भारत जिसे विविधताओं वाला देश कहा गया, इसी नाम से जाना गया वो अब हिन्दू राष्ट्र के नाम पर कारावास की सज़ा का काट रहा है। इसे कैद करने वाले और कोई नहीं बल्कि देश के सेवक, लोग, नेता हैं जिन्हें देश का प्रधानमंत्री कहा जा रहा है, जिन्हें गृह मंत्री व राज्य मंत्री कहा जा रहा है इत्यादि सभी लोग शामिल हैं।
भारत “हिन्दू राष्ट्र” की विचारधारा में कैद देश हो रहा है। संविधान, कानून, नौकरशाह और देश के सेवक सब हिन्दू हो रहे हैं। देश की बांहों को भगवे रंग से रंगा जा रहा है। “हिन्दू राष्ट्र” के विचारधाराओं वाले बाहुल्य हिंदूवादियों के पास धार्मिक आस्था का हथियार है जो “जय श्री राम” का नारा लगाता है। ये सब हिन्दू राष्ट्र हो जाने की वास्तविकता का प्रमाण दे रहे हैं। हिन्दू राष्ट्र में तो भारत कहीं है ही नहीं जिसे दशकों की लड़ाई और भिन्न-भिन्न लोगों की एकजुटता की बदौलत आज़ाद कराया गया था। भारत कभी आज़ाद नहीं रहा। वह किसी न किसी धर्म, जाति इत्यादि के इर्द-गिर्द कैद होता रहा है।
भारत जिसे विविधताओं वाला देश कहा गया, इसी नाम से जाना गया वो अब हिन्दू राष्ट्र के नाम पर कारावास की सज़ा का काट रहा है। इसे कैद करने वाले और कोई नहीं बल्कि देश के सेवक, लोग, नेता हैं जिन्हें देश का प्रधानमंत्री कहा जा रहा है, जिन्हें गृह मंत्री व राज्य मंत्री कहा जा रहा है इत्यादि सभी लोग शामिल हैं।
ये बाहुल्य हिंदूवादी लोग कहते हैं कि उन्हें देश के मुस्लिमों से खतरा है, उनकी जनसंख्या बढ़ जाने से खतरा है। उन्हें डर है कि उनका अस्तित्व ख़त्म हो जायेगा तो खुद को बचाने के लिए उन्होंने हिंदूवादी संगठन बना लिए। जैसे- विश्व हिन्दू परिषद, अखिल भारतीय हिन्दू महासभा,बजरंग दल,आरएसएस इत्यादि। ये संगठन पूर्णतयः मुस्लिमों के विरुद्ध काम करते हैं। बस मौके की बात है और बाकि सब इन पर छोड़ दीजिये। ये “राम-नाम” व “बजरंग बलि” का हथियार ले धर्म के नाम पर, पहचान के नाम पर, अस्तित्व के नाम पर हिंसा के लिए खड़े हो जायेंगे। जो मुस्लिम इस नाम का जाप नहीं करेगा, वो तो सीधा पाकिस्तान चला जाए या तो कब्रिस्तान। उसकी इस मुल्क में तो ज़रूरत ही नहीं है क्योंकि इस जाप के बिना मुस्लिम समुदाय भारतवासी नहीं बल्कि वह आतंकवादी है जिसका संबंध या तो पाकिस्तान से है या अलकायदा जैसे खतरनाक संगठनों से।
जब ये हिन्दू नाम का झंडा लिए मुस्लिमों का संघार करने निकलते हैं तो इन्हें कानून और राजनीतिक तौर पर सुरक्षा मिलती है। आज़ादी से बोलने और अपने विचारों को रखने का अधिकार मिलता है। ऐसा इलसिए क्योंकि ये सब हिन्दू राष्ट्र के समर्थक वाली विचारधारा के साथ हैं नहीं तो भारत का संविधान, उसका कानून और उसके द्वारा दी गई आज़ादी तो हर धर्म, जाति, नस्ल व लिंग के लोगों के लिए समान है। बता दें, मुस्लिम समुदाय के लिए भी। इस हिन्दू राष्ट्र में तो बस हिन्दुओं के पास ही सब कुछ है बाकी तो आप खुद से सवाल करिये किसके पास क्या है, जवाब आपको खुद मिल जाएगा।
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मुस्लिमों की हत्या देश में हत्या नहीं?
हाल ही का उदारहण देख लीजिये, 31 जुलाई 2023 को जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस ट्रेन में आरपीएफ के एक कॉन्स्टेबल चेतन सिंह ने चलती ट्रेन में अपने सीनियर
टीकाराम मीणा सहित ट्रेन में सफर कर रहे तीन मुस्लिम व्यक्तियों की गोली मारकर बेरहमी से हत्या कर दी। ये हत्या एक समुदाय से जुड़ी और सालों साल से पैदा की गई धार्मिक नफरत थी। खबर यह भी थी कि अगर ट्रेन नहीं रूकती तो वह और भी ऐसे लोगों की हत्या कर सकता था, वो भी बिना किसी झिझक के।
रिपोर्ट्स के अनुसार, मरने वाले मुस्लिम व्यक्तियों के नाम सैयद सैफुल्लाह, अब्दुल कादिरभाई मुहम्मद हुसैन भानपुरवाला व असगर अब्बास शेख बताये गए। हत्यारे कॉन्स्टेबल चेतन सिंह को अपने अपराध का कोई पछतावा नहीं था। चारों व्यक्तियों की हत्या के बाद वह लोगों की तरफ देखते हुए कहता…..
“…पाकिस्तान से ऑपरेट हुए। हमारी मीडिया कवरेज दिखा रही है। पता चल रहा है उनको, सब पता चल रहा है, इनके आका हैं वहां। अगर वोट देना है, हिंदुस्तान में रहना है, तो मैं कहता हूं मोदी-योगी को दीजिए, यही दो हैं, और आपके ठाकरे।”
इस मामले को कहीं भी मुस्लिम विरोधी या इस्लामॉफ़ोबिक या जेनोसाइड नहीं कहा गया। हत्यारे के बचाव में पक्ष कहता कि हत्यारा चेतन सिंह मानसिक रूप से बीमार है। मुख्यधारा की मीडिया भी बड़े मज़े से जो सिर्फ सत्ता की हिंदूवादी सरकार का नाम जपती है यही दिखाती रही कि हत्यारा कितना बीमार है, मानसिक रूप से पीड़ित है। जनता का ध्यान हत्यारे के अपराध व मुस्लिमों के प्रति उसकी गहरी नफरत को जानबूझकर हटाया गया।
हिन्दू राष्ट्र में इस मीडिया की काफी जगह है जो मुस्लिम के विरोध में बात करती है और जनता को मुस्लिमों के खिलाफ भड़काती है। अब करे भी क्यों न? हिंदूवादी राष्ट्र वाली सरकार का पूरा सहयोग जो मिल रहा है। आखिर इनका कोई क्या ही बिगाड़ सकता है?
प्रधानमंत्री भी इस पर क्या ही बोलेंगे जब 2002 में उनके गुजरात के सीएम रहने के दौरान उन्होंने गोधरा काण्ड में भूमिका निभाई, ये हम नहीं ये तो रिपोर्ट्स कहती है। सीएनएन की रिपोर्ट ने कहा कि गुजरात के अहमदाबाद में हुए दंगो में 1000 हज़ार लोगों की जान गई जिसमें अधिकतर मुस्लिम थे।
जब हाल ही में गुजरात दंगो से जुड़ी बीबीसी डॉक्यूमेंट्री रिलीज़ हुई तो उसे भारत में बैन ही कर दिया गया, जिसके ज़रिये यह कहा गया कि नरेंद्र मोदी ही सीधे तौर पर दंगो के लिए ज़िम्मेदार है। इन दंगों में विशेष तौर पर मुस्लिमों को टारगेट किया गया।
हिन्दू राष्ट्र के नेता, वो भी देश के प्रधानमंत्री ये सब जनता को कैसे सुनने दे सकते थे कि उनका हाथ मुस्लिमों की हत्या में है। फिर क्या, उन्होंने अपनी ताकत का इस्तेमाल किया और डॉक्यूमेंट्री को ही बैन कर दिया। सब सत्ता और ताकत का गोल-माल है। कई लोग तो कहने लगे, ‘ये हमारे देश के आन-बान-शान की बात है, हम मोदी का नाम, देश का नाम खराब नहीं होने देंगे। “अरे, जनाब! खराब तो सब कुछ शुरू से ही है, बस हिंदूवादियों पर बात आई है तो शान दिखने लगी। मुस्लिमों की बात आती है तो इन्हें बस बाबरी मस्जिद दिखाई देती है और अब ज्ञानवापी मस्जिद।
हिन्दुओं के सवर्ण समाज में हिंसा
ये हिन्दू राष्ट्र वाले लोग सिर्फ मुस्लिम धर्म पर ही नहीं बल्कि जाति के नाम पर भी दशकों से हिंसा करते आये हैं। स्वयं स्थापित सवर्ण जाति के हिन्दू अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों को मनुष्य तक नहीं समझते। इससे जुड़ी हालिया घटना को देखिये, मणिपुर में पिछले कुछ महीनों से दो जनजातीय समुदाय मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जातीय हिंसा की लड़ाई चल रही है। द मिनट की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, मई से अभी तक इस जातीय हिंसा में 120 लोग मारे जा चुके हैं। यह विवाद मणिपुर के बहुमत वाले मैतेई और कुकी के बीच दुश्मनी से शुरू हुआ है, जो राज्य के कई आदिवासी समूहों में से एक है व राज्य की आबादी का लगभग 16 प्रतिशत है।
मैतेई मुख्य रूप से हिंदू है और बड़े पैमाने पर शहरी केंद्रों में रहते हैं। वहीं मुख्य रूप से ईसाई कुकी आमतौर पर राज्य की पहाड़ी क्षेत्रों में बिखरी हुई बस्तियों में रहते हैं। दोनों समुदायों के बीच लंबे समय से तनाव भूमि और सार्वजनिक नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा के आसपास घूमता रहा है। इसके साथ ही अधिकार कार्यकर्ताओं ने स्थानीय नेताओं पर राजनीतिक लाभ के लिए जातीय विभाजन को बढ़ाने का भी आरोप लगाया है।
मैतेई समुदाय पिछले कुछ महीनों से कुकी समुदाय पर हिंसा करता आ रहा है। सिर्फ हिंसा ही नहीं मनुष्यता की अगर कोई लाइन होती है तो उसे पार करके मैतेई समुदाय के लोगों द्वारा कुकी समुदाय की महिलाओं को नग्न कर उन्हें शहर में घुमाया गया है। यह बर्बरता से भी अतिदुष्टता वाला कृतघ्न कार्य है।
3 मई को कुकी समुदाय की दो महिलाओं को नग्न कर घुमाने का वीडियो पिछले महीने जून में वायरल होना शुरू हुआ क्योंकि राज्य में इंटरनेट बैन था, ऊपर से सीएम बिरेन सिंह राज्य में शांति व्यवस्था बनाये रखने में नाकामयाब दिखे। उन्होंने जनता को दिखाने के लिए अपना इस्तीफ़ा देने का खेल भी खेल लिया जिसका कुछ ख़ास असर नहीं हुआ। जब वीडियो वायरल हुआ और जनता में आक्रोश बढ़ा तो आख़िरकार देश के कहे जाने वाले पीएम नरेंद्र मोदी के लब्ज़ों से तकरीबन 80 दिनों के बाद कुछ शब्द और मगरमछ के आंसू निकले – द टेलीग्राफ की हेडलाइन ने कटाक्ष करते हुए लिखा। बात सही भी है, इससे पहले तो जनता पीएम को कुछ कहने की आस लगाते हुए देखती रह गई पर उन्होंने कुछ कहा नहीं। जब लगा की कहीं सत्ता खतरे में न पड़ जाये तो कुछ ढांढस बंधाते हुए कुछ शब्द निकाल दिए और असर कुछ नहीं है।
जातिय हिंसा तो ज्यों की त्यों है और इस हिन्दू राष्ट्र की कल्पना वाले भारत से और क्या ही उम्मीदें की जा सकती हैं?
हिंदूवादी ताकत का खुलेआम प्रदर्शन
हिन्दू राष्ट्र की कल्पना करने वाले हिंदूवादियों के पास इतनी सत्ता और सुरक्षा है कि वह मुस्लिम समुदाय को कहीं भी कभी-भी, कैसे भी मार सकते हैं, उन्हें डरा सकते हैं और कोई उनका कुछ नहीं करेगा। क्यों? क्योंकि उनके पास हिंदुत्व धर्म है, जय श्री राम का कवच है और मुस्लिमों को नफरत करने का पक्का इरादा है, यह सब चीज़ें हिन्दू राष्ट्र में उन्हें सुरक्षा देने के लिए काफी है।
मान लीजिये, ये हिंदूवादी अपराधी किसी अपराध के मामले में पकड़े भी गए तो जेल से बाहर निकलने के बाद उनका फूल-माला और बैंड-बाजे के साथ स्वागत किया जाएगा। बिलकिस बानो वाले मामले में तो आपने देखा ही होगा। साल 2002 में हुए गुजरात दंगो में ब्राह्णण समुदाय के लोगों ने बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया था। इसमें 11 दोषियों को सज़ा सुनाई गई थी और फिर अगस्त 2022 में रेमिशन पॉलिसी के तहत अदालत द्वारा इन सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया।
इन सभी अपराधियों के रिहा होने की खुशी कुछ लोगों और उनके परिवार द्वारा उन्हें फूल-माला पहनाकर व तिलक-आरती के साथ मनाई गई। इसके अलावा विश्व हिन्दू परिषद द्वारा भी इन सभी आरोपियों का स्वागत माला पहनाकर किया गया।
भारतीय जनता पार्टी के विधानसभा सदस्य सीके राउलजी ने कहा, “मुझे नहीं पता कि उन्होंने अपराध किया है या नहीं। वे ब्राह्मण हैं और ब्राह्मण अच्छे संस्कार के लिए जाने जाते हैं।”
आगे कहा, “बलात्कारियों का जातियों से कोई लेना-देना नहीं है और मैंने ऐसी कोई बात नहीं कही है। बयान को गलत तरीके से दिखाया जा रहा है। जो व्यक्ति दोषी पाया जाता है, उसे दंडित किया जाना चाहिए। हमें कोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए।”
अपराधियों के पक्ष में दिए इस बयान व विश्व हिन्दू परिषद द्वारा माला पहनाने के कार्य को पार्टी ने अपराध नहीं कहा। कहे भी क्यों? सवर्ण हैं, और वो तो संस्कारी होते हैं। हाँ, अगर मुस्लिम होता तो ज़रूर से बहुत कुछ कहा जाता। अगर महिला मुस्लिम समुदाय से न होकर वह सवर्ण समाज से होती तो ज़रूर से उनकी रूह कचोटती।
हिंदूवादियों की सत्ता
अब आते हैं, देश की राजधानी दिल्ली से सटे गुरुग्राम की तरफ। यहां भी हिंदूवादियों की सत्ता और ताकत का प्रदर्शन देखने को मिला। देश में अब तो न संविधान समान बचा है और न ही कोई अधिकार। जिनके चरित्र में भगवा रंग है, वही व्यक्ति देश में आज़ाद है और सुरक्षित है। कोई अन्य रंग तो ‘न बाबा न’ गलती से भी नहीं, उन्हें कहां आज़ादी है, उन्हें कैसी सुरक्षा।
ज़्यादा पीछे न जाकर अगर अभी कुछ समय पहले की घटना पर सरकार के हिंदूवादी प्यार को देखा जाए तो वह भी यह दर्शाने के लिए काफी होगा कि मुस्लिम समुदाय देश में कितना असुरक्षित व बहिष्कृत है। यह एहसास मुस्लिम समुदाय के लोगों में हमेशा रहता है, हिंदूवादियों के नहीं।
हाल ही में, 31 जुलाई को विश्व हिंदू परिषद और अन्य समूहों द्वारा नूंह के मुस्लिम बाहुल्य मेवात इलाके से एक धार्मिक यात्रा का आयोजन किया गया था। कथित तौर पर यह बताया गया कि स्थानीय मुस्लिम निवासियों ने रास्ते को रोकने की कोशिश की और पथराव किया। इसके बाद शाम तक इलाके में हिंसा व आगजनी की खबरें सामने आने लगी।
इतना सब होने के बाद भी, हरियाणा के पलवल के पोंडरी गांव में हिन्दू संगठनों की एक “महापंचायत” ने रविवार 20 अगस्त को घोषणा की कि वे 28 अगस्त को नूंह में विश्व हिंदू परिषद की ब्रज मंडल यात्रा को फिर से शुरू करेंगे। ताज़ा अपडेट के अनुसार, नूंह के एसपी नरेंद्र सिंह बिजारनिया ने नूंह हिंसा मामले में गौरक्षा बजरंग फोर्स के अध्यक्ष बिट्टू बजरंगी का कनेक्शन बताया और कहा कि उसके खिलाफ फरीदाबाद में मामला दर्ज किया गया है। जानकारी के अनुसार, बजरंगी पिछले तीन सालों से अपना गौरक्षक समूह चला रहा है। पिछले एक महीने में ही उस पर धार्मिक भावनाएं भड़काने के तीन मामले ही दर्ज़ किये गए हैं।
हरियाणा पुलिस के अनुसार, 31 जुलाई को हिंसा तब शुरू हुई जब विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित “ब्रज मंडल जलाभिषेक यात्रा” रैली पर शिव मंदिर से लगभग कुछ किलोमीटर दूर खेड़ला मोड़ के पास युवाओं के एक समूह ने पथराव कर दिया जहां से यात्रा शुरू हुई थी।” इसके बाद यह खबर सामने आने लगी कि मोनू मानेसर जो कि गौ रक्षक है, वह भी रैली में जुड़ेगा। जब विवाद होने लगा तो वह रैली में नहीं जुड़ा। वह इसलिए क्योंकि उस पर दो मुस्लिमों की हत्या का मामला दर्ज़ है।
स्थानीय लोगों ने बताया कि दोनों पक्षों के बीच विवादित तौर पर गर्मा-गर्मी हुई और फिर दोनों तरफ से पत्थरबाज़ी हुई। दोनों ही पक्षों के पास हथियार थे। हिंदूवादी संगठन ने सोशल मीडिया पर कहा कि नूंह जो मुस्लिम बाहुल्य इलाका है, वहां हिन्दुओं को खतरा है और फिर इसे ही सच मान लिया गया। इसके बाद कई मुस्लिम लोगो की दुकानों को निशाना बनाते हुए उनकी दुकानों में आग लगाई गई, तोड़-फोड़ किया गया। गुरुग्राम की एक मस्जिद को आग के हवाले कर दिया गया। गुरुग्राम सेक्टर-57 के अनियमन जामा मस्जिद के इमाम हाफिज साद व तैनात एक पुलिसकर्मी को भीड़ द्वारा घुसकर जान से मार दिया गया।
द प्रिंट की 8 अगस्त की रिपोर्ट में बताया गया कि हरियाणा में एक ग्राम पंचायत ने एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें लिखा था कि नूंह में सांप्रदायिक हिंसा को देखते हुए, पंचायत के साथ-साथ ग्रामीणों ने निर्णय लिया है कि “शरारती तत्वों” या “मुस्लिम समुदाय के किसी भी व्यक्ति” को जैनाबाद में किसी भी तरह का व्यापार करने या सामान बेचने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
यह चीज़ साफ़-साफ़ हर जगह कही गई कि दोनों पक्ष इसमें शामिल थे लेकिन इसके बावजूद भी पूरे मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया। यह बात तो अधिकतर जनता ज़रूर से सोच और कह रही होगी कि अगर हरियाणा में जिस तरह से मुस्लिम लोगों को निकाला जा रहा है, उन पर हिंसा की जा रही है अगर इसमें किसी मुस्लिम व्यक्ति का नाम होता तो उसे अभी तक तो आतंकवादी करार कर दिया जाता लेकिन क्योंकि मामले का संपर्क व आरोपी हिंदूवादी नाम के संगठन से जुड़ा है तो हर जगह सन्नाटा छाया हुआ है।
इसके अलावा, उत्तरकाशी जिले के पुरोला कस्बे में 28 मई को हुए मामले के बाद स्थानीय लोगों द्वारा ‘बाहरी’ लोगों को राज्य छोड़ने की धमकी दी गई और अल्टीमेटम देने के तीन दिनों के प्रदर्शन के बाद न्यूज़ क्लिक की रिपोर्ट के अनुसार, 42 मुस्लिम दुकानदारों को अपनी जगह छोड़कर भागने पर मज़बूर कर दिया। यह तब हुआ जब ओबैद नाम के मुस्लिम व्यक्ति और जितेंद्र सैनी नाम के दो आरोपी लड़कों ने नौवीं क्लास की लड़की को अगवा कर लिया था।
राष्ट्रीय स्वयं संघ से जुड़े लोगों ने मामले को लव-जिहाद का नाम दिया जिसके बाद ‘बाहरी’ शब्द का इस्तेमाल करते हुए मुस्लिम लोगों को बाहर करने के लिए पंचायत में फरमान सुनाये गए। मामले में यह तो साफ़ दिखा कि अपराधी दो थे पर अपराधी को न देखते हुए विशेष धर्म पर ध्यान केंद्रित करते हुए मामले को भड़काया गया और मामले के अर्थ को ही बदल दिया गया।
अन्य उदाहरण, पुरोला में 15 जून, 2023 से पहले अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को उनकी दुकाने खाली करने हेतु कई जगह पोस्टर दिखाई दिए। यह पोस्टर ‘देवभूमि रक्षा अभियान’ की तरफ से लगाए गए थे जिन पर लिखा था, “लव जिहादियों को सूचित किया जाता है कि 15 जून 2023 को होने वाली महापंचायत होने से पूर्व अपनी दुकानें खाली कर दें, यदि तुम्हारे द्वारा यह नहीं किया जाता है तो वह वक्त पर निर्भर करेगा।”
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा 30 मार्च 2023 को प्रकाशित रिपोर्ट की हेडलाइन थी, “4 महीने, महाराष्ट्र में 50 रैलियां, एक थीम: ‘लव जिहाद’, ‘लैंड जिहाद’ और आर्थिक बहिष्कार” (4 months, 50 rallies in Maharashtra, one theme: ‘Love jihad’, ‘land jihad’ and economic boycott) – यह हेडलाइन यह बताने के लिए काफी थी कि मुस्लिम समुदाय किस तरह से प्रशासन के रहते हुए भी खुलेआम हिंसा के खेल में चोटिल हो रहे हैं।
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मौजूदा सरकार से बढ़ रही मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा – रिपोर्ट
सिटिज़न फॉर जस्टिस और पीस (सीपीजी) की फरवरी 2023 की हेडलाइन कहती, “भारत भर में मुसलमानों के खिलाफ अधिक नफरत भरे भाषण दिए गए, अधिकारी आश्चर्यजनक रूप से चुप रहे” (More hate speech against Muslims delivered across India, authorities remain deafeningly silent)
सीपीजी की ही मई 2019 की हेडलाइन भी देश में मुस्लिमों की दशा को बता रही थी, जो कहती है, “#HateOffender: योगी आदित्यनाथ और अल्पसंख्यकों के खिलाफ उनके घृणा वाले भाषण” (#HateOffender: Yogi Adityanath and his chilling hate speeches against minorities)
अलजज़ीरा ने अप्रैल 2023 की हेडलाइन में लिखा, “मोदी के भारत में इस्लामोफोबिया आम बात है” (Islamophobia is the norm in Modi’s India)
अलजज़ीरा की ही अन्य अप्रैल 2023 की रिपोर्ट में कहा गया, “भारत के महाराष्ट्र में बीजेपी की वापसी के बाद से मुस्लिम विरोधी रैलियों में बढ़ोतरी हुई है” (Spike in anti-Muslim rallies since BJP retook India’s Maharashtra)
वॉशिंगटन पोस्ट (मई 2023) ने लिखा, “मोदी भारत में मुस्लमानों के प्रति नफरत फैला रहे हैं, जबकि दुनिया दूसरी तरफ देख रही है” (Modi is enflaming hatred of Muslims in India, as the world looks the other way)
द हिन्दू की फरवरी 2023 की हेडलाइन ने कहा, “भारत एक ‘हिंदू राष्ट्र’, ‘अखंड भारत’ का सपना साकार करेगा: योगी आदित्यनाथ” (India a ‘Hindu Rashtra’, ‘Akhand Bharat’ will come true, says Yogi Adityanath)
इन मीडिया रिपोर्ट्स की यह हेडलाइन यह बताने के लिए तो काफी है कि मुस्लिमों के खिलाफ हो रही या बढ़ी हिंसाओं का क्या स्त्रोत है। वहीं रिपोर्ट्स में सामने आई बातों और अर्थों से यही समझ आता है कि देश का संविधान और आज़ादी सिर्फ हिंदूवादी लोगों के लिए ही है तभी तो शायद मुस्लिम समुदाय को न तो क़ानूनी नियम के तहत सुरक्षा मिलती है और न ही इन्साफ मिलता है। अब इसमें समानता की बात तो कहीं है ही नहीं, जिसकी ज़्यादा संख्या उसका आधिपत्य और दूसरा प्रताड़ित।
संविधान में समानता के अधिकार क्या सबके पास?
संविधान का अनुच्छेद 14 से 18 सभी नागरिकों की समानता की बात करता है, अनुच्छेद 19 से 20 आज़ादी के अधिकार की, अनुच्छेद 23 से 24 शोषण के विरुद्ध अधिकार और अनुच्छेद 25 से 28 धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की। ये सभी अधिकार संविधान ने भारत में रहने वाले हर एक नागरिकों को दिए हुए हैं, किसी एक धर्म या समुदाय के लोगों को नहीं पर राज्य की सरकारें, सत्ता में बैठी सरकार तो ये अधिकार बस हिंदूवादियों और उन्हें देते हुए दिख रही है जो उनकी विचारधारा पर चल रहे हैं।
ये है वर्तमान में बैठी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीजेपी सरकार, जिनके नेता व मंत्री खुलेआम मुस्लिमों को मारने, जनता को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भड़काने व मुस्लिम महिलाओं के साथ हिंसा करने की बात करते हैं और वह भी बिना किसी डर के, क्यों? क्योंकि संविधान द्वारा दी गई आज़ादी और सुरक्षा की ताकत सिर्फ इन्हें मिली हुई है। इनके लिए मुस्लिम समुदाय तो भारत में रहने वाले नागरिक ही नहीं है तो वो उन्हें उस आज़ादी और सुरक्षा को महसूस तक नहीं करने देते।
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