खबर लहरिया National बलात्कार की कोशिश ‘सिर्फ गंभीर यौन हमला’ कैसे? | Court verdict on sexual violence

बलात्कार की कोशिश ‘सिर्फ गंभीर यौन हमला’ कैसे? | Court verdict on sexual violence

“लड़की के स्तनों को दबाना, उसके पाजामे का नाड़ा तोड़ना, उसको पुलिया के नीचे खींचना। ये सभी क्रियाएं बलात्कार करने की कोशिश के लिए काफी नहीं है।” ऐसा इलाहबाद के उच्च न्यायालय ने कहा। हालांकि, न्यायालय ने इन आरोपों को गंभीर यौन हमला करार दिया। दो आरोपियों ने जबरन एक नाबलिग को पकड़ा और ये सब किया था। इसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 18 के तहत कासगंज अदालत (निचली अदालत) में मुकदमा दर्ज था। इसके लिए आरोपियों को समन भेजा गया था। आरोपियों ने समन को चुनौती देने के लिए इलाहबाद हाई कोर्ट का रुख किया था। इस सम्बन्ध में इलाहबाद कोर्ट ने 17 मार्च 2025 को फैसला सुनाया।

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यह फैसला सवाल उठाता है कि क्या महिलाओं की पीड़ा को कानूनी परिभाषाओं में सीमित कर दिया गया है? वहीं, मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले में कहा कि पत्नी का निजी रूप से पोर्न देखना या आत्म-संतुष्टि करना पति के प्रति क्रूरता नहीं है, जब तक कि इससे वैवाहिक संबंध प्रभावित न हों। ये फैसले न्याय व्यवस्था में पितृसत्ता की गहरी जड़ें दिखाते हैं, जहां एक ओर महिलाओं की देह पर हिंसा को हल्का करार दिया जाता है। सवाल यह है कि क्या अदालतों का यह दोहरा रवैया महिलाओं के अधिकारों को कमजोर नहीं कर रहा?

 

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