पटना जिले के मसौढ़ी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाला गांव निशियामा अपने सब्जी उत्पादन के लिए मशहूर है। यहां के किसान सीजन के अनुसार विभिन्न प्रकार की सब्जियां उगाते हैं, जिसमें भिंडी की खेती प्रमुख तौर पर की जाती है।
रिपोर्ट व फोटो – सुमन, लेख – सुचित्रा
इस समय यहाँ भिंडी की फसल काफी अच्छी मात्रा में हुई है। चारों ओर भिंडी के हरे-भरे खेत नजर आ रहे हैं, जो यहां के किसानों की मेहनत और खेती के प्रति उनकी लगन को दर्शाते हैं। निशियामा के किसान हर साल दो बार भिंडी की खेती करते हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है और गांव की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है।
बेलदारी चक की निवासी विभा सिन्हा बताती हैं कि भिंडी तोड़ने से पहले उन्हें कई तैयारियां करनी पड़ती हैं। सबसे पहले, वह अपने हाथों में बेकार पड़े मोजे पहनती हैं। फिर, अपने हाथों में घर पर इस्तेमाल किए जाने वाला पाउडर लगाती हैं। इसके बाद, वह अपनी साड़ी के ऊपर एक पुराना दुपट्टा लपेट लेती हैं।
वे ऐसा इसलिए करती हैं ताकि भिंडी तोड़ते समय उन्हें खुजली न हो और उनकी साड़ी भी खराब होने से बच सके। दुपट्टा लपेटने से बैठने और उठने में भी उन्हें आराम मिलता है, और शरीर के किसी हिस्से से खुजली नहीं होती।
उन्होंने इसके बाद मुस्कुराते हुए, हाथों में बाजार के खरीदे मोटे प्लास्टिक के दस्ताने पहनें और भिंडी तोड़ने के लिए तैयार हो गईं। तस्वीर में वो बेहद खुश नज़र आ रही है और हो भी क्यों न, इतनी मेहनत करने के बाद अब जाकर उन्हें मेहनत का फल मिला है।
उर्मिला देवी, जो निशियामा गांव की निवासी हैं, भिंडी की तोड़ाई का काम करती हैं। उन्होंने बताया कि भिंडी को काफी करीब से और सफाई के साथ तोड़ना चाहिए। इस प्रक्रिया में सावधानी बरतना जरूरी है ताकि फसल की गुणवत्ता बनी रहे। उनका मानना है कि सही तरीके से तोड़ने से भिंडी की ताजगी और स्वाद भी बेहतर होता है।
उर्मिला देवी बताती हैं कि, “10 कट्ठा में तीन मजदूर भिंडी तोड़ने का काम करते हैं। हर एक मजदूर को कम से कम 40 से 50 किलो की भिंडी तोड़नी पड़ती है और इसके लिए 50 रुपए मिलते हैं।”
उमाशंकर प्रसाद बताते हैं कि भिंडी को डालने के बाद उसको अच्छे से बराबर करके बोरे को उठा करके दोबारा पटकना भी पड़ता है, जिससे सभी भिंडी बोरी के अंदर सही सेट हो जाए। भिंडी को बोरी में भरकर सील दिया जाता है फिर इसे बाजार में भेजने के लिए रिक्शे में रखा जाता है। किसानों ने बताया कि इन भिंडी का बाजार में दाम 4 रुपए किलो मिलता है, जो कि किसानों के लिए कम है। वहीं, मार्केट में इसकी कीमत 20 से 25 रुपए किलो तक होती है।
खेती में महिलाओं की भी समान भागीदारी रही है लेकिन महिलाओं की मेहनत को नज़रअंदाज किया जाता है। आप तस्वीर में देख सकते हैं कि भिंडी को बाजार तक ले जाने में महिला भी उस बोझ को उठाती नजर आ रही है।
खेतों से तोड़कर आप तक इन भिंडियों को पहुंचाने में कितनी मेहनत लगती है शायद आपको अब अंदाज़ा हो गया होगा। इतनी मेहनत करने के बाद भी किसानों और खेती में लगे मजदूरों को सही दाम नहीं मिल पाता है जो हेमशा से चिंता का विषय रहा है।
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