बेटे की चाह में लैंगिक भेदभाव कब तक सहती रहेंगी बेटियां? बोलेंगे बुलवायेगे हंस के सब कह जायेगे बेटा पैदा होने पर खुशियां लड़की होने पर कोई खास खुशी नहीं। बोलेंगे, बुलवाएंगे हंस कर बस कह जाएंगे। मै फिर हाजिर हू एक नये मुद्दे के साथ।कुछ अटपटी चटपटी बातो के साथ। दोस्तों समाज में सदियों से लड़कियों को बोझ माना जाता है वक्त बदला सोच बदल रही है लेकिन लड़कियों के प्रति क्या सोच बदली? आइए जानते हैं।
महिलाओं से सवाल
ये बताइए घर में जब किसी के लड़का होता है तो किस तरह की खुशी मनाते हैं? और अगर लड़की हुई तो क्या उतनी ही खुशी वही जश्न मनाते हैं? जो लड़का होने पर मनाया जाता है।
बात निकलवाने के लिए
अच्छा तो तो लडका वंश चलाता है इसलिए खुशी मनाते हैं।
क्यों बिटिया से वंश नहीं चलता? अगर बिटिया नहीं होगी तो लड़का कैसे होंगे कहा से आएंगे तो अकेले वंश चल जाएगा।
टिप्पणी
अभी कई लोगों की सोंच वही है लड़का वंश चलाएगा लडकियां पराया धन है।
बचपन से ही लड़की का मनोबल गिराया जाता है और बचपन से लड़की सहने की आदत डाल देती है।
और अपने उपर होने वाली हिंसा के खिलाफ बोलने की हिम्मत नही जुटा पाती। और वो कहलाती है संसकारी। इसके बाद भी कितनी बेटियां दहेज़ हत्या या शक के अधार पर मारी जाती हैं जिन्दा जला दी जाती हैं। और किसी लडकी ने अगर जुल्म के खिलाफ़ आवाज उठा भी ली तो वो बदचलन कहलाई जाती है। इन सब मे दोषी कौन होता है कानून या समाज या फिर मां बाप या फिर खुद लड़की।
सबसे पहले दोषी मां बाप होते हैं बचपन से इतना भेदभाव लडकियों के साथ करते हैं। क्यो क्या बिन बेटी चल जाएगा समाज परिवार? समाज की इस रूढीवादी सोच को कब खत्म करेंगे। ऐसा नही है बदलाव नहीं है आया। आया है, लेकिन उन लोगों के लिए जो पूजीपति हैं जिनके गरीबों के यहां आज भी बेटियां होने पर खुशियां नहीं बनाते हैं।
आइए थोडा और सुने
ये बताइए पहले मे अब कोई बदलाव आया है? जिसके बिटिया बिटिया हुई तो क्या होता है लड़का होने के लिए?
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