ऑनलाइन पढ़ाई जहां बच्चों की पढ़ाई को इस समय मजबूत कर रही है, वहीं बच्चों की सेहत से खिलवाड़ भी। ऑनलाइन पढ़ाई पर जहां सरकारें दे रहीं हैं निर्देश वहीं शिक्षा विभाग लापरवाह भी। बुंदेलखंड में ऑनलाइन की पढ़ाई की कल्पना करना अंधेरे में तीर मारना जैसे है। आइए बात करें ऑनलाइन पढ़ाई की वह भी प्राइमरी और जूनियर की।
ये सोचकर हैरानी होती है कि जहां पर प्राथमिक विद्यालय और जूनियर स्कूल जब खुलने पर पढ़ाई नहीं होती वहां घर बैठे वह भी ऑनलाइन कैसे हो सकती है। यहां का शिक्षा विभाग और अभिभावक खुद उदासीन हैं जिम्मेदार नहीं हैं वहां पर ऑनलाइन पढ़ाई भला कैसे हो सकती है। इस उदासीनता को चाहे आप लोगों की गरीबी व मजबूरी कहें या फिर शिक्षा विभाग की लापरवाही और गैरजिम्मेदारी।
हमने अपनी रिपोर्टिंग में पाया कि यहां पर भी गरीबी अमीरी का भेदभाव साफ रूप से देखने को मिला। खासकर कक्षा शिशु से लेकर आठवीं तक के बच्चे चाहे वह प्राइवेट स्कूल में हों या सरकारी स्कूल के वह ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर रहे थे क्योंकि उनके पास स्मार्टफोन नहीं है। उनके अभिभवकों के पास इंतना पैसा नहीं की वह फोन खरीद सकें। दूसरी तरफ कुछ ही सरकारी अध्यापकों ने इस काम में रुचि दिखाई। प्राइवेट स्कूल के अध्यापकों ने भी इस काम को औपचारिकता तक सीमित रखा। पूरी प्रक्रिया पता थी तो उसके बारे में तो बताया कि वह कैसे पढ़ाई करा रहे हैं लेकिन प्रूफ दिखाने में असमर्थ रहे।
रिपोर्टिंग के दौरान छोटे स्कूलों के बच्चे या तो खेलते नजर आए या फिर बकरी चराते और लड़कियां घर का काम करते। जब मैंने ऑनलाइन पढ़ाई की बात की तो इस शब्द को सुनकर भौचक्के रह गए जैसे उन्होंने पहली बार सुना हो। कोई कोई बच्चा तो मतलब भी पूछने लगे। पूछेंगे तो है ही जब सुना नहीं है। अभिभावक तो बहुत गुस्से में थे। इस मामले में पूछते ही फूट पड़े। एक तो लोक डा उन ऊपर से सारे काम बन्द फिर सरकार ने एक आफत और ला दी। कहां से लाएं इतना महंगा फोन। नहीं तो सरकार ऐसे नियम क्यों लाती है जिसको गरीब लोग पूरा न कर सके। सरकार खज़ाना के ढेर में बैठी है तो उसी तरह सोचती भी है। वहीं पर अगर बांदा जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी की बात करें तो उनके हिसाब से जनपद भर के कुल 1392 प्राथमिक और 640 जूनियर विद्यालय में से सभी स्कूलों में अच्छे से पढ़ाई चल रही है सिर्फ वहीं बच्चे नहीं जुड़ पा रहे जिनके पास मोबाइल नहीं है। इसको वह विभाग की चुनौती मानते हैं। अब ऐसे में सरकार अपने आप सवालों के घेरे में है कि ऐसा अभियान क्यों लागू किया गया जो कुछ ही लोगों की पहुंच में है।
आइए बात कर लेते हैं ऑनलाइन पढ़ाई के साइड इफेक्ट की तो डॉक्टरों का कहना कि बच्चों को बहुत ज्यादा स्क्रीन नहीं देखना चाहिए जहां वह टीवी हो लैपटॉप या मोबाइल। अब ऐसे में जब बच्चे लगातार तीन से चार घंटे पढ़ाई करेंगे स्क्रीन को देखकर तो उनकी आखों और दिमाग में जोर पड़ने से स्वास्थ्य में बुरा असर पड़ सकता है। तो क्या ये सारा खेल लोगों से फीस के रूप में दी जाने वाली राशि के लिए खेला जा रहा है? उन गरीब बच्चों का क्या जो ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पा रहे? क्या सरकार कुछ ऐसा अभियान लाएगी जिससे गरीब और अमीर सभी बच्चे पढ़ाई एक समान कर सके? क्या ये अभियान उन सभी सरकारी स्कूलों में चल पाएगा जो अभी भी बेफिक्र है? इन्हीं सवालों और विचारों के साथ मैं लेती हूं विदा। अगली बार फिर आऊंगी एक नए मुद्दे के साथ तब तक के लिए नमस्कार। अगर आपको ये शो पसंद आया हो तो अपने दोस्तों को शेयर करें। लाईक और सब्सक्राइब जरूर करना है। अगर आपके कोई सवाल है तो इनबाक्स में लिख भेजिए। कोरोना से डरें नहीं सावधान रहें। ये बातें सिर्फ बोलने की नहीं करने की भी हैं।