मानव विकास सूचकांक (ह्यूमन डिवेलपमेंट इंडेक्स-एचडीआई वैल्यू) में इस बार भारत की रैंकिंग में 130वें पर आ गया है जिसके बाद, एक पायदान का सुधार हुआ है। लेकिन इसके बावजूद मानव विकास सूचकांक में अब भी इतना पीछे होना हम सबके लिए चिंता का विषय होना चाहिए। जाहिर है समान विकास के मामले में हमारा लक्ष्य अभी बहुत दूर है।
यूनाइटेड नेशंस डिवेलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) की तरफ से जारी ह्यूमन डिवेलपमेंट रैकिंग में कुल 189 देशों में भारत 130वें स्थान पर है।
यूएनडीपी रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष के एचडीआई मूल्य 0.636 की तुलना में इस बार यह 0.64 मापा गया जिस कारण भारत को मध्यम मानव विकास वाली श्रेणी में रखा गया है।
यूएनडीपी इंडिया के कंट्री निदेशक फ्रांसिन पिकअप ने माना है कि बेटी बचाओ-पढ़ाओ, स्वच्छ भारत और मेक इन इंडिया जैसी योजनाएं लागू करने के साथ-साथ स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बनाने और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं बढ़ाने से एचडीआई में सुधार हुआ है।
रिपोर्ट की मुख्य बात ये है कि भारत में लाखों लोग गरीब की श्रेणी से बाहर आ गए हैं। देश के लोगों की जीवन प्रत्याशा बढ़ गई है, पहले से ज्यादा बच्चे स्कूल जाने लगे हैं। महिलाएं भी सशक्त हुई हैं, लेकिन असमानता ने विकास की राह रोक रखी है।
रिपोर्ट के अनुसार, असमानता की वजह से भारत के एचडीआई वैल्यू को 26.8 प्रतिशत का नुकसान हुआ है जो दक्षिण एशियाई देशों में सबसे ज्यादा है। इसमें कोई दो मत नहीं कि भारत में विकास की रफ्तार तेज हुई है, लेकिन इसका लाभ समाज के हर वर्ग तक नहीं पहुंच पा रहा है। भारतीय जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी बुनियादी सुविधाओं और अवसरों से वंचित है।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, बीते साल भारत में जितनी संपत्ति पैदा हुई, उसका 73 प्रतिशत हिस्सा देश के 1 फीसदी धनाढ्य लोगों के हाथों में चला गया, जबकि नीचे के 67 करोड़ भारतीयों को इस संपत्ति के सिर्फ एक फीसदी यानी सौवें हिस्से से संतोष करना पड़ा है।