जब यूथ पढ़ेगा तभी देश बढ़ेगा। इसके लिए जगह जगह डिग्री कॉलेज खुलवाये जा रहे है, पर आज भी यहां पर यूथ के छात्रावास में रहकर पढ़ने की कोई ब्यवस्था नही है। हमने अपनी रिपोर्टिंग के दौरान महोबा के वीरभूमि और अतर्रा डिग्री कॉलेज में देखा, जहां पर लड़के तो किसी तरह से छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रहे है, पर वही लड़कियों के लिए हॉस्टल/छात्रावास की कोई सुविधा नही है। ऐसे में कैसे लड़कियों की सपने पूरे होंगे।
जब कि छात्रावास की ब्यवस्था के लिए हर साल लाखों रुपए आता है, इस सारी लड़कियों को भी सुविधा मील आखिर यह जिम्मेदारी किसकी है। अगर यही हाल रहा तो हमारा यूथ कैसे पढ़ेगा और देश कैसे आगे बढ़ पायेगा। बाँदा जिले के अतर्रा का पीजी कॉलेज 1960 में बना था, तभी से यहाँ छात्रावास नहीं था 2009 में हॉस्टल बना भी तो अधूरा जो की अभी चालू नही है। ऐसे ही महोबा जिले में लगभग 3 दर्जन से अधिक डिग्री कॉलेज है लेकिन छात्रावास की सुविधा नहीं है दूर-दराज के गांवों से शिक्षा ग्रहण करने आने वाली लड़कियों लडको के लिए सरकार छात्रावास की सुविधा देती है लेकिन महोबा और बाँदा जिले में छात्रावास की स्थिति बहुत ख़राब है। छात्रावास तो बना है लेकिन कहीं खुला है तो कहीं व्यवस्था नहीं है जिससे छात्र-छात्राएं महंगे कमरे लेकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं।
सरकार द्वारा ग्रामीण अंचल की बेटियों को शिक्षित करने के लिए अलेवा में 12 एकड़ में 15 करोड़ की लागत से राजकीय महाविद्यालय का निर्माण कराया गया है। आधी आबादी को आगे लाने व शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से करोड़ो की लागत से बना गर्ल्स हॉस्टल बंद है। जिससे छात्राएं महंगे किराए के कमरों में रहकर पढ़ने को मजबूर हैं। छात्राओं का कहना है कि बाहर प्राइवेट हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करना पड़ रहा है। कॉलेज में जो छत्रवास है वो चालू नही है। कॉलेज वालो को लगता है कि उन्हें लड़कियों के ज्यादा सिक्योरटी देनी पड़ेगी।
इसलिए वो चालू नही करा रहे है। जब की लड़को के लिए है। हॉस्टल है। अगर लड़कियों का हॉस्टल चालू हो जाए तो हमे आसान होगा। जितना रुपये हम बाहर देते है उसमें ज्यादा अच्छी सी कोचिंग कर सकते थे। तैयारी कर सकते है। आगे का भविष्य बना सकते हैं। वही पीजी कॉलेज के प्रबंधक कर्ण सिंह का कहना है कि वह अधूरा है इसलिए नही खुल रहा है। बजट नही आ रहा है। इसके लिए समय समय पर प्रस्ताव करते रहते है।