। पुलिस, स्वास्थ्य विभाग, अग्नि शमन की कोई व्यवस्था भी नहीं कराई। आप घटना के बाद भाग खड़े हुए और लोगों को मुड़कर देखा भी नहीं, हाल चाल भी नहीं लिया उस भीड़ का लेकिन क्या मजाल किसी की कि आपसे कोई एक सवाल भी पूंछ ले। इसीलिए तो कुछ नेता स्वयं घायलों और पीड़ितों से मिले लेकिन आपको एक शब्द नहीं बोले। सरकार और पुलिस आप पर बड़ी मेहरबान हो गई किसी भी तरह की कोई कार्यवाही न करके। क्योंकि सरकारी तंत्र और धर्म के ठेकेदारों का मानना है कि आप जैसी दुकानदारी चलती रहनी चाहिए। 

यह सब समझने के बाद भी बाबा जी बता दीजिए कि लोगों को अंधभक्त बनाकर लूट खसोट, मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से अपंग कर देने में आपको कितनी तरक्की और उपलब्धियां मिलती है। कितना प्रमोसन और वेतनमान बढ़ जाता है? वैसे अंधभक्ति के नशे में चूर लोग आपकी वेतनमान को हर रोज बढ़ा ही रहे हैं वह साफ समझ में आ रहा है लेकिन आपके पदाधिकारी जो सरकार से सीधे घुसपैठ में लिप्त होते हैं वह आपको प्रति व्यक्ति कितना देते हैं? देखिए अब आप यह न कह देना कि मैं आप पर आरोप लगा रही हूं और ऐसे आरोप से आपको कोई फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि सईयां थानेदार तो डर काहे का? वह तो मुझे भी पता है। अच्छा सोचिए जो धर्म के ठेकेदार रहे हैं उनका पारिवारिक इतिहास क्या से क्या हो गया है। वैसे नाम गिनाने की जरूरत तो नहीं होनी चाहिए इतना तो आप खुद ही समझदार हैं। 

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार तो हमारा मौलिक अधिकार है । हमारे संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है। वह दूसरों को परेशान किए बिना अपने धर्म का पालन कर सकता है। तो आप धर्म का ठेका लेकर उसका बोझ क्यों ढो रहे हैं। जबरन इस काम काम को जॉब क्यों बना लिया है। लोगों की मर्जी वह भक्ति करें या न करें उनकी बला। आपको इतनी चिंता क्यों सता रही है। समझ सकती हूं यह चिंता जब पैसा और शोहरत कमाने का भूत सवार होता है तो कुछ भी कर गुजरने का जूनून सवार हो जाता है। फिर चाहे वह धर्म की ठेकेदारी लेना क्यों न हो। 

भगवान के बारे में बखान तो खूब करते हो लेकिन आप खुद अपनी पूजा करवाने लगते हो। कहते हो आपके पैरों की धूल और मोजे से बदबू भरे पैरों को धोकर जो पिएंगा तो लोगों के रोग दूर हो जाते हैं। आपको गले में लॉकिट से लटकाकर रखते है। घर में आपके शक्ल की फोटो लगाकर पूजते हैं। मतलब कि मानसिक रूप से लोगों को आप कमजोर इसीलिए करते हो सत्संग जैसे कार्यक्रम आयोजित करके ताकि लोग ईश्वर आपको ही मान बैठे और आपकी दुकान और बिजनेस चल पड़ता है। हमारे देश के खासकर ग्रामीण भारत के लोग बहुत बड़े दानी होते हैं। चाहे उनके घर खाने और बच्चों की शिक्षा के लिए पैसा न हो लेकिन धर्म के लिए दस रुपए का चढ़ावा उनके लिए कुछ नहीं है। इसके पीछे यह भी सोच छिपी होती है कि अगर दस रुपए देंगे तो इसका कई गुना पैसा, धन, दौलत वापस मिल जाएगा। 

सोचिए अगर सत्संग में ढाई लाख लोग आए हैं तो हरेक से दस रुपए मिलकर ढाई लाख गुना दस रुपए मतलब पच्चीस लाख रुपए की कमाई हो गई। लोग दस रुपए में ही नहीं रुकते… भर भर के पैसा और सोना चांदी भी देते हैं। अलग अलग तरह के नामों से बने यह संगठन में जो अधिकारी और पदाधिकारी होते हैं वह और बड़ा अमाउंट खर्च करते और करवाते हैं लेकिन उनको वापसी तो मिल ही जाना है तो किस बात की चिंता। साल दो साल के बाद आप जैसे लोग अडानी अंबानी टाटा बिरला को फेल कर देते हो। इसीलिए मैं आपकी पीड़ा और उलझन को समझ सकती हूं। लोगों से भी अपील करती हूं कि उनको भी समझना चाहिए।

घर में परिवार की सुख शांति और स्वास्थ्य रखने की जिम्मेदारी महिलाओं को दिया गया है और महिलाओं ने भी इस ठेकेदारी कुप्रथा में अपने को तन मन धन से न्यौछावर कर दिया है। जो महिला न्यौछावर नहीं हुई तो उसका बेड़ा गर्ग हुआ है और उसको संस्कारी वाला दर्जा नहीं मिला। महिलाएं इसको चाहकर भी नहीं छोड़ पाती। मतलब कि अगर महिलाएं पूजा पाठ करेंगी, व्रत रखेंगी तो उनका परिवार हर तरह से तरक्की करेगा। अब महिलाओं की इस खूबी को आपने बखूबी पहुंचाना लिया और उनका दिमाग अंधभक्ति के साबुन पानी से धो दिया। अब क्या है, उस घर की क्या मजाल जो ऐसे गुरुओं से न जुड़े। 

मैं आपको मुफ्त की सलाह देना चाहता हूं अगर आपको ये ही जॉब चाहिए तो ईमानदारी और सच्चे दिल से खुद को स्वस्थ्य रखने के लिए योग करें और लोगों को करने की अपील करें ताकि लोग तन मन धन से स्वस्थ रहें। पेड़ पौधे लगाएं बिना किसी प्रोपेगंडा के और लोगों को बोलें कि वह भी लगाएं। सरकार से बोलें कि वह पेड़ पौधे न कटवाए बल्कि ज्यादा से ज्यादा देश की धरती को हरा भरा बनाएं ताकि वातावरण स्वस्छ और सुरक्षित रहे। ऐसे में आपका और भक्तों का दिमाग गोबर नहीं बन पाएगा। फिर धर्म की आड़ में आपको भी ठेकेदारी लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी, सही है न धर्म के ठेकेदार ‘बाबा जी!

 

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